2024 की लड़ाई NDA बनाम INDIA होगी। क्योंकि दिल्ली में सत्ता की कुर्सी किसी भी गठबंधन को यूपी से ही मिलती है। लेकिन विपक्ष के INDIA में यूपी कहां है? ये सबसे बड़ा सवाल है। INDIA की अगुआई करने वाली कांग्रेस सबसे बड़े सियासी सूबे में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कांग्रेस यूपी में अस्तिव बचाने की लड़ाई लड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर 2.33% तक सिमट चुका है। इतिहास में पहली बार हुआ है, जब यूपी विधानपरिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं है। पार्टी का इस वक्त प्रदेश पर कोई फोकस भी नहीं है।
यही वजह है कि पार्टी का किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं है। टॉप लीडर राहुल और प्रियंका ने पिछले एक साल से प्रदेश में एक बैठक तक नहीं की है। राहुल ने यूपी में भारत जोड़ो यात्रा में यूपी को सिर्फ ढाई दिन का समय दिया और 3 लोकसभा सीटों काे ही कवर किया। ऐसे में कांग्रेस के पास INDIA को जीताने के लिए अखिलेश से हाथ मिलाना ही पड़ेगा।
आइए सबसे पहले समझते हैं कि यूपी में NDA और INDIA के बीच मुकाबले के सियासी समीकरण क्या कहते हैं?
यूपी में NDA में अभी 4 दल (भाजपा+अपनादल-एस+निषाद पार्टी+सुभासपा) शामिल हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो इन दलों के पास यूपी में वोट शेयर तकरीबन 42% हैं। कुल 288 सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक हैं।
यूपी विपक्ष यानी INDIA की बात करें तो सारी राजनीति सपा के इर्द-गिर्द है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को 111 सीटों पर जीत मिली, जबकि वोट शेयर 32.1% रहा।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में 1.62 फीसदी और सपा के वोट शेयर में 10.23 फीसदी का इजाफा हुआ था। इससे साफ है कि वोट शेयर में ग्रोथ की गुंजाइश भी इन्हीं दो पार्टियों के पास है।
यूपी में अब INDIA की सारी निगाहें सपा की ओर हैं? सवाल भी बड़ा है कि क्या सपा और कांग्रेस एक दूसरे से हाथ मिलाएंगे? जानकारों की मानें तो दोनों पार्टियां यूपी में 2017 विधानसभा चुनाव से पहले समझौते के मुताबिक 2024 आम चुनाव में हाथ मिला सकती हैं।
इस आम चुनाव में सपा और कांग्रेस 80-20 के फॉर्मूले पर मिलकर चुनाव भी लड़ सकते हैं। यानी यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 20 पर कांग्रेस और 60 पर सपा चुनाव लड़ सकती है। ये 2017 विधानसभा चुनाव का ही पुराना फॉर्मूला है। तब भी दोनों पार्टियों के बीच इसी मसौदे पर गठबंधन हुआ था।
2022 विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश प्रभारी और महासचिव प्रियंका गांधी ने पार्टी की एक बैठक तक नहीं की है। हाल ही में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस पूरे प्रदेश से सिर्फ 4 नगर पालिका चेयरमैन चुने गए हैं। इससे कांग्रेस INDIA के यूपी में किस दौर से गुजर रही है। इसे समझा जा सकता है।
पार्टी नेता राहुल गांधी का तो ऐसे लगता है, मानो यूपी से मोहभंग हो चुका है। राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव में प्रचार तक नहीं किया। अपनी भारत जोड़ो यात्रा में राहुल 3570 किमी चले, लेकिन 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में राहुल की यात्रा महज ढाई दिन ही चली।
राहुल ने यूपी में 130 किमी की यात्रा की और कुल 3 लोकसभा सीटों, 11 विधानसभा सीटों को ही कवर किया। ये वो सीटें हैं, जहां कांग्रेस का पिछले दो विधानसभा चुनावों (2017 और 2022) में खाता तक नहीं खुला है।
कांग्रेस इन सीटों पर अपनी जमानत तक नहीं बच पाई थी। ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल विपक्ष का चेहरा कैसे बन पाएंगे? कांग्रेस सबसे बड़े सूबे में अपनी जड़ मजबूत किए बिना भाजपा को चुनौती कैसे दे पाएगी? और यूपी में NDA से INDIA का मुकाबला कैसे होगा।
INDIA का हिस्सा कांग्रेस के अलावा यूपी के दो क्षेत्रीय दल सपा और रालोद हैं। बेंगलुरू में महागठबंधन की बैठक खत्म होते ही अखिलेश यादव ने ट्वीट कर लिखा- इंडिया जिताएगा, INDIA जीतेगा। लेकिन बड़ा सवाल है कि ये INDIA यूपी में NDA से कैसे जीतेगा? क्योंकि सपा और कांग्रेस के रास्ते यहां अलग-अलग हैं। जयंत को लेकर संशय के बादल हैं। ऐसे में क्या एक बार फिर सपा और कांग्रेस यूपी में फिर हाथ मिलाने जा रहे हैं?
