बॉलीवुड में मसाला फिल्मों के मास्टर कहे जाते थे मनमोहन देसाई। आज उनकी 29वीं डेथ एनिवर्सरी है। लॉस्ट एंड फाउंड (बिछड़ना और फिर मिलना) इस थीम पर उन्होंने इतनी फिल्में बनाईं कि ये बॉलीवुड का अपने-आप में एक नया जॉनर बन गया। कुली, मर्द, अमर अकबर एंथनी से लेकर तूफान तक उनकी सारी फिल्मों में परिवार के बिछड़ने और फिर मिलने की कहानी होती थी।
देसाई ने अमिताभ बच्चन के साथ लगातार 7 सुपरहिट फिल्में बनाईं, जिन्होंने बिग बी के करियर को नई ऊंचाई दी। मनमोहन देसाई ने कुल 23 फिल्में बनाईं, जिनमें 15 जबरदस्त सफल रहीं। खुद मनमोहन देसाई की कहानी कुछ कम फिल्मी नहीं थी। पिता कीकूभाई देसाई फिल्म प्रोड्यूसर थे, लेकिन जब मनमोहन महज 4 साल के थे, उनकी मौत हो गई। अपने पीछे परिवार के लिए वो ढेर सारा कर्ज छोड़ गए, जिसे चुकाने में सारी जायदाद बिक गई।
मनमोहन देसाई 20 साल की उम्र में फिल्म डायरेक्टर बने। फिल्म भी राज कपूर और नूतन को लेकर बनाई, जिसका नाम था छलिया। देसाई एकमात्र ऐसे डायरेक्टर हैं जिन्होंने एक के बाद एक 11 फिल्में जुबली हिट दीं, इनमें से 4 गोल्डन जुबली और 7 सिल्वर जुबली थीं।
देसाई की पत्नी प्रभा की भी कम उम्र में ही मौत हो गई। कुछ साल अकेले रहने के बाद एक्ट्रेस नंदा से प्यार हुआ, फिर इनकी सगाई हुई, लेकिन शादी के पहले ही एक हादसे में देसाई की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद नंदा ने भी कभी शादी नहीं की, ताउम्र वो मनमोहन देसाई की विधवा के रूप में रहीं।
मनमोहन देसाई का जन्म 26 फरवरी 1937 को मुंबई में हुआ था, लेकिन उनके पूर्वज गुजरात के थे। उनके पिता कीकूभाई देसाई भी फिल्म निर्माता थे और 1931 से 1941 तक वो पैरामाउंट फिल्म स्टूडियो के मालिक थे। उन्होंने ज्यादातर एक्शन फिल्में ही बनाईं।
जब मनमोहन देसाई 4 साल के थे, तभी उनके पिता कीकूभाई का निधन हो गया। उनके निधन की वजह ये बताई गई थी कि वो कई फिल्मों को बनाने की तैयारी में थे, इसके लिए उन्होंने बहुत ज्यादा पैसा मार्केट से उठा लिया था। वो पैसा चुका नहीं पा रहे थे और ब्याज बढ़ता जा रहा था। इसी तनाव में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई
एक समय था जब देसाई परिवार का फिल्म इंडस्ट्री में बहुत नाम था, लेकिन कीकूभाई के निधन के बाद उनका परिवार सड़क पर आ गया। इसके बाद मनमोहन देसाई की मां ने कर्ज चुकाने के लिए सारी प्रॉपर्टी बेच दी। बाद में परिवार ने कीकूभाई के छोटे से ऑफिस को अपना घर बना लिया
मनमोहन देसाई के बड़े भाई सुभाष भी फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने ही मनमोहन देसाई का नाम एक्शन फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के लिए सुझाया था। इसके बाद मनमोहन देसाई ने असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर लंबे समय तक काम किया।
