बीएसपी सुप्रीमो मायावती को राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2009 में दायर एक याचिका को निपटा दिया. जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के बजट से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की जांच की मांग की गई थी. मायावती राज्य की मुख्यमंत्री थीं तो यह खर्च हाथी की मूर्तियों और निजी महिमामंडन पर किया गया था. यह फैसला उस दिन आया जब मायावती 69 साल की हो गईं. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रवि कांत और सुकुमार द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए निपटा दिया कि अधिकांश प्रार्थनाएं अप्रासंगिक हो गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग (ईसी) ने पहले ही इस मुद्दे पर दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं और मूर्तियों की स्थापना पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि वे पहले ही स्थापित हो चुकी हैं. वकीलों द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) में आरोप लगाया गया था कि 2008-09 और 2009-10 के राज्य के बजट से लगभग 2,000 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया था. जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तो उनकी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियों की स्थापना के लिए ये पैसा खर्च किया गया था.
मायावती ने अपने फैसले का बचाव किया
प्रकाश कुमार सिंह के जरिये से दायर याचिका में दावा किया गया था कि 60 हाथी की मूर्तियों की स्थापना पर 52.2 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो न केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी थी बल्कि चुनाव आयोग द्वारा जारी सर्कुलर के खिलाफ भी था. 2 अप्रैल, 2019 को मायावती ने अपने फैसले का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर उनकी जीवन-आकार की मूर्तियों और बीएसपी के चुनाव निशान की स्थापना ‘जनता की इच्छा’ का प्रतिनिधित्व करती है.
कांग्रेस-बीजेपी का दिया उदाहरण
उन्होंने अदालत को बताया था कि अतीत में कांग्रेस ने भी अपने नेताओं की मूर्तियों की स्थापना की थी. इनमें जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी वी नरसिम्हा राव शामिल हैं. उन्होंने गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में जानी जाने वाली सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति की स्थापना का भी उल्लेख किया था. इसके अलावा, बीएसपी सुप्रीमो ने कहा था कि भाजपा-नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में राज्य के खर्चे पर भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ति का निर्माण किया है.