नासा की नई टेक्नोलॉजी का कमाल, 45 दिन में मुमकिन होगा पृथ्वी से मंगल का सफर

दुनियाभर के कई देश दशकों से मंगल ग्रह पर इंसान को भेजने की तैयारी कर रहे हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मुताबिक पृथ्वी से मंगल तक का सफर 7 महीने का होता है। मार्स पर अब तक गए सभी रॉकेट्स को लगभग इतना ही वक्त लगा है। हालांकि अब एक नई टेक्नोलॉजी की मदद से यह सफर मात्र 45 दिन का रह जाएगा।

इस नई टेक्नोलॉजी का नाम ‘न्यूक्लियर थर्मल एंड न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोपल्जन’ है। सरल भाषा में समझें तो नासा ह्यूमन मार्स मिशन के लिए एक ऐसा रॉकेट बनाने जा रहा है, जिसमें परमाणु ईंधन का इस्तेमाल किया जाएगा।
रॉकेट बनाने के लिए दो तकनीकों का इस्तेमाल होगा। पहली- न्यूक्लियर थर्मल प्रोपल्जन। इसमें न्यूक्लियर रिएक्टर होता है, जो लिक्विड हाइड्रोजन प्रोपेलेंट को गर्म करता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ऐसा करने पर प्लाज्मा बनेगा। यह प्लाज्मा ही रॉकेट के नॉजल से निकाला जाएगा, जिससे रॉकेट को आगे बढ़ने के लिए तेज गति मिलेगी। 1955 में अमेरिकी एयरफोर्स और एटॉमिक एनर्जी कमीशन ने ऐसा प्रोपल्जन सिस्टम बनाने की कोशिश की थी।

दूसरी तकनीक का नाम है न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोपल्जन। इसमें न्यूक्लियर रिएक्टर आयन इंजन को इलेक्ट्रिसिटी देता है, जिससे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड बनती है। यह फील्ड जेनॉन जैसी गैसों को रफ्तार देती है, जिससे रॉकेट को आगे बढ़ने की गति मिलती है। इस सिस्टम को बनाने की कोशिश भी 2003 और 2005 में की जा चुकी है।
नई टेक्नोलॉजी के जरिए वैज्ञानिक रॉकेट की परफॉर्मेंस को तकरीबन दोगुना कर सकेंगे। रॉकेट बनाने का यह कॉन्सेप्ट फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में हाइपरसोनिक्स प्रोग्राम एरिया लीड प्रोफेसर रेयान गोसे ने दिया है। इसका पहला फेज डेवलप करने के लिए उनके साथ 13 और लोगों कॉ रिसर्च में शामिल किया गया है। प्रोजेक्ट के लिए 12.5 हजार डॉलर यानी 10 लाख 18 हजार रुपए की शुरुआती रकम भी दे दी गई है।
फिलहाल हम जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसमें स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी से मंगल पर जाने के लिए 7 से 9 महीने का समय लगता है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि अगर हम इसी रफ्तार से इंसान को मार्स पर भेजेंगे, तो हर 26 महीने में एक फ्लाइट मंगल के लिए उड़ान भरेगी। साथ ही एक मिशन 3 साल तक ही चल सकेगा।

हालांकि नई तकनीक के जरिए मार्स पर जाने की राह आसान हो जाएगी। पृथ्वी से मंगल तक का सफर सिर्फ 6.5 हफ्ते का होगा, जिससे मिशन की लागत में कमी आएगी और वक्त में इजाफा होगा। स्पेस की माइक्रोग्रैविटी में लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियां होने का खतरा भी कम होगा। नासा का यह रॉकेट बनकर कब तैयार होगा, फिलहाल इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई है।
साल 2023 को स्पेस टेक्नोलॉजी के लिए स्वर्ण युग माना जा रहा है। वजह- 5 बड़े मिशन जो लोगों की अंतरिक्ष को लेकर समझ बढ़ाएंगे। ये हैं- यूरोपीय अंतरिक्ष एंजेसी के जुपिटर आइसी मून्स एक्सप्लोरर और सुपर हैवी स्पेसएक्स स्टारशिप की लॉन्चिंग। जापान के 8 सदस्यीय दल का मिशन डियरमून।
आने वाले समय में लोग सस्ता हवाई सफर कर सकेंगे। दरअसल, नासा और बोइंग एमिशन कम करने वाले सिंगल-आइजल विमान के निर्माण, टेस्टिंग और फ्लाइंग के लिए सस्टेनेबल फ्लाइट डेमॉन्स्ट्रेटर प्रोजेक्ट पर एकसाथ काम कर रहे हैं। नासा ने बुधवार को इस पार्टनरशिप की घोषणा की। ये विमान पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने के साथ फ्यूल भी बचाएंगे जिससे हवाई सफर सस्ता होगा।