एक दिन मनमोहन देसाई के भाई ने उनसे पूछा कि उन्हें किस तरह की फिल्में बनाने का मन है और वो उस फिल्म में किसे कास्ट करना चाहेंगे। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि वो फिल्म में राज कपूर और नूतन को लेना चाहेंगे
जब ये बात राज कपूर को पता चली तो उन्होंने कहा- ये कैसे हो सकता है। मनमोहन तो अभी बस 20 साल का है। वो कैसे फिल्म बना सकता है। इस पर सुभाष देसाई ने कहा था- राज साहब, जब आपने अपनी पहली फिल्म बनाई थी तो आप भी इसी उम्र के थे। अगर आप फिल्म बना सकते हैं, तो मेरा भाई क्यों नहीं फिल्म बना सकता है।
ये बात राज कपूर को बहुत पसंद आई, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि अगर मनमोहन फिल्म के गानों को सही ढंग से पर्दे पर उतारेंगे, तभी वो फिल्म को पूरा करेंगे, वर्ना वो फिल्म छोड़ देंगे। उस फिल्म का नाम था छलिया। इसका गाना “डम-डम डिगा- डिगा” को मनमोहन देसाई ने बेहतरीन ढंग से फिल्माया। जिसके बाद राज कपूर ने फिल्म पूरी की
मनमोहन देसाई अपने घर के सामने रहने वाली लड़की प्रभा को पसंद करते थे। रोज सुबह वो उसी समय पर घर से निकलते थे, जब प्रभा अपने घर से निकलती थीं। बस में भी उनके पीछे वाली सीट पर बैठा करते थे, लेकिन वो प्यार का इजहार करने में डरते थे।
प्रभा के घर वाले इस रिश्ते के लिए खिलाफ थे, लेकिन प्रभा ने कहा कि अगर उनकी शादी मनमोहन से नहीं हुई तो जिस भी लड़के का रिश्ता आएगा, वो उसे अपने दोस्तों के साथ मिलकर भगा देंगीं। उनकी जिद के आगे परिवार वाले मान गए और दोनों ने शादी कर ली। दोनों का एक बेटा है केतन देसाई, जो खुद भी फिल्म डायरेक्टर है
मनमोहन देसाई की जिंदगी में एक ऐसा भी समय आया, जब वो दो साल तक बेरोजगार रहे। फिर उन्होंने शम्मी कपूर के कहने पर एक अधूरी फिल्म को पूरा किया, जिसका डायरेक्टर फिल्म को आधी छोड़कर चला गया था। मनमोहन देसाई ने 500 रुपए प्रति दिन की फीस पर फिल्म को पूरा किया।
जब फिल्म की शूटिंग पूरी होने वाली थी तब उन्होंने कहा- मेरी फीस के पैसों से उन सीन को भी री-शूट कर लिया जाए, जो पिछले डायरेक्टर ने शूट किया था। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन नहीं कर पाई थी, लेकिन इसके जरिए मनमोहन देसाई का करियर फिर से चल पड़ा था। फिल्म का नाम बदतमीज था।
60 के दशक में अधिकतर फिल्में स्टूडियो में ही शूट कर ली जाती थीं। मनमोहन देसाई फिल्म ब्लफ मास्टर के गाने ‘गोविंद आला रे’ की शूटिंग रियल लोकेशन पर करना चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने पुलिस और लोकल गुंडों की मदद से इस गाने की शूटिंग पूरी की। इस तरह से ये बाॅलीवुड का पहला गाना बना, जिसे रियल लोकेशन पर शूट किया गया। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप हो गई थी, लेकिन इस गाने को दर्शकों ने बहुत पसंद किया था
