NCP प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने बगावत कर दी, पढ़िए खबर

महाराष्ट्र में रविवार को एक राजनीतिक भूकंप आया। NCP प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने बगावत कर दी और 8 विधायकों के साथ शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। अजित ने NCP पर भी दावा करके चाचा को वही घुट्टी पिलाई है, जो 83 वर्षीय शरद पवार अपने पॉलिटिकल करियर में कई बार कर चुके हैं
साल 1977 की बात है। आपातकाल के बाद कांग्रेस दो गुटों इंदिरा की कांग्रेस (आई) और रेड्‌डी की कांग्रेस (यू) में बंट गई। शरद पवार कांग्रेस (यू) में शामिल हो गए।

1978 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए तो दोनों कांग्रेस अलग-अलग लड़ीं। जनता पार्टी कुल 288 में से 99 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन बहुमत से पीछे रह गई। इंदिरा की कांग्रेस को 62 और रेड्‌डी कांग्रेस को 69 सीटें मिलीं।

चुनाव के बाद दोनों कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल बने और नासिकराव तिरपुडे डिप्टी CM बने। सरकार के बनने के साथ ही कई नेताओं में असहमति भी बढ़ने लगी।

जुलाई 1978 में महाराष्ट्र के CM वसंतदादा पाटिल ने शरद पवार को घर पर खाने के लिए बुलाया। दरअसल, CM अपने युवा उद्योग मंत्री के साथ कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते थे। उमस भरी दोपहरी में शरद पवार CM के घर पहुंचे। उन्होंने CM के साथ कई मुद्दों पर चर्चा की और खाना खाया।

जब घर से चलने की बात हुई तो उन्होंने CM पाटिल के सामने हाथ जोड़कर कहा- दादा अब मैं चलता हूं, कोई भूल चूक हो तो माफ करना। तब CM वसंत दादा कुछ समझे नहीं, लेकिन शाम होते होते राज्य सरकार में बगावत की बात सामने आने लगी।

सरकार बने हुए साढ़े चार महीने ही हुए थे कि शरद पवार ने 40 विधायकों के साथ बगावत कर दी। इससे गठबंधन सरकार गिर गई। शरद पवार की महत्वाकांक्षा CM बनने की थी। उन्होंने अपनी ‘सोशलिस्ट कांग्रेस’ की ओर से जनता दल के साथ सरकार बनाने की पहल की।

18 जुलाई 1978 में शरद पवार 38 साल की उम्र में ‘प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी’ यानी प्रलोद की सरकार बनने के साथ महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने।
हालांकि ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी। जनता पार्टी में फूट पड़ गई। इंदिरा गांधी की सिफारिश पर डेढ़ साल बाद ही महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया और पवार की पहली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।
1980 में महाराष्ट्र सरकार के बर्खास्त होने के बाद पवार लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहे। हालांकि, इस दौरान महाराष्ट्र समेत देश में कई राजनीतिक बदलाव हुए। पंजाब में खालिस्तान आंदोलन बढ़ा और 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई।

साल 1984 में राजीव गांधी PM बने और कांग्रेस की कमान संभाली। यह वह दौर था जब कांग्रेस में युवा पीढ़ी को बढ़ावा दिया जा रहा था। पवार ने अपनी राजनीतिक आत्मकथा में लिखा है- ‘राजीव गांधी ने कांग्रेस में वापस आने और साथ काम करने की इच्छा जताई थी।’

हालांकि, महाराष्ट्र और कांग्रेस के कुछ नेता पवार की वापसी के खिलाफ थे। इसी दौरान राजीव गांधी की आंधी के सामने पवार 1984 में पहली बार बारामती से लोकसभा सांसद बने।

साल 1986 में राजीव गांधी के कहने पर वह कांग्रेस में लौट आए और महाराष्ट्र में फिर से सक्रिय हो गए। यह वह दौर था जब महाराष्ट्र में शिवसेना का प्रभाव बढ़ रहा था। ऐसे में कांग्रेस को राज्य में शरद के रूप में एक युवा नेतृत्व की जरूरत भी थी।
1988 में राजीव गांधी ने शंकरराव चव्हाण को अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया और शरद पवार दूसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
साल 1995 आते-आते गठबंधनों का दौर शुरू होता है। महाराष्ट्र में BJP-शिवसेना गठबंधन मिलकर सरकार बनाते हैं। ऐसे में पवार एक बार फिर से केंद्र की राजनीति में सक्रिय होते हैं और दिल्ली पहुंच जाते हैं।

अप्रैल 1996 में देश में लोकसभा चुनाव हुए। BJP भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार बनाने लायक उसके पास संख्या नहीं थी। इस लोकसभा चुनाव में ज्यादातर सीटें क्षेत्रीय पार्टियों के पास चली गईं। लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 129 सीटों पर क्षेत्रीय दलों का कब्जा हो गया। यहीं से क्षेत्रीय दलों के दबदबे की राजनीति शुरू हुई।

पवार कांग्रेस की ओर से लोकसभा में विपक्ष के नेता बने। कहा गया कि गठबंधन के इस दौर में पवार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की दौड़ में करीब पहुंचे थे।

कांग्रेस बहुमत में नहीं थी, लेकिन उसके समर्थन से सरकारें बन रही थीं। हालांकि, सोनिया गांधी के साथ उनके संबंध अच्छे नहीं रहे। इसकी वजह उस वक्त के कई सीनियर कांग्रेस नेता थे। इसी बीच सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने का फैसला किया और फिर कांग्रेस के अंदर का गणित भी बदल गया।

कांग्रेस के अंदर मौजूद एक बड़े वर्ग की राय थी कि सोनिया को प्रधानमंत्री बनना चाहिए। ऐसे में पवार को लगा कि अब उनका PM बनने का सपना पूरा होना मुश्किल है। ऐसे में 1999 में शरद पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP बनाई। कांग्रेस में पवार की यह दूसरी बगावत थी।
2 जुलाई 2023 को अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को उन्हीं की पॉलिटिकल भाषा में जवाब दिया है। अब देखना ये है कि क्या इस बगावत से अजित पवार का पॉलिटिकल करियर भी मजबूत होगा।