‘2019 की बात है, तारीख थी 21 अप्रैल। दिन रविवार था। श्रीलंका के तीन शहरों में एक के बाद एक 6 ब्लास्ट हुए। ब्लास्ट करने वाले मुस्लिम संगठन से जुड़े थे। इसके बाद तो सरकार और लोग हमें शक की नजरों से देखने लगे। मुसलमानों से सामान खरीदना बंद कर दिया, हमारे ऑटो में नहीं बैठते थे। कई जगह मस्जिदें तोड़ दी गईं। पर जब से देश में आर्थिक संकट आया है, सब बदल गया। अब लोगों का ध्यान जिंदा रहने पर है। इसलिए वो नफरत खत्म हो गई।’
ये फारुख जाबरान हैं। श्रीलंका की राजधानी कोलंबो की अब्दुल हमीद स्ट्रीट पर रेस्टोरेंट चलाते हैं। कोलंबो की ज्यादातर मुस्लिम आबादी इसी इलाके में रहती है।
फारुख ने जिस सीरियल ब्लास्ट की बात की, वे क्रिश्चियंस के त्योहार ईस्टर पर हुए थे। सुसाइड बॉम्बर्स ने तीन चर्च, तीन होटल और एक गेस्ट हाउस को निशाना बनाया था। इससे श्रीलंका में मुस्लिमों के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा। लोग उनसे दूरी बनाने लगे। इसके बाद कोरोना और आर्थिक संकट ने कारोबार का नुकसान किया।
‘अब ऐसी कंडीशन तो नहीं हैं, लेकिन इकोनॉमिक क्राइसिस के बाद कारोबार को बहुत नुकसान हो रहा है। पहले लोग हमारी दुकानों से सामान नहीं खरीद रहे थे, अब सामान तो है, लेकिन लोगों के पास पैसे नहीं हैं। हम परेशान हैं। हमारा लिविंग कॉस्ट बढ़ रहा है और इनकम घट रही है। खाना, रहना और बिजली सब कुछ महंगा हो गया है।’
‘श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय को आर्थिक मदद की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि वो मुस्लिमों को काम के मौके दिलाए, पढ़ाई और इलाज की सुविधाएं दे, मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए कड़े कानून बनाए।’
फारुख के बाद हम कोलंबो की एक मस्जिद के मौलाना हाफिज अब्दुल हफील मौलवी से मिले। वे कहते हैं, ‘अभी चीजें बेहतर नजर आ रही हैं, लेकिन 2019 के बाद हमने जो झेला, उसे याद भी नहीं करना चाहते। 2019 के बाद मुस्लिमों, मस्जिदों और उनकी संपत्तियों पर बहुसंख्यक सिंहली बौद्धों की भीड़ ने हमले किए थे।’
‘सरकार कहती है कि इन दंगों में सिर्फ एक मौत हुई थी। हमें पता है ये संख्या ज्यादा थी। तब 100 से ज्यादा गाड़ियां, मुस्लिमों के 540 से ज्यादा घर और प्रॉपर्टी बर्बाद कर दी गई, उन्हें लूटा गया। मुस्लिम इतना डर गए थे कि उन्होंने धर्म के हिसाब से कपड़े पहनना और पब्लिक प्लेस पर अपने कल्चर को फॉलो करना बंद कर दिया था। हमारी महिलाओं ने कई दिनों तक नकाब नहीं पहना।’
मौलाना हाफिज अब्दुल कहते हैं, ‘इकोनॉमिक क्राइसिस ने देश के लोगों को मुसीबत में डाला, लेकिन इसने हमारी मदद भी की। देश को टूटने से बचा लिया। आर्थिक संकट की वजह से लोगों का ध्यान रोजी-रोटी पर चला गया।’
‘ईस्टर धमाकों से आम मुस्लिमों का कोई लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद हमें परेशानी उठानी पड़ी। हालात इतने खराब हो गए थे कि हम दिन में सिर्फ एक बार खाना खा पाते थे।’
‘श्रीलंका में हमारे साथ हमेशा से अच्छा व्यवहार होता रहा है। हम सभी मिलजुल कर भाईचारे से रह रहे थे, लेकिन ब्लास्ट के बाद हमें पहली बार अहसास हुआ कि हम इस देश में अल्पसंख्यक हैं। श्रीलंकाई मुस्लिम सभी धर्मों के लिए बहुत दयालु रहे हैं। अब हम फिर एकजुट हो चुके हैं। उम्मीद है कि हम आर्थिक संकट से भी जल्दी बाहर आ जाएंगे।’
इस मसले पर हमने श्रीलंका के सीनियर जर्नलिस्ट फजलुल्ला से बात की। वे कहते हैं, ‘तीन साल पुराना हमारा इतिहास आंसुओं से जुड़ा है। हम सदियों से एक होकर रहते थे। हमने हमेशा सभी की मदद की। यही वजह है कि राजाओं के दौर में हमें खाना बनाने से लेकर दरबार तक में खास जगह मिली।’
‘2019 के बाद हमने बहुत कुछ खोया है। अपने दोस्त खो दिए, नौकरियां जाने लगीं और बिजनेस चौपट हो गया। कुछ साल के अलगाव के बाद सब फिर एक हो रहे हैं। आर्थिक संकट दूर करने के लिए सभी साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’
लोगों से मिलने के बाद हम देश की सबसे चर्चित लाल मस्जिद में पहुंचे। इसे ‘जमी-उल-अल-फर जुम्मा मस्जिद’ के नाम से भी जाना जाता है। ये कोलंबो के पेट्टा में है। शनिवार का दिन था, इसलिए मस्जिद के अंदर और बाहर बहुत भीड़ नहीं थी।
मस्जिद के अंदर हमें विदेशी टूरिस्ट भी दिखे। यहां का स्टाफ हर धर्म से जुड़े लोगों को मस्जिद दिखाता है और उसके बारे में बताता है। मस्जिद के गेट पर मिले इरशादउल्ला ने बताया कि ये मस्जिद 16वीं शताब्दी में बनाई गई थी। ईस्टर ब्लास्ट पर इरशादउल्ला ने कहा कि अब पुरानी बातें उठाने का फायदा नहीं है। ये धार्मिकस्थल है और हम सभी का खुले मन से स्वागत करते हैं।