इसरो और नासा के संयुक्त सहयोग से विकसित पृथ्वी अवलोकन उपग्रह निसार (NISAR) भारत आ चुका है। इसे अगले साल आंध्र प्रदेश से लॉन्च किया जाएगा।
यह सैटेलाइट आधुनिक एसयूवी के आकार का है, जिसे दक्षिणी कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) में विकसित किया गया है। इसरो की ओर से बताया गया है कि यह हमारी व्यापक संभावनाओं का एक उदाहरण है। 2,800 किलोग्राम के इस सैटेलाइट में 39 फुट का फिक्स्ड एंटीना रिफ्लेक्टर है, जो सोने की परत वाले तार की जाली से बना है। यह एंटीना में छोटे से छोटे बदलाव को पकड़ने की क्षमता है।
सैटेलाइट के पांच साल तक लगातार काम करने की उम्मीद है। इसरो ने इस परियोजना पर 788 करोड़ रुपए, जबकि नासा ने 80.8 करोड़ डॉलर का योगदान दिया है। इसका रडार इतना दमदार होगा कि यह 240 किलोमीटर तक के क्षेत्रफल की एकदम साफ तस्वीरें ले सकेगा। यह धरती का पूरा एक चक्कर लगाने में 12 दिन लेगा।यह सैटेलाइट बवंडर, तूफान, ज्वालामुखी, भूकंप, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्री तूफान, जंगली आग, समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी, खेती, गीली धरती, बर्फ का कम होना आदि की पहले ही जानकारी दे देगा। धरती के चारों ओर जमा हो रहे कचरे और धरती की ओर अंतरिक्ष से आने वाले खतरों की भी जानकारी इस सैटेलाइट से मिल सकेगी। पेड़-पौधों की घटती-बढ़ती संख्या पर नजर रखेगा। निसार से प्रकाश की कमी और इसमें बढ़ोतरी की भी जानकारी मिल पाएगी।
हां, इस सैटेलाइट से मिलने वाली हाई-रिजॉल्यूशन की तश्वीरें हिमालय में ग्लेशियरों की निगरानी में भारत और अमेरिका की सरकारों की मदद करेंगी। यह चीन और पाकिस्तान से लगी भारत की सीमाओं पर कड़ी नजर रखने में भी सरकार की मदद कर सकता है।
इसरो ने 1979 से अब तक 30 से अधिक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। इसका उद्देश्य बेहतर योजना, कृषि और मौसम से संबंधित स्पेस इनपुट हासिल करना है। निसार में सिंथेटिक अपर्चर रडार लगा है, जो देश के किसी भी अन्य उपग्रहों से मिलने वाली तस्वीरों की तुलना में अत्यधिक हाई रिजॉल्यूशन की इमेज भेजेगा। इसमें बादलों के पीछे और अंधेरे में भी देखने की क्षमता है। ये सबसे महंगे अर्थ इमेजिंग उपग्रहों में से एक होगा।