शैल आधार से जीवाश्म निकालने की विधि एक प्रकार की कला है। इस वषय में कोई पक्के नियम नहीं बतलाए जा सकते, क्योंकि भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याएँ सामने आती हैं। किस विधि से और कैसे जीवाश्म को प्रस्तर से अलग किया जा सकता है, इसको एक अनुभवी जीवाश्म विज्ञानी जीवाश्म को देखकर समझ लेता है। जिन शैल आधारों में जीवाश्म खचित रहते हैं वे मृदु मृदा से लेकर सघन शैल तक होते हैं, जिनकी कठोरता इस्पात के बराबर हो सकती है। जीवाश्म की कठोरता की सीमा में इतना अधिक अंतर नहीं होता। जीवाश्म निकालते समय जीवाश्म विज्ञानी का यह ध्येय होता है कि जीवाश्म को बिना किसी प्रकार क्षति पहुँचाए शैल से पृथक् कर दे।
यदि आधार जीवाश्म की अपेक्षा मृदु प्रकृति का है, तो उसे सुगमतापूर्वक एक ब्रुश की सहायता से हटा सकते हैं। यदि जीवाश्म अबद्ध चूनापत्थर में खचित पाए जाते हैं, तो उसे भी हम दाँत साफ करनेवाले ब्रुश की सहायता से अलग कर सकते हैं। यदि शैल आधार चाक प्रकृति का है तो दंत उपकरण में भ्रमित ब्रुश की सहायता से उसे अलग कर सकते हैं।
अन्य अवसरों पर जब जीवाश्म भंगुर हो और बड़ी दृढ़ता के साथ शैल के आधार में जुड़े हों तब हथौड़े मार मारकर जीवाश्मों का अलग करना कठिन होता है। ऐसी दशा में प्रस्तर को कई बार गरम करके तुंरत पानी में डाल देने से, जीवाश्मों का प्रस्तर से अलगाव सरलता से हो जाता है। बालू और अन्य चूनेदार शैलों स फोरैमिनीफेरा जैसे जीवाश्मों के निकालने में, शैल को पहले तोड़ लेते हैं और फिर उसको कई प्रकार की चलनियों में छान लेते हैं। इसमें जीवाश्म शैल भाग से अलग हो जाते हैं। जब शैल कठोर होते हैं तब दूसरा ढंग उपयोग में लाया जाता है। शैल को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लेते हैं और फिर उनको इतना गर्म करते हैं कि वे पूर्णत: सूख जाएँ और फिर उनको इसी गर्म अवस्था में ही ठंडे पानी में डाल देते हैं। इस प्रकार से कठोर मृदा कीच में अपविघटित हो जाती है और फिर अंत में जीवाश्मों को प्रस्तर भाग से धो करके अलग कर लेते हैं।
जब यांत्रिक रीतियों से जीवाश्मों का पृथक्करण संभव नहीं होता तब रासायनिक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। इनमें सबसे सरलतम ऋतुक्षरण की विधि है, जो बहुत सी दशाओं में बिना जीवाश्मों को किसी प्रकार हानि पहुँचाए हुए शैल आधार को अपघटत कर देता है। बहुत ही तनु अम्ल के उपयोग में लाने से यह क्रिया शीघ हो जाती है। यहाँ यह बतला देना ठीक होगा कि अम्ल का प्रयोग बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए, क्योंकि अधिकांश जीवाश्मों के पंजर चूनेदार होते हैं और उनपर अम्ल का प्रभाव तुरंत होता है।
साधारणत: कॉस्टिक पोटाश ठीक प्रकार का अभिकारक है, जिसका बिना किसी भय के उपयोग कर सकते हैं। इसके छोटे छोटे कणों को सूखी अवस्था में उस सारे शैल आधार पर डाल देते हैं जिसे हटाना होता है। चूँक कॉस्टिक पोटाश प्रस्वेद्य (deliquescent) प्रकृति का होता है। अत: यह आधार के अंदर प्रविष्ट कर जाता है और उसको अपघटित कर देता है। यह एकिनोडर्मा (Echinoderma), अथवा मोलस्क, को कोई क्षति नहीं पहुँचाता। ब्रैकियोपोडा (Brachiopoda) में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह इनके परतदार पंजरों में सुगमतापूर्वक प्रविष्ट कर जाता है, जिसके कारण इनकी परतें अलग हो जाती हैं। अंत में जीवाश्मों को अच्छी प्रकार जल से धो डालना चाहिए।
शेल (shale) जैस शैलों में परिरक्षित ग्रैप्टोलाइट (graptolite) और पादप जीवाश्म का पृथक्करण “स्थानांतरण विधि” से किया जाता है। इस पृथक्करण की मुख्य मुख्य बातें निम्नलिखित हैं :
(1) नमूने क वह तल, जिसमें जीवाश्म है, नीचे करके कैनाडा बालसम की सहायता से काच की स्लाइड में चिपका देते हैं।
(2) शेल का जितना भाग सुगमता से काटा या घिसा जा सकता हो उसे काट अथवा घिस लेते हैं।
(3) शेल तल को भिगो लेते हैं और फिर उसको पिघले हुए मोम में डुबा देते हैं। मोम आर्द्र तल से सुगमता से पृथक् हो जाता है और काच पर कोई रासायनिक क्रिया नहीं होने देता।
(4) शेल युक्त संपूर्ण जीवाश्म को हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के अम्लतापक (acid bath) में रख देते हैं। यह जीवाश्म को तनिक भी क्षति पहुँचाए बिना शेल भाग को गला देता है।
(5) धोने के उपरांत पादप अथवा ग्रैप्टोलाइट जीवाश्म को कवर ग्लास से ढँक देना चाहिए।
इस प्रकार से निकाले गए ग्रैप्टोलाइट और कुछ पादप जैसे कोमल जीवाश्मों के आधुनिक जीवों की भाँति सूक्ष्मदर्शी की सहायता से परिच्छेद बनाए जा सकते हैं। कठोर जीवाश्मों के भी परिच्छेद घिस करके बनाए जा सकते हैं। इसमें घिसते समय नियमित अवधियों पर फोटों लेना पड़ता है। इस विधि में सबसे बड़ा दोष यह है कि जिस जीवाश्म का परीक्षण इस विधि से किया जाता है वह नष्ट हो जाता है।