इसके बाद 1977 में फिल्म अमर अकबर एंथनी रिलीज हुई। ये फिल्म सिने इतिहास की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म का आइडिया मनमोहन को एक दिन अखबार की एक खबर से आया था। खबर थी कि एक आदमी अपने तीन बेटों को पार्क में छोड़कर आत्महत्या करने चला गया। वो इस खबर के बारे में पूरे दिन सोचते रहे।
शाम को उनकी मुलाकात राइटर प्रयाग राज से हुई। प्रयाग राज ने उनकी कई फिल्मों की कहानी लिखी थी। उन्होंने प्रयाग राज को पूरी खबर बताई, फिर प्रयाग राज ने कहा- सोचो कि अगर उस आदमी ने आत्महत्या ना की हो और जब वो पार्क लौट कर आए तो उसकी हालत कैसी होगी। इसके बाद प्रयाग राज ने कहानी को और डेवलप करते हुए कहा- अगर उन तीनों बच्चों को अलग-अलग धर्म के लोग लेकर जाएं, तो आगे की कहानी कैसी होगी।
ऐसा करते-करते दोनों इस खबर पर कहानी बुनते गए और आधी रात इसी में गुजर गई। अगले दिन फिर दोनों की मुलाकात हुई और उन्होंने कहानी को आगे बढ़ाया। इस फिल्म की कहानी में मनमोहन देसाई की पत्नी ने भी अपना सुझाव दिया था। आखिरकार इसी खबर पर फिल्म बनी और इसने सफलता के झंडे गाड़ दिए।
मनमोहन देसाई फिल्म अमर अकबर एंथनी में अकबर के रोल के लिए ऋषि कपूर को कास्ट करना चाहते थे। इस रोल के लिए उन्होंने ऋषि कपूर से संपर्क किया तो पता चला कि वो राजस्थान में फिल्म लैला मजनू की शूटिंग में बिजी हैं, फोन पर दोनों की बात हुई।
मनमोहन देसाई ने कहा कि वो एक फिल्म बना रहे हैं, जिसमें उन्हें अकबर का रोल करना है। ये सुनते ही ऋषि कपूर ने मना कर दिया। वजह थी कि उनके दादा पृथ्वीराज कपूर अकबर के रोल में पहले ही नजर आ चुके थे। उनका मानना था कि अगर वो अकबर का रोल प्ले करते हैं तो उनकी तुलना दादा पृथ्वीराज से की जाएगी।
इस बात पर मनमोहन देसाई को बहुत गुस्सा आया, लेकिन वो ऋषि कपूर को मनाते रहे। जब उन्होंने ऋषि कपूर को बताया कि उन्हें मुगल बादशाह अकबर का रोल नहीं बल्कि एक चुलबुले शख्स का किरदार निभाना है, तब जाकर ऋषि कपूर इस रोल को करने के लिए राजी हुए
फिल्म अमर अकबर एंथनी के आखिरी सीन से जुड़ा एक मजेदार किस्सा साझा किया था। केतन ने बताया कि फिल्म के आखिरी सीन में तीनों बेटों का खून निकाल कर एक ही ड्रिप से मां को दिया जा रहा था।
इस सीन को देखकर एक अमेरिकन ऑथर कोनी हाहम मनमोहन देसाई से मिलने भारत चली आईं थीं। उनका कहना था कि कोई इतने शानदार तरीके से बेबुनियाद चीज को कैसे पर्दे पर दिखा सकता है।
जब वो मनमोहन देसाई से मिलीं तो उन्होंने कोनी हाहम को सेट दिखाया, शूटिंग लोकेशन पर ले गए और ये भी बताया कि वो शूटिंग करते हैं। मनमोहन देसाई का काम करने का तरीका उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होंने उनके ऊपर एक किताब Enchantment of the Mind: Manmohan Desai’s Films लिख दी।
मनमोहन देसाई को अपनी फिल्मों के गानों से बहुत प्यार था। एक बार वो अपनी एक फिल्म को थिएटर में देखने गए थे। जैसे ही फिल्म का गाना शुरू हुआ, एक दर्शक बाहर जाने लगा। उससे मनमोहन देसाई ने पूछा कि- कहां जा रहे हो?
