डिटॉल की बोतल में भरकर पीती थीं शराब मीना कुमारी, जानिए कुछ खास

ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी को गुजरे आज 51 साल हो चुके हैं। हीरो इनके साथ फिल्में करने से डरते थे कि कहीं वो फिल्म में अनदेखे न रह जाएं। रानी की तरह जिंदगी जीती थीं, बिस्तर में रोज गुलाब के फूल बिछाकर सोती थीं और इंपाला कार से घूमा करती थीं, जो उस समय किसी के पास नहीं थी। दिलीप कुमार जैसे कलाकार भी इनके सामने सहम जाते थे और मधुबाला जैसी अदाकार भी इनकी फैन थी।
इन सबके बावजूद मीना की 38 साल की जिंदगी दर्दनाक रही। बचपन में पिता अनाथ आश्रम छोड़ आए, तो कभी पति कमाल अमरोही के जुल्मों से ये शराब की आदी हो गईं। इनके दर्द का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि फिल्मों में रोने के लिए कभी इन्होंने ग्लिसरीन का इस्तेमाल नहीं किया। आंखों से गिरने वाला हर आंसू असली था।
कभी पति के कहने पर उनके असिस्टेंट ने मीना को थप्पड़ मार दिया, तो कभी बुरी नजर रखने वाले डायरेक्टर ने बदला लेने के लिए इन्हें हीरो से 31 थप्पड़ पड़वाए।
बेटे की चाह रखने वाले अली बक्श के घर जब 1 अगस्त 1933 को बेटी का जन्म हुआ तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। पहले ही एक बेटी थी और गरीबी चरम पर थी। इतनी गरीबी की अस्पताल की फीस के पैसे तक नहीं थे। तंगहाल और निराश अली बक्श बेटी को अनाथाश्रम छोड़ आए। घर आए तो पत्नी इकबाल बेगम के समझाने पर उनका दिल पिघल गया। कुछ घंटों बाद वो बेटी को वापस ले आए और नाम दिया महजबीं।
मीना कुमारी पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन गरीबी के चलते ऐसा नहीं हो सका। जब थिएटर आर्टिस्ट अली बक्श के लिए घर चलाना मुश्किल हुआ तो वो 4 साल की मीना को सेट पर ले जाने लगे। एक दिन डायरेक्टर विजय भट्ट ने उन्हें अपनी फिल्म लेदरफेस (1939) में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कास्ट कर लिया। पहली फिल्म की उन्हें 25 रुपए फीस मिली। इसके बाद से ही फिल्मों में काम करते हुए महजबीं उर्फ मीना ने घर की जिम्मेदारी उठाई।
आधा दर्जन फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करने के बाद मीना को 13 साल की उम्र में बतौर हीरोइन फिल्म बच्चों का खेल में कास्ट किया गया। फिल्म रिलीज के 18 महीने बाद ही मां इकबाल बेगम के निधन से मीना बुरी तरह टूट गईं। मीना सदमे में थीं, लेकिन घर चलाने के लिए उन्हें शोक मनाने का भी समय नहीं मिल सका। सराय, पिया घर आजा, बिछड़े बलम जैसी फिल्मों से मीना को कोई खास पहचान नहीं मिल रही थी।
50 के दशक में मीना कुमारी सबसे कामयाब और खूबसूरत एक्ट्रेस हुआ करती थीं। एक बार उन्हें बड़े निर्देशक की फिल्म मिली, जिसका बड़ा रुतबा और दबदबा था। एक दिन शूटिंग से पहले वो डायरेक्टर मीना कुमारी के मेकअप रूम में पहुंच गया। वहां लंच के लिए टेबल पहले ही रखवा दिया गया था। उस डायरेक्टर ने टीम से पहले ही कह दिया था कि वो मीना के साथ अकेले उनके मेकअप रूम में लंच करेंगे, जिससे उनसे फिल्म पर बात की जा सके।