बेंगलुरू की बैठक, अखिलेश की बॉडी लैंग्वेज और कांग्रेस नेताओं की अखिलेश के साथ गर्मजोशी बताती है कि यूपी में जल्द ही नए सियासी समीकरण बनने जा रहे हैं। सपा और कांग्रेस के गठबंधन की काफी हद तक संभावना भी नजर आने लगी है। क्योंकि इस महागठबंधन के पहले संकल्प पत्र में ही अखिलेश यादव की उस मांग को मान लिया गया है, जिसकी आवाज वह एक साल से बुलंद कर रहे हैं। ये मांग है- जातीय जनगणना।
अखिलेश ने भी इस बैठक को “बेंगलुरू आंदोलन” नाम दे दिया है। ऐसे में रालोद को इस गठबंधन में कितनी सीटें मिल सकती हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इस पर अभी संशय है, क्योंकि जयंत चौधरी भले ही बेंगलुरू बैठक में शामिल हुए। लेकिन वो भविष्य में INDIA का हिस्सा बने रहेंगे, ये कह पाना मुश्किल है। क्योंकि जयंत की भाजपा के साथ अंदरखाने में बातचीत चलने की बातें लंबे समय से सुर्खियों में है।INDIA की ओर से जो पहला संकल्प पत्र जारी हुआ, उसमें बाकायदा- ये लिखा गया है कि 26 दलों का महागठबंधन चाहता है कि “सामुहिक संकल्प में आगे कहा कि हम अल्पसंख्यकों के खिलाफ पैदा की जा रही नफरत और हिंसा को हराने के लिए एक साथ आए हैं। महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए सभी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए एक निष्पक्ष सुनवाई की मांग करते हैं। पहले कदम के रूप में जाति जनगणना को लागू करें।”
अखिलेश यादव बेंगलुरु बैठक को लेकर काफी उत्साहित नजर आए। उन्होंने कर्नाटक पहुंचने से पहले लिखा- कर्नाटक आना हमेशा अच्छा लगता है, क्योंकि अपनी जिंदगी के कई Chapters यहां पढ़े हैं। अब यहां से देश का एक और हिस्टोरिकल चैप्टर लिखेंगे। हिस्ट्री यहां से जुड़ी है, अब फ्यूचर भी जुड़ेग।
कर्नाटक पहुंचकर बैठक की एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा- “हर कंधे पर ज़िम्मेदारी है… अब एक नई तैयारी है…”। अगले ट्वीट में अपने पार्टी नेताओं की फोटो ट्वीट की। इसमें प्रो. राम गोपाल यादव, विधायक लालजी वर्मा, राम अचल राजभर और महिला मोर्चा की अध्यक्ष जूही सिंह नजर आ रही हैं।
इसके साथ उन्होंने लिखा- “भारतीय इतिहास आज के दिन को देशभक्ति और सकारात्मक राजनीति के ‘बेंगलुरु आंदोलन’ के दिन के रूप में याद रखेगा।” बेंग्लुरू से निकलने के बाद एक और ट्वीट किया- “इंडिया जिताएगा, INDIA जीतेगा।”
वहीं जयंत चौधरी ने सिर्फ दो ट्वीट किए। इनमें से किसी भी ट्वीट में उन्होंने बैठक की फोटो तक नहीं डाली। इससे साफ समझा जा सकता है कि वो किस कश्मकश के दौर में चल रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यूपी जीतने के लिए सपा और कांग्रेस का हाथ मिलाना ही होगा। सपा INDIA गठजोड़ की सबसे अहम कड़ी है। क्योंकि कोई भी गठबंधन देश में बिना यूपी को साधे सफल नहीं हो सकता है। इसलिए INDIA कामयाब तभी हो सकता है, जब सपा और कांग्रेस एक बार फिर से हाथ मिलाएं।इससे पहले 2017 विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। तब 403 सीटों में से कांग्रेस ने 105 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जबकि सपा 298 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में थी।
2017 चुनाव में सपा और कांग्रेस के गठबंधन को सिर्फ 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस को 7 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि सपा को केवल 47 सीटों पर कामयाबी मिली थी
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