उसने जवाब दिया – वॉशरूम जा रहा हूं।
देसाई बोले- अभी तुम बाहर नहीं जा सकते, फिल्म का गाना अभी शुरू हुआ है, उसको सुनकर ही जाना।
उनकी इस बात पर वो शख्स भड़क गया।
थिएटर के मैनेजर ने मनमोहन देसाई को समझाया कि यहां मौजूद सभी लोग जब चाहें बाहर जा सकते हैं। इस घटना के बाद मनमोहन देसाई ने कभी भी थिएटर में फिल्म नहीं देखी।
जब मनमोहन देसाई अपने करियर के पीक पर थे, तभी 1979 में उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद वो पूरी तरह से अकेले पड़ गए। पिता की ऐसी हालत देख कर बेटे केतन ने कहा- पापा जैसी आपकी फिल्मों का दूसरा पार्ट बेहतरीन होता है, वैसे ही आपकी लाइफ का सेकेंड हाफ बेस्ट होगा। बस खुद पर भरोसा रखिए
शशि कपूर ने मनमोहन देसाई के साथ 1973 में आई फिल्म ‘आ गले लग जा’ और 1979 में रिलीज हुई फिल्म ‘सुहाग’ में काम किया था। ये तस्वीर फिल्म सुहाग की शूटिंग की है।
मनमोहन देसाई का शशि कपूर के साथ प्रोफेशनल और पारिवारिक रिश्ता था। ये किस्सा भी मशहूर है कि शशि कपूर कहते थे कि मनमोहन देसाई उन्हें मारना चाहते थे।
शशि कपूर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा था कि मनमोहन देसाई को बहुत मजा आता था, जब वो शूटिंग के दौरान अपने एक्टर्स को खतरे में देखते थे। उन्होंने अपने करियर में उतने स्टंट कभी नहीं किए थे जितने उन्होंने मनमोहन देसाई की फिल्मों में किए थे।
फिल्म ‘आ गले लग जा’ के फाइनल एक्शन सीन की शूटिंग चल रही थी। इसी एक्शन सीक्वेंस के एक सीन में शशि कपूर को शीशे से टकराना था। मनमोहन देसाई ने इस सीन के लिए उनसे कहा- मैं चाहता हूं कि ये सीन तुम बिना बॉडी डबल के शूट करो। शशि ने ऐसा करने से मना कर दिया।
बाद में जब इस सीन को उनके बाॅडी डबल ने शूट किया तो उसका सिर बुरी तरह से जख्मी हो गया था और उसे 60 टांके लगे थे। इसके बाद शशि ने फिर मनमोहन देसाई से कहा- देखा तुम मुझसे ये स्टंट कराना चाहते थे, तुम मुझे मारना चाहते हो।
मनमोहन देसाई दर्शकों के हिसाब से फिल्में बनाने में विश्वास रखते थे। एक बार वो अपने बेटे केतन की फिल्म के सेट पर मौजूद थे। फिल्म के एक सीन की शूटिंग हो रही थी। उस सीन का 3 बार रीटेक लिया गया। तभी वहां मौजूद स्पॉट बॉय पर उनकी नजर पड़ी, जो अजीब सा चेहरा बनाए खड़ा था। उन्होंने उसको बुलाकर पूछा- क्या हुआ, कोई परेशानी है क्या। तुम ऐसे मुंह बनाकर क्यों खड़े हो।
स्पॉट बॉय ने जवाब दिया कि सीन का पहला टेक ही सही था, बाकी अंतिम के दोनों टेक सही नहीं लगे। इस बात को सुनने के बाद उन्होंने बेटे केतन को बुलाया और कहा- ये स्पॉट बॉय कह रहा है कि सीन का पहला टेक ही अच्छा था, तो तुम्हें उस शाॅट को ही फिल्म में शामिल करना चाहिए क्योंकि इस स्पॉट बॉय की तरह आम आदमी ही हमारा दर्शक है।
जब नंदा ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा, तो उनके काम और खूबसूरती से मनमोहन देसाई बहुत प्रभावित थे। ये बात उनके बेटे केतन को भी मालूम थी। जब पत्नी प्रभा का निधन हो गया था, तब वहीदा रहमान के साथ मिलकर बेटे केतन ने उन्हें और नंदा को करीब लाने में मदद की थी।
एक दिन वहीदा रहमान ने अपने घर डिनर पर मनमोहन देसाई और नंदा को इनवाइट किया था। वहीं पर मनमोहन देसाई ने नंदा को अपनी दिल की बात बताई जिसके बाद उन्होंने 1992 में 52 साल की उम्र में नंदा से सगाई कर ली। नंदा भी उन्हें बेपनाह चाहती थीं।
सगाई के 2 साल बाद ही अपने घर की बालकनी से गिरकर मनमोहन देसाई की मौत हो गई। मनमोहन देसाई के निधन के बाद नंदा पूरी तरह से अकेली हो गई थीं। उन्होंने घर से निकलना भी बंद कर दिया था और जब भी निकलतीं, सिर्फ सफेद साड़ी ही पहनती थीं। उन्होंने ताउम्र किसी से शादी नहीं की और पूरा जीवन विधवा की तरह गुजारा।
1 मार्च 1994 को मनमोहन देसाई की मौत को रहस्यमय बताया गया था। कहा जा रहा था उन्होंने सुसाइड की थी, वहीं कुछ लोगों का ये कहना था कि हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हुआ था। हालांकि उनकी मौत की गुत्थी आज भी अनसुलझी ही है।