भतीजे आकाश आनंद के रूप में घोषित कर दिया बसपा का नेतृत्वकर्ता

15 जनवरी, 2008। उस वक्त की सीएम मायावती अपना जन्मदिन मना रही थीं। इस खास मौके पर उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरे संघर्षमय जीवन का सफरनामा’ का विमोचन किया। उसमें उन्होंने लिखा कि बीएसपी का अगला नेतृत्वकर्ता उन्हीं की तरह दलित वर्ग से होगा, लेकिन वह हमारे परिवार से नहीं होगा। 15 साल बीते। किताब के नए एडिशन मार्केट में आए। 10 दिसंबर को फाइनली मायावती ने अपना उत्तराधिकारी और बसपा का नेतृत्वकर्ता अपने भतीजे आकाश आनंद के रूप में घोषित कर दिया।
इस तरह से मायावती की ‘दलित नेतृत्वकर्ता’ वाली बात सही साबित हुई। लेकिन ‘परिवार से नहीं होगा’ वाला फैसला बदल गया। अब 28 साल के आकाश ही बसपा के भविष्य हैं। संगठन को दोबारा मजबूत करना हो, पुराने लोगों को साथ लेकर चलना हो, सब कुछ आकाश को ही देखना होगा। इन सबके बीच यह सवाल जरूरी हो जाता है कि आकाश का राजनीतिक तजुर्बा क्या है? उनको सियासी समझ कहां से मिली है? उनके लिए कौन चुनौती बनेगा? आज इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने के साथ आकाश की पूरी कहानी जानेंगे। आइए शुरू से शुरू करते हैं…
आकाश का जन्म 4 अप्रैल, 1995 में हुआ। वह मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। इसलिए अपने नाम आकाश के आगे अपने पिता आनंद का नाम जोड़ते हैं। आकाश जब दो महीने के हुए, तब मायावती पहली बार 39 साल की उम्र में सीएम बनीं।
आकाश की शुरुआती पढ़ाई नोएडा में हुई फिर उनका एडमिशन गुरुग्राम के पाथवेज वर्ल्ड स्कूल में करवाया गया। यहां पढ़ाई करने के बाद वह विदेश चले गए। लंदन की प्लायमाउथ यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी MBA किया। 2015 में वह वापस इंडिया आ गए।
इंडिया वापस आने के बाद उन्हें नौकरी नहीं खोजनी थी। उनके पिता आनंद की कई कंपनियां नोएडा में थीं। आकाश उन्हीं में काम देखने लगे। साथ ही साथ वह अपनी बुआ मायावती की सियासत को समझते। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों को पढ़ते। उस वक्त आकाश के राजनीति में आने की कोई अटकलें नहीं थीं।
यूपी में 2017 में विधानसभा चुनाव होना था। उस वक्त बीएसपी मुख्य विपक्षी दल थी। बसपा प्रत्याशियों के समर्थन में मायावती ने सहारनपुर में रैली की। मंच पर पार्टी के पदाधिकारियों के साथ एक 22 साल क लड़का चश्मा लगाकर खड़ा था।
यह पहला मौका था जब पत्रकारों में इस बात को जानने की दिलचस्पी बढ़ी कि यह लड़का कौन है? क्योंकि मायावती ने उस सभा में आकाश के बारे में जनता को कुछ नहीं बताया। अगले दिन के अखबारों में मायावती के साथ आकाश की भी फोटो थी और यह बात तय हो गई कि वह अब पार्टी के लिए काम करेंगे।
2017 के चुनाव में बसपा बुरी तरह हारी। महज 19 सीटों पर ही जीत मिली। 2007 में पार्टी को 30 फीसदी वोट मिला था, वह 2017 में 22 फीसदी पर आ गया।2017 के बाद आकाश बसपा की बैठकों में शामिल होने लगे। लेकिन वह किसी तरह का फैसला लेने की स्थिति में नहीं थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें आखिरकार यह जिम्मेदारी मिली। बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया। बसपा के हिस्से की सीटों पर चुनावी कैंपेन मैनेज करने की जिम्मेदारी मिली। नतीजे पार्टी के हित में रहे। बसपा के खाते में 10 सीटें आईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी।
कुछ दिन बाद ही पार्टी ने सपा से गठबंधन तोड़ दिया। मायावती ने आकाश को पार्टी का कोआर्डिनेटर नियुक्त किया। उनके पिता आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। 2020 में कोरोना के चलते आकाश ने पार्टी पदाधिकारियों को सोशल मीडिया से जोड़ा और पार्टी के बड़े नेताओं के जरिए ट्रेनिंग करवाई। इसके बाद 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए। 2022 का चुनावी नतीजा बसपा के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। बलिया जिले की रसड़ा से उमाशंकर सिंह के अलावा कोई भी विधायक नहीं बन सका।
2022 के सितंबर महीने में हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई। बसपा ने तय किया कि सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। स्टार प्रचारकों की जो लिस्ट निकाली, उसमें पहला नाम मायावती का था, उनके तुरंत बाद आकाश आनंद का नाम था। अमूमन दूसरे पर नंबर सतीश मिश्रा का नाम होता था, लेकिन इस बार यहां आकाश का नाम था।
सियासी जानकार तभी समझ गए थे कि मायावती के बाद पार्टी की बागडोर भतीजे आकाश के हाथों में जाने वाली है। आकाश ने हिमाचल में कई सभाएं कीं, लेकिन नतीजे निराशजनक रहे। पार्टी को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली।
26 मार्च 2023 को आकाश ने पार्टी के राज्यसभा सांसद डॉ. अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा सिद्धार्थ से गुरुग्राम के एक रिसॉर्ट में शादी कर ली। देशभर के कई दिग्गज नेता इसमें शामिल हुए।
इसी साल अगस्त महीने में आकाश आनंद ने राजस्थान में 14 दिन की ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय संकल्प यात्रा’ शुरू की। जहां भाषण होता वह लोगों को बसपा का समर्थन करने की बात तो करते साथ ही लोगों को चंद्रशेखर से सावधान होने को भी कहते। जयपुर में उन्होंने एक सभा को संबोधित होते हुए कहा था- “बहुत से लोग नीला झंडा लेकर घूम रहे हैं, लेकिन हाथी के चिन्ह के साथ नीला झंडा ही सिर्फ आपका है।”
भोपाल में शक्ति प्रदर्शन के दौरान एक पत्रकार ने पूछा कि क्या आप भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर को चुनौती के तौर पर देखते हैं? आकाश कहते हैं, “कौन भीम आर्मी, कौन चंद्रशेखर, हम नहीं जानते ऐसी किसी चीज को। ऐसे छोटे-मोटे लोगों के लिए हमारे पास समय नहीं है। हमारी अपनी इतनी जनता है कि हमें उन्हीं से फुरसत नहीं मिलती।”
3 दिसंबर को राजस्थान-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगाना के नतीजे घोषित हुए। बसपा के लिए कहीं से भी सुखद खबर नहीं आई। 2018 में बसपा को राजस्थान में 6 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार 2 मिली। साथ ही वोट प्रतिशत भी 4.03 फीसदी से घटकर 1.82 फीसदी हो गया। एमपी में पहले 5 फीसदी वोट मिले थे, इस बार ढाई फीसदी हो गया। एमपी-छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। इन सभी जगहों पर आकाश आनंद ने कई रैलियां की थीं। फ्री अनाज को लेकर एक भाषण चर्चा में रहा था।