लखनऊ के संगीत नाट्य एकेडमी में बुधवार को नाटक ‘शहीद भगत सिंह’ का मंचन हुआ। इस नाटक की प्रस्तुति नई दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की नौटंकी कार्यशाला द्वारा हुई। देशभक्ति से भरपूर इस नाटक का लेखन शेषपाल सिंह ने किया और निर्देशन आतमजीत सिंह ने किया।
नाटक में जलियांवाला बाग के बाद की कहानी दर्शकों को दिखाई गई। जलियांवाला बाग कांड और करतार सिंह ‘सराबा’ को मिली फांसी का गहरा असर भगत सिंह के दिल पर पड़ा। उनके पिता, दादा, चाचा भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे। उधर भगत सिंह ने सुखदेव, भगवती चरण, एहत्तन इलाही आदि के साथ मिलकर ‘भारत नौजवान सभा’ का गठन किया। घरवालों के दबाव के बावजूद वो शादी से इंकार कर देते हैं और लाहौर छोड़कर बलवंत सिंह नाम से कानपुर चले जाते हैं।
वहां वो गणेश विद्यार्थी के साथ पत्रकारिता करने लगते हैं। आगे चलकर वो विभिन्न प्रदेशों के क्रांतिकारी संगठनों को मिलाकर ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ का गठन करते हैं। निरंतर देश की सेवा करते हुए भगत सिंह लाला लाजपत राय की शहादत का बदला पुलिस अफसर सांडर्स को मारकर लेते हैं।
उनके एक के बाद एक संघर्षों को देख दर्शक काफी प्रेरित हुए। आगे नाटक में दिखाया गया कैसे भगत सिंह भेष बदल कर दुर्गा भाभी को लाहौर से बचाकर लाते हैं। वहीं असेंबली में किसानों, मजदूरों के शोषण के लिए बने बिल के विरोध में बम फेंक अपनी आवाज बुलंद करते हैं। अंत में सांडर्स की हत्या के जुर्म में उन्हें दिल्ली से लाहौर जेल भेज दिया जाता है।
जेल में भी अपनी क्रांति से वो पीछे नहीं हटे। जेल में खराब व्यवस्था के चलते वो अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल करते हैं। इनके साथी जय गोपाल सरकारी गवाह बन भगत सिंह और उनके साथियों के खिलाफ गवाही देते हैं। जिसके बाद 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई जाती है।
अंत में 23 मार्च शाम 7:10 पर फांसी से पहले मजिस्ट्रेट इनकी अंतिम इच्छा पूछता है। जिसका तीनों वीर जवाब देते हैं, “देश की पूर्ण स्वाधीनता”।