निल बटे सन्नाटा, बरेली की बर्फ़ी और पंगा जैसी फ़िल्मों से एक सुलझी हुई फ़िल्मकार की पहचान बनाने के बाद अश्विनी अय्यर तिवारी अब उपन्यासकार भी बन गयी हैं। अश्विनी का पहला उपन्यास मैपिंग लव स्टैंड्स पर आ चुका है। यह उपन्यास अंग्रेज़ी भाषा में हैं। अश्विनी चाहती हैं कि जल्द यह हिंदी में भी आए। एक फ़िल्मकार से उपन्यासकार तक पहुंचने की कहानी जानने के लिए जागरण डॉट कॉम के डिप्टी एडिटर मनोज वशिष्ठ ने अश्विनी से बात की। पेश है-
एक स्टोरीटेलर के तौर पर आपको आइडिया कहीं से भी आ जाते हैं। हर कहानी आपकी निजी ज़िंदगी से जुड़ी नहीं रहती या किसी से प्रेरणा नहीं मिलती है। लेखक काफ़ी उत्सुक होते हैं और जब दिमाग में कोई आइडिया आता है, तो लगता है कि इस पर लिखा जाना चाहिए और जब एक प्लॉट पॉइंट मिल जाता है तो आप उसे आकार देते हो। फिर कैरेक्टर्स बनाये जाते हैं। नॉवल का लेखन एक यात्रा की तरह होता है। जैसे ही प्लॉट पॉइंट आया, मैं निकल पड़ी अपनी जर्नी में और अपनी कहानी को ‘मैप’ किया।
मैं अपने आपको एक स्टोरीटैलर (कहानीकार) ही मानूंगी और एक स्टोरीटैलर के पास कई कहानियां होती हैं। फ़िलहाल हम जिस जगह पर हैं और रचनाशीलता की इतनी पहचान हो रही है। कहानियों को बताने के लिए इतने माध्यम हैं। भले ही वो वेब सीरीज़ या पॉप्यूलर फ़िल्म्स हों या थिएट्रिकल फ़िल्म्स हों या पॉडकास्ट हो या शोज़ हों, आप हर जगह किसी भी प्लेटफॉर्म पर अपनी कहानी बता सकते हैं। मुझे ऐसा लगा कि यह कहानी एक किताब की तरह ही लिखी जानी चाहिए, क्योंकि इसमें जितनी भावनाएं गुंथी हुई हैं, हम उसे एक मूवी में समेट नहीं पाएंगे।
फ़िल्म या वेब सीरीज़ के बारे में ज़्यादा नहीं सोचा है और मंज़िल के बारे में ज़्यादा नहीं सोचती। सफ़र के बारे में सोचती हूं। अभी इस यात्रा का आनंद लेना चाहूंगी। फिर देखते हैं, अगर किसी को बनाना हो तो वो तब की बात है। (हंसते हुए) इतना आगे का अभी पैनडेमिक में सोचते नहीं हैं।
तीन साल पहले यह स्टोरी लिखनी शुरू की थी। घर और काम की ज़िम्मेदारियों की वजह से किताब पीछे छूट गयी। मैं जहां जाती हूं, अपनी एक छोटी सी डायरी लेकर जाती हूं। धीरे-धीरे लिख रही थी। काफ़ी चैप्टर्स ख़त्म कर दिये थे मैंने और फिर पैनडेमिक हो गया। पैनडेेमिक में मेरे सामने दो विकल्प थे। अफ़सोस मनाते रहें या हम सकारात्मक बनकर दूसरों के लिए दुआ करें। वो सब दिमाग में रखकर मैंने लिखना शुरू किया।
लेखक, लेखक होता है। वो जिस भाषा में लिखते हैं, वो माध्यम अलग होता है। मैं चाहती हूं कि बहुत सारे लेखक हिंदी में लिखें। मैंने अपने प्रकाशक को बोला है कि इसको (मैपिंग लव) हिंदी में लिखवाइए। अगर हम स्क्रीनप्ले हिंदी में लिख सकते हैं। संवाद हिंदी में लिख सकते हैं तो किताब भी हिंदी में लिख सकते हैं। हिंदी में लेखन का आनंद लेने वाले अधिक लेखकों को देखना सुखद होगा, ताकि भावी पीढ़ी को हिंदी पढ़वा सकें।
मेरे पसंदीदा लेखक मुराकामी (Haruki Murakami) हैं। जापान के हैं और जापानी में लिखते हैं। फिर उनकी किताबें अंग्रेज़ी में अनुवादित होती हैं और उन अनुवादों को हम यहां पर पढ़ते हैं। ‘मैजिक रियलिज़्म’ में वो अपनी कहानी को हमसे जोड़ देते हैं। उनकी जो कैट (बिल्ली) है, वो भी हमारे साथ जुड़ जाती है। उनके लेखन का फलसफा और अनुशासन मुझे बहुत अच्छा लगता है। अमिताभ घोष का लेखन भी मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि उनका लेखन ‘इंटेलीजेंट’ होता है। वो प्रोफेसर हैं और पर्यावरण की तरफ़ झुकाव रहता है। इसे वो जिस तरह से फिक्शन में लेकर आते हैं, वो बहुत कठिन है, लेकिन वो उसे भी बेहतरीन ढंग से लिखते हैं।
फाड़ू सोनी लिव के साथ आ रही है। अच्छी-अच्छी कहानियां वहां आ रही हैं। भले ही स्कैम 1992 हो या महारानी हो। फाड़ू भी ऐसी कहानी है, जिसके ज़रिए मैं अपने आप को चैलेंज करना चाहती हूं। सौम्य जोशी जी ने कहानी लिखी है, जो अहमदाबाद के बहुत बड़े कवि, लेखक और प्रोफेसर हैं। अभिजात जोशी के भाई हैं। उन्होंने कभी अपने बारे में बोला नहीं है, पर बहुत टैलेंटेड हैं। अभी प्री-प्रोडक्शन में है। पैनडेमिक कुछ कम हो जाएगा तो काम में रफ़्तार आएगी। बाक़ी प्लेटफॉर्म बताएगा कि कब आएगा।