अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की जिस तरह से वापसी हुई है, उसे लेकर अभी भी सवाल उठ रहे हैं। वापसी के दौरान अमरीकी सरकार के कई अधिकारियों की भूमिकाओं को लेकर आशंका जाहिर की जा रही है. रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ़ के अध्यक्ष जनरल मार्क ए मिले जनरल केनेथ मैकेंज़ी द्वारा वापसी की भूमिकाओं का निरीक्षण किया जा रहा है. ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं, जिससे पता चलता है कि अफगानिस्तान में मुसीबतें कम होने के बजाय बढ़ चुकी हैं. सशस्त्र सेवा समिति के सत्र के दौरान हुई चर्चा में यह सामने आया कि अमरीकी अधिकारी अफगान युद्ध की वास्तविकताओं इसके वर्तमान खतरों से अनभिज्ञ थे। सीनेटर जिम इनहोफे ने कहा कि अमरीका लगातार दबाव की स्थिति में काम कर रहा था. उस दौरान तालिबान क्षेत्र में हावी हो रहा था. उन्होंने कहा कि ” इस समय हम अफगान हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए पाकिस्तान सरकार की दया पर हैं”.
उन्होंने कहा कि इससे भी खराब स्थिति यह है कि अफगानिस्तान में अमरीका वास्तव में प्रमुख लक्ष्यों पर हमला नहीं कर सकता है. यहां पर अभी भी अमरीकी मौजूद हैं. उनका कहना है कि आत्मघाती हमलावर जिसने काबुल को निशाना बनाया था, वह इस बात को जानता था कि जितने अधिक अमरीकी अफगान यहां पर रह जाएंगे, उतना ही तालिबान को सौदेबाजी में लाभ मिल सकेगा. 14 सितंबर 2021 को केंद्रीय खुफिया एजेंसी का जो बयान सामने आया उसमें कहा गया ”हमे पहले से ही अफगानिस्तान में अल कायदा के संभावित खतरों के संकेत मिल रहे हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो यह सिर्फ बुरा नहीं, विनाशकारी है.
अफगान सेना ने साथ नहीं दिया
डिफेंस सेक्रेटरी ऑस्टिन