साल 1992 के अतीत को भूलना चाहते हैं अयोध्या के मुस्लिम, जरूरत पड़ी तो महिलाओं को भेजेंगे बाहर

शासन-प्रशासन की सुरक्षा संबंधी तैयारियां आभास करा रही हैं कि फैसले की तारीख अब करीब है। बरवारी व कजियाना मोहल्ले के मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि अपनी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह से मुतमईन तो हैं लेकिन वर्ष 1992 के अतीत को भी भूलना चाहते हैं।
इस बार सबसे बड़ी राहत बाहरी लोगों का न होना है, इससे फैसले के दिन माहौल खुशगवार रहने की उम्मीद है। गुरुवार को अयोध्या के विवादित परिसर से मात्र दौ सौ मीटर की दूरी पर स्थित दो मुस्लिम मोहल्ले बरवारी व कजियाना में पहुंचकर माहौल का जायजा लिया।

दोनों मोहल्ले में लगभग 500 से अधिक परिवार आबाद हैं। इसमें 80 से अधिक घरों में मुस्लिमों की आबादी है। यलो जोन में बसे विवादित परिसर के सबसे करीब दोनों मोहल्लों की सबसे खास बात यह है कि वर्ष 1992 में विवादित परिसर के ढांचे को ढहाए जाने के बाद इसी मोहल्ले से हिंसा शुरू हुई थी।

बाद में बदले माहौल के बाद यहां पर फिर से मुस्लिम समुदाय के लोग वापस आकर रहने लगे हैं। गुरुवार को मोहल्ले की गलियों को बैरिकेडिंग के जरिए बंद किया जा रहा था लेकिन मोहल्ले वासियों को इन बैरिकेडिंग व सुरक्षा बलों का कोई खौफ नहीं था।
पार्षद हाजी असद का कहना था कि वर्ष 1992 जैसा कोई माहौल नहीं है। बाहरी लोगों की आमद न होना सबसे बड़ी राहत है। वह कहते हैं कि प्रशासन की सुरक्षा-व्यवस्था भी ठीक है लेकिन बैरिकेडिंग लगाने में कुछ जल्दी की जा रही है।

12 रबी-उल-अव्वल निपटने के बाद यह कार्य किया जाना था। मोहल्लेवासी मो. इश्हाक का कहना है कि सब कुछ सामान्य है। कोई विशेष बात नहीं है। मोहम्मद मोहसिन कहते हैं कि अभी तक कोई दिक्कत नहीं है। मोहल्ले के लोगों को पुलिस ने आने-जाने की पूरी छूट दे रखी है।

गुलजार का मानना रहा कि सब कुछ ठीक है लेकिन 92 की घटना के अतीत को भी भूलना जरूरी है। कन्हैया लाल का मानना था कि हालत अभी तक पहले की तरह सामान्य हैं, पुलिस व प्रशासन का पूरा सहयोग है। बिलाल अहमद का मानना रहा कि यलो जोन में विवादित परिसर के सबसे करीब होने के कारण अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से सुदृढ होनी चाहिए।

बूट की टाप व बैरिकेडिंग से नहीं लगता डर
यलो जोन के बसे बरवारी व कजियाना के मुस्लिम समुदाय का मानना है कि बूट की टाप व बैरिकेटिंग से अब बिल्कुल डर नहीं लगता है। रिजवान अहमद का मानना है कि दोनों मोहल्लों के लिए यह सामान्य बात है। अभी पूर्ववत महीनों में धर्म संसद के दौरान भी यहां की गलियों के रास्तों पर बैरिकेडिंग की गई है। इसी प्रकार अन्य मौकों पर यह सब कुछ होता रहा है। इसलिए आदत सी हो गई है।

जरूरत पड़ी तो महिलाओं व बुर्जुगों को भेजेंगे बाहर
बरवारी व कजियाना के मुस्लिम समुदाय का मानना है कि पलायन का कोई इरादा नहीं है। जब वर्ष 1992 में यहीं पर रहे तो अब जाने का प्रश्न नहीं है। आसिफ, राशिद सहित अन्य मुस्लिम युवाओं का मानना है कि अगर कुछ माहौल में खराबी दिखती है तो महिलाओं व बुर्जुगों को रिश्तेदारों के यहां भेज देंगे। बाकी पलायन जैसी किसी बात का इरादा नहीं है।

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