एनडीपीएस संशोधन विधेयक संसद से पास, विपक्ष की मांग पर दो विधेयक संसदीय समितियों को सौंपे

संसद ने सोमवार को एनडीपीएस (संशोधन) विधेयक-2021 को मंजूरी दे दी। इसे त्रिपुरा हाई कोर्ट के एक आदेश के मद्देनजर कुछ त्रुटियों को दूर करने के लिए लाया गया है। यह विधेयक कानून बनने के बाद इस संबंध में लाए गए एक अध्यादेश का स्थान लेगा। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने विपक्ष की मांग के बाद सोमवार को दो विधेयक संसदीय समितियों को समीक्षा के लिए सौंप दिए। ये विधेयक जैव विविधता और मध्यस्थता से संबंधित हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में विधेयक पर हुई चर्चा का जबाव देते हुए कहा कि अध्यादेश इसलिए जरूरी था, क्योंकि अदालत का आदेश था और उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा था। इसके बाद उच्च सदन ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रापिक सब्सटैंसेज (एनडीपीएस) संशोधन विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी, जबकि लोकसभा 13 दिसंबर को मंजूरी दे चुकी है।

इससे पहले कई विपक्षी सदस्यों ने सरकार से पूछा कि कानून में वर्ष 2014 में हुए संशोधन की लिपिकीय त्रुटियों को दूर करने में सात साल कैसे लग गए। इस दौरान कांग्रेस सहित विपक्ष के कई दलों ने लखीमपुरी खीरी मामले में गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को हटाने की मांग करते हुए सदन से वाकआउट किया। बाद में सदन ने जैव विविधिकरण विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया।
दूसरी ओर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने जैव विविधता से संबंधित विधेयक लोकसभा के 21 सदस्यों और राज्यसभा के 10 सदस्यों वाली संयुक्त संसदीय समिति को समीक्षा के लिए सौंपा। इस समिति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसद हैं। सरकार के इस कदम पर कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है।
जयराम रमेश ने कहा, नियमानुसार यह विधेयक विज्ञान, तकनीक, पर्यावरण, वन एवं मौसम परिवर्तन मामलों की संसद की स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए था लेकिन सरकार ने इसे अन्य समिति के पास भेज दिया। इससे सरकार की स्थायी समिति को दरकिनार करने की मंशा का पता चलता है। यह संसदीय व्यवस्था का अपमान है
संशोधन विधेयक में जैव विविधता अधिनियम 2002 के प्रविधानों में संशोधन कर उन्हें शिथिल किए जाने का प्रस्ताव है। इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा और शोध कार्य को गति मिलेगी जिससे दवाइयों को बनाना आसान हो जाएगा। राज्यसभा में विधि एवं न्याय मामलों के राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह बघेल ने मध्यस्थता विधेयक 2021 पेश किया। विपक्षी सदस्यों के विरोध के बाद इसे विचार के लिए विधि एवं न्याय मामले की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।