माया-राज का रहा दस्तूर : पहले नौकरी लो, तब डिग्री दिखाओ

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल के दौरान ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में मैनेजरों के चयन में योग्यता को नजरअंदाज करते हुए राज्य के शीर्ष अधिकारियों ने अपने राजनीतिक आकाओं की टेलीफोनिक सिफारिश पर उम्मीदवारों का चयन किया।

चयनित उम्मीदवारों के पास साक्षात्कार के समक्ष अनिवार्य एमबीए की डिग्री नहीं थी। उन्हें मैनेजर के रूप में नियुक्त होने के बाद एमबीए कोर्स प्रारंभ करने और और साल के अंत में डिग्री प्राप्त करने का सुझाव दिया गया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस भर्ती घोटाले में उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। इस घोटाले में वरिष्ठ आईएएस व राज्य के प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) के अधिकारी शामिल हैं।

ग्रेटर नोएडा के विधायक धीरेंद्र सिंह द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय में दाखिल की गई शिकायत के आधार पर योगी सरकार ने कथित तौर पर कार्रवाई की है।

घोटाले को उजागर करते हुए धीरेंद्र सिंह ने आईएएनएस से कहा कि मैनेजर से लेकर चपरासी तक के पदों पर उम्मीदवारों का चयन करते हुए नियमों को ताक पर रख दिया गया और पात्रता मानदंडों को दर किनार कर दिया गया।

धीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘नेताओं के फोन पर भर्तियां की गईं। आश्चर्य की बात है कि घोटाला 2002 से शुरू हुआ, लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकारें जांच पर चुप रहीं। अंतत: दो महीने पहले मैंने योगी जी को भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखा, जो घोटाले में शामिल थे।’

धीरेंद्र सिंह ने नोएडा एक्सटेंशन में एक और गंभीर भ्रष्टाचार का मामला उठाया।

धीरेंद्र सिंह ने कहा कि पूछताछ के दौरान पता चला कि मैनेजर के पद के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम पात्रता मानदंड एमबीए डिग्री धारक होना था। लेकिन, बिना एमबीए डिग्री वाले उम्मीदवारों को चयन किया गया। कई साल बाद चयनित उम्मीदवारों ने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की।

विधायक ने कहा, ‘इसी तरह से श्रेणी-3 व श्रेणी-4 की नौकरियों में योग्यता स्तर को कम किया गया। 12वीं की बजाय 10वीं व 8वीं उत्तीर्ण उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियां उपहार के तौर पर दी गईं।’

उप्र कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के अनुसार, 58 से ज्यादा इस तरह की भर्तियां प्रकाश में आईं। जांच फाइलों में उलझी रही, इनसे पता चलता है कि नियमों की अनदेखी की गई और अयोग्य उम्मीदवारों का चयन किया गया।

अधिकारी ने खुलासा किया, ‘ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों ने राजनेताओं के दबाव में काम किया है। इस घोटाले में सिद्धांतों को पूरी तरह से अनदेखा किया गया।’

आश्चर्यजनक तौर पर जब मुलायम सिंह यादव ने मायावती की जगह 2003 में पद संभाला तो उन्होंने ग्रेटर नोएडा के सीईओ बृजेस कुमार को भर्ती घोटाला को लेकर एक जांच शुरू करने को कहा।

सूत्रों ने कहा कि बृजेश कुमार ने जांच करने के बाद भर्तियों को रद्द करने की सिफारिश की। लेकिन मायावती फिर से 2007 में मुख्यमंत्री बन गईं। आरोप है कि मायावती के निर्देश पर घोटाले की फाइल को बंद कर दिया गया।

सूत्रों ने कहा कि घोटाले में शामिल वरिष्ठ अधिकारियों ने भी मामले पर चुप्पी बनाए रखने की कोशिश की।

हालांकि, एक दशक बाद आदित्यनाथ ने अब घोटाले पर कार्रवाई की जाने की घोषणा की है। यह घोटाला भ्रष्ट नौकरशाही व राजनेताओं के गठजोड़ को दिखाता है।