जैसे ही लंच शुरू हुआ तो वो डायरेक्टर टेबल के नीचे मीना कुमारी के पैर पर अपना पैर रखने लगा और हाथ करीब लाकर चूमने लगा। मीना कुमारी उसकी मंशा समझ गईं और जोर-जोर से शोर मचाने लगीं। बाहर खड़े लोग अंदर आ गए और सेट पर हंगामा हो गया। मीना कुमारी ने गुस्से में उस डायरेक्टर को पीटना शुरू कर दिया। डायरेक्टर चुप रहा और फिर सबको कहने लगा कि ये एक सीन की रिहर्सल थी। जो लोग सच्चाई जान चुके थे, उन्हें धमकी दी गई कि इस बात का जिक्र बाहर न हो, वर्ना नौकरी जाएगी।
उस समय तो डायरेक्टर खामोश रहा, लेकिन उनसे बेइज्जती का बदला लेने की ठान ली थी। कॉन्ट्रैक्ट के चलते मीना भी फिल्म नहीं छोड़ सकीं। शूटिंग शुरू हुई तो उस डायरेक्टर ने स्क्रिप्ट बदलवाते हुए मीना को थप्पड़ पड़ने का एक सीन डाल दिया। अचानक स्क्रिप्ट बदलने से हर एक्टर शॉक था, लेकिन डायरेक्टर की मनमानी के आगे किसी की नहीं चली। उस डायरेक्टर ने सीन शुरू करने से पहले कहा कि शॉट नजदीक का है, ऐसे में मीना को असली जोरदार थप्पड़ मारा जाए, जिससे रीटेक न करना पड़े।
डायरेक्टर के एक्शन बोलते ही भारी हाथ वाले एक एक्टर ने मीना को जोरदार थप्पड़ मारा। मीना हिल गईं और उनका गाल लाल पड़ गया। डायरेक्टर ने बदला लेने की मंशा से कहा, शॉट खराब था दोबारा करना पड़ेगा। मीना कुमारी समझ चुकी थीं कि उनसे बदला लिया जा रहा है, वो खामोश रहीं और ऐसे ही चुपचाप उन्हें 31 थप्पड़ खाने पड़े। इस बात के गवाह एक्टर अनवर हुसैन थे, जिन्होंने ये किस्सा बलराज साहनी से शेयर किया था।
1952 में कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को फिल्म अनारकली में साइन किया था। वैसे कमाल ने मीना को 5 साल की उम्र में तब देखा था जब वो एक चाइल्ड आर्टिस्ट की तलाश में थे, लेकिन तब बात नहीं बनी थी। 19 साल की मीना कमाल अमरोही की फिल्म अनारकली की हीरोइन बनीं जरूर, लेकिन एक बड़े हादसे का शिकार होने से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। कमाल अमरोही रोज फूल लेकर अस्पताल पहुंचते थे और घंटों मीना से बात करते थे। उस समय कमाल पहले ही दो शादियां कर चुके थे और मीना से दोगुनी उम्र के थे।
मीना कुमारी के पिता अली बक्श बेहद सख्त मिजाज के आदमी थे। वो मीना को खूब पाबंदियों में रखते थे। जब उन्होंने कमाल और मीना के बीच बातचीत बढ़ती देखी तो वो खुद अस्पताल में बैठने लगे। ऐसे में कमाल मीना खतों के जरिए बातचीत किया करते थे। 4 महीने तक साथ समय बिताते और बात करते हुए दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे। मीना के पिता को जैसे ही रिश्ते की भनक लगी तो उन्होंने पाबंदी बढ़ा दी और उन्हें फिल्म अनारकली छोड़ने को कहा।

अस्पताल से निकलने के बाद मीना कुमारी की फिजियोथेरेपी हुई। मीना को अकेले घर से निकलने की भी इजाजत नहीं थी। पिता रोजाना उन्हें छोटी बहन मधु के साथ 8 बजे सुबह क्लीनिक छोड़ते और ठीक 10 बजे लेने पहुंच जाते थे। पाबंदियां बढ़ीं तो प्यार और परवान चढ़ गया। मीना जानती थीं कि पिता नही मानेंगे तो एक दिन वो थैरेपी के बहाने क्लीनिक पहुंचीं। पिता के निकलते ही कमाल आए और मीना और उनकी छोटी बहन को साथ ले जाकर निकाह कर लिया।
वो तारीख 14 फरवरी 1952 थी, जब महज 2 घंटे में मीना-कमाल की सीक्रेट शादी हुई थी। दोनों तुरंत लौटे और पिता के साथ रोज की तरह घर आ गए। शादी के बावजूद मीना पिता के साथ ही रहती रहीं, लेकिन एक दिन राज खुल गया। पिता ने तलाक का खूब दबाव बनाया और घर में घूब हंगामा हुआ। जब मीना कुमारी ने कमाल की फिल्म दायरा साइन की तो पिता ने एक दिन उनके लिए दरवाजा ही नहीं खोला। मीना ने तुरंत गाड़ी घुमाई और कमाल के घर रहने पहुंच गईं।
जब मीना कमाल के घर पहुंची तो उन्होंने शर्तें रखीं। पहली शर्त किसी दूसरे डायरेक्टर की फिल्म नहीं करना। कोई लड़का घर छोड़ने नहीं आना चाहिए। शाम 6 बजे से पहले घर लौटना होगा। रिवीलिंग कपड़े नहीं पहनना होगा और कोई पुरुष उनके मेकअप रूम के अंदर नहीं आना चाहिए। मीना मान गईं और दोनों साथ रहने लगे। पिता की पाबंदियों के बाद मीना पर अब पति की पाबंदियां थीं।
फिल्म मैं चुप रहूंगी की शूटिंग के दौरान नरगिस और मीना कुमारी का कमरा आस-पास था। एक दिन नरगिस ने मीना के कमरों से चीखने की आवाजें सुनीं। थोड़ी देर बाद कमाल कमरे से निकलते दिखे। अगले दिन मीना कुमारी का चेहरा बेहाल था। एक बार जब साहेब बीवी और गुलाम के सेट पर मीना को घर जाने में देरी हुई तो पति के डर से उन्होंने रोते हुए शूटिंग की थी। कमाल सरेआम मीना कुमारी की बेइज्जती कर दिया करते थे और उन्हें अपशब्द कहते थे।
शादी के 8 महीने तक मीना ने सारी शर्तें मानीं, लेकिन फिर उन्होंने विरोध किया। घर में रोज झगड़े होते जिनका अंत मारपीट से होता। एक बार तो कमाल मीना की दूसरी फिल्मों में काम करने की जिद पर राजी हो गए, लेकिन फिर शर्त रख दी कि फिल्म साइन करने से पहले वो सारी स्क्रिप्ट पढ़ेंगे।
मीना कुमारी और कमाल की कोई संतान नहीं थी। दरअसल, मीना कुमारी मां नहीं बनना चाहती थीं। पहली बार मीना प्रेग्नेंट हुईं तो उनका मिसकैरेज हो गया था। इसके बाद मीना दो बार और प्रेग्नेंट हुईं, लेकिन दोनों बार उन्होंने बच्चा गिरा दिया, वो भी पति कमाल को बताए बिना। जैसे ही कमाल को ये बात पता चली तो उन्होंने गुस्से में मीना को जोरदार थप्पड़ मारा। मीना कुमारी के सौतेले बेटे ताजदार अमरोही ने एक इंटरव्यू में बताया कि मीना शादी के बाद भी फिल्मों की टॉप एक्ट्रेस रहना चाहती थीं, इसीलिए वो कभी बच्चा नहीं चाहती थीं, जबकि कमाल की सोच एकदम अलग थी।

शक्की मिजाज कमाल अमरोही, मीना कुमारी पर अपने असिस्टेंट बकर अली से नजर रखवाते थे। एक दिन जब असिस्टेंट बकर अली ने देखा कि गुलजार, मीना के मेकअप रूम में गए तो उन्होंने सरेआम मीना को थप्पड़ जड़ दिया। इस भारी बेइज्जती के बाद जब मीना ने शिकायत करने पति को कॉल किया तो भी उन्हें ही बातें सुनाई गईं।
असिस्टेंट के थप्पड़ से बुरी तरह टूट चुकीं मीना कुमारी ने तुरंत ही पति कमाल का घर छोड़ दिया और बहन के साथ रहने लगीं। मीना कुमारी डिप्रेशन में चली गईं, उन्हें क्रोनिक इन्सोम्निया (नींद न आने की बीमारी) हो गया। जब डॉक्टर के पास गईं तो डॉक्टर सईद तिमुर्जना ने उन्हें सलाह दी की रोजाना सोने से पहले एक ढक्कन ब्रांडी पिएं। कब वो एक ढक्कन ब्रांडी कई ग्लासों में तब्दील हो गई, किसी को नहीं पता।
लगातार शराब का सेवन करते हुए मीना कुमारी लगातार बीमार रहने लगीं। 1968 में मीना कुमारी को लिवर सिरोसिस का पता चला। जून 1968 में ही मीना को इलाज के लिए लंदन और स्विट्डरलैंड गईं। एक महीने बाद सितंबर में वो रिकवर होकर लौटीं जरूर, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुईं। मीना को बताया जा चुका था कि उनके पास ज्यादा दिन नहीं हैं।
लौटते ही मीना ने पहली बार कार्टर रोड, बांद्रा की लैंडमार्क बिल्डिंग की 11वीं मंजिल में अपार्टमेंट खरीदा। मीना कुमारी ने सालों पहले 1956 में पति कमाल से वादा किया था कि उनकी ड्रीम फिल्म पाकीजा में वही हीरोइन बनेंगी। बीमारी और तलाक के बावजूद मीना ने वो वादा निभाया और पाकीजा की शूटिंग पूरी की। शूटिंग के दौरान कई बार उनकी तबीयत इतनी बिगड़ी कि उन्हें सेट से ही अस्पताल ले जाया गया था। कई बार तो मीना की जगह बॉडी डबल को शूट पूरा करना पड़ता था।

कमाल अमरोही जानते थे कि शराब की लत से मीना की हालत बिगड़ती जा रही है, ऐसे में उन्होंने मीना को खूब समझाया। मीना ने वादा किया कि वो शराब नहीं पिएंगी। एक दिन जब कमाल अमरोही उनके घर पहुंचे तो देखा कि बाथरूम में रखी डेटॉल की बोतल में शराब भरी हुई है। मीना रोज चोरी-छिपे शराब पीती थीं।
मुमताज ने मीना कुमारी के कहने पर फिल्म गोमती के किनारे में काम किया था। वैसे तो फीस 3 लाख रुपए बनती थी, लेकिन मुमताज ने फीस नहीं मांगी। जब आखिरी दिनों में मीना बहुत बीमार रहने लगीं तो उन्होंने मुमताज को घर बुलाया। उन्होंने अपने सामने चंद पेपर तैयार करवाए और मुमताज को सौंप दिए। पेपर देखकर मुमताज हैरान थीं, क्योंकि मीना ने अपना कार्टर रोड स्थित बंगला उनके नाम कर दिया था।
3 फरवरी 1972 को पाकीजा फिल्म का प्रीमियर, मुंबई के मराठा मंदिर थिएटर में हुआ। मीना, कमाल के साथ ही पहुंचीं और उनके ठीक बाजू वाली कुर्सी पर बैठीं। फिल्म देखकर मीना ने कहा, मैं मान गई हूं कि मेरे पति एक मंझे हुए कलाकार हैं
28 मार्च को मीना कुमारी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां वो कोमा में चली गईं। तीन दिन के इलाज के बाद उनकी 31 मार्च 1972 को मौत हो गई। मीना कुमारी की मौत पाकीजा फिल्म के लिए फायदेमेंद साबित हुई और लोग उन्हें आखिरी बार देखने थिएटर जाने लगे। कुछ समय बाद फिल्म को ब्लॉकबस्टर घोषित किया गया, लेकिन अफसोस मीना पाकीजा की कामयाबी नहीं देख सकीं।

कमाल अमरोही के कहने पर मीना को रहमतबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया था। मीना ने मौत से कुछ समय पहले कब्र के पत्थर पर लिखने के लिए दो लाइन लिखी थीं- राह देखा करेंगे सदियों तक, हम चले जाएंगे जहां तन्हा।
मीना कुमारी की आखिरी फिल्म गोमती के किनारे थी, जो उनकी मौत के बाद रिलीज हुई। सावन, मीना की इतनी इज्जत करते थे कि उन्हें फिल्म में भी मीना नहीं बल्कि मीना जी नाम से क्रेडिट दिया गया था। अफसोस की मीना ये फिल्म देख नहीं सकीं। मीना की मौत के बाद सावन कई घंटों तक उनकी कब्र के पास बैठकर रोते रहे थे। कमाल अमरोही की आखिरी ख्वाहिश के अनुसार उन्हें 11 फरवरी 1993 में मीना की कब्र के ठीक बाजू वाली कब्र में दफनाया गया था।
मीना कुमारी की मौत के बाद नरगिस ने उर्दू मैगजीन के लिए एक कॉलम लिखा था। इसमें उन्होंने कहा, ‘मीना तुम्हें मौत मुबारक हो। मैंने ऐसा कभी पहले नहीं कहा। आज तुम्हारी बाजी तुम्हें मौत पर मुबारकबाद दे रही है और चाहती है कि अब कभी इस दुनिया में कदम मत रखना। ये दुनिया तुम जैसे लोगों के लिए नहीं है।’