पाकिस्तान में बसने के लिए इंडियन पति को मीना शौरी ने छोड़ा, चंदे की रकम से हुआ था अंतिम संस्कार

इन दिनों एक गाना ट्रेंड में है…चन कित्था गुजारी आई रात वे…। कंपोजिंग नई है, लेकिन ये गाना करीब 74 साल पुराना है। ये फिल्माया गया था तब कि एक फेमस एक्ट्रेस मीना शौरी पर। मीना को लारा लप्पा गर्ल के नाम से भी जाना जाता है, 50 के दशक का ये गाना इन्हीं पर फिल्माया गया था। बॉलीवुड में मीना शौरी की कहानी हमेशा अनसुनी ही रही क्योंकि ये भारत छोड़कर पाकिस्तान में बस गई थीं।

जन्मीं भी वहीं थीं, पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में, लेकिन तब देश बंटा नहीं था। इनका असली नाम खुर्शीद बेगम था, जो लाहौर में ही पली-बढ़ीं। भारी गरीबी और मुफलिसी में दिन गुजरे। बड़ी बहन की शादी मुंबई के एक अच्छे घर में हो गई तो बहन के साथ ये भी लाहौर से मुंबई आ गईं। खूबसूरत थीं तो सोहराब मोदी ने इन्हें एक्ट्रेस बना दिया। खुर्शीद बेगम का फिल्मी नाम था मीना।

मीना ने 5 शादियां कीं, लेकिन कोई भी ज्यादा टिकी नहीं। 3 शादियां भारत में और 2 पाकिस्तान में। 1956 में ये अपने तीसरे पति के साथ एक फिल्म के सिलसिले में पाकिस्तान गईं तो फिर कभी नहीं लौटीं। पति को भारत लौटा दिया और खुद पाकिस्तान की होकर रह गईं। इसी पति के लिए ये मुस्लिम से हिंदू बनी थीं, लेकिन पाकिस्तान में बसने के लिए दोबारा इस्लाम कुबूल किया। पाकिस्तान में भी दो शादियां कीं, लेकिन वो भी नाकाम ही रहीं। इन्हें लक्स गर्ल ऑफ पाकिस्तान भी कहा जाता रहा। वहां उनकी जिंदगी आसान नहीं रही और मौत तो उससे भी बुरी थी।

17 नवंबर 1921। खुर्शीद जहां का जन्म ब्रिटिश इंडिया के रायविंड, पंजाब में बेहद गरीब परिवार में हुआ था। ये चार भाई-बहनों में दूसरी सबसे बड़ी बहन थीं। जमींदार खानदान से इनका ताल्लुक रहा, लेकिन जब पिता की सारी संपत्ति छिन गई तो उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं था। फिरोजपुर में इनके पिता ने चंद बिजनेस में हाथ आजमाया, लेकिन हर बार नाकामयाबी ही हाथ लगी। खुर्शीद बेहद छोटी थीं, जब पिता रंगाई के बिजनेस के लिए लाहौर शिफ्ट हो गए, लेकिन यहां भी बिजनेस डूब गया। आर्थिक तंगी से तंग आकर पिता मां और बहनों को खूब पीटा करते थे।
पिता ने खुर्शीद की बड़ी बहन वजीर बेगम की शादी एक सेटल लड़के से करवा दी, जिसके बाद वो बॉम्बे (अब मुंबई) आकर बस गईं। चंद सालों बाद जब पिता के जुल्म बढ़ने लगे तो बड़ी बहन वजीर ने खुर्शीद के लिए लड़का ढूंढने की मंशा से उसे और मां को भी अपने साथ रहने बॉम्बे बुला लिया।
मीना को हमेशा से ही अभिनय का शौक रहा, लेकिन मुस्लिम कंजर्वेटिव परिवार इसके खिलाफ था। एक दोस्त की मदद से मीना ने पिता से छिपते हुए लैला मजनू पर बने प्ले में हिस्सा लिया और लैला का रोल निभाया। 12 साल की मीना जैसे ही स्टेज पर परफॉर्म करने पहुंचीं, पिता को इसकी भनक लग गई। पिता गुस्से में उन्हें चलती परफॉर्मेंस से खींच लाए।

मीना का अभिनय इतना दमदार था कि उन्हें अधूरी परफॉर्मेंस के बावजूद कई नाटकों के ऑफर मिल रहे थे। घर में एक समय ऐसी तंगी आई कि पिता ने मीना को कोलकाता के एक प्ले की इजाजत दे दी, क्योंकि उन्हें इससे 350 रुपए फीस मिलने वाली थी। इजाजत तो मिल गई, लेकिन पिता ने इसी समय इनकी शादी करवाने और उन्हें लाहौर ले जाने का फैसला किया। मीना ने इस बार पिता के सामने घुटने नहीं टेके। झगड़ा हुआ और मीना बहन के साथ बॉम्बे में ही रुकी रहीं।
एक दिन मीना उर्फ खुर्शीद अपनी बहन और उनके पति के साथ सिकंदर फिल्म के मुहूर्त में गई थीं। खुर्शीद बेहद खूबसूरत हुआ करती थीं, इसी इवेंट में उन पर फिल्ममेकर सोहराब मोदी की नजर पड़ी। उन्होंने तुरंत खुर्शीद को सिकंदर फिल्म में एक रोल देने का फैसला किया। सोहराब मोदी ने ही फिल्मों के लिए खुर्शीद का नाम बदलकर मीना कर दिया। 1941 में रिलीज हुई ब्लॉकबस्टर हिट सिकंदर फिल्म मीना की पहली फिल्म बनी, जिसमें उन्होंने राजा तक्षीला की बहन का रोल प्ले किया।
सिकंदर फिल्म की शूटिंग करते हुए मीना को एक्टर-प्रोड्यूसर जगूर राजा से प्यार हो गया। दोनों ने इसी साल 1941 में शादी कर ली, लेकिन ये रिश्ता 6 महीने से ज्यादा चल नहीं सका।
सोहराब मोदी के मिनर्वा मूवीटोन प्रोडक्शन में बनी तीन और फिल्मों फिर मिलेंगे (1942), पृथ्वी वल्लभ (1943) और पत्थरों का सौदागर (1944) में भी मीना ने साइड लीड बनकर काम किया। मीना ने सोहराब के प्रोडक्शन से कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, ऐसे में उन पर दूसरे प्रोडक्शन की फिल्में साइन करने पर पाबंदी थी। कॉन्ट्रैक्ट के तहत मीना को हर महीने 650 रुपए फीस मिला करती थी।

इसी समय लाहौर के रूप के. शौरी मीना को लेकर शालीमार (1946) फिल्म बनाने के लिए बॉम्बे (मुंबई) आए, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट के चलते मीना वो फिल्म नहीं कर सकीं। रूप के. शौरी वापस लाहौर जाकर अपना बिजनेस करने लगे।
खुर्शीद काम के सिलसिले में लाहौर गईं, जहां उन्होंने दलसुख पंचोली की दो फिल्में शहर से दूर (1946) और अरसी (1947) साइन कीं। जैसे ही इस बात की भनक सोहराब मोदी को लगी तो उन्होंने मीना के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। कोर्ट केस हुआ और मीना पर 3 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। दरअसल उस जमाने में हर कॉन्ट्रैक्ट एक साल का होता था, लेकिन मीना के अनपढ़ होने का फायदा उठाते हुए सोहराब मोदी ने उनसे तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट बनवाया था।
कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने के लिए सोहराब मोदी ने मीना से 60 हजार रुपए मांगे, लेकिन ये उनके लिए एक बड़ी रकम थी। मीना ने इस समय सोहराब मोदी की पत्नी मेहताब की मदद ली। आखिरकार 30 हजार रुपए पर मामला सेटल किया गया। सोहराब से कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने पर मीना ने लाहौर में शहर से दूर और अरसी जैसी फिल्में कीं। बंटवारे से पहले लाहौर में उनकी आखिरी फिल्म पतझड़ रही, जो 1948 में रिलीज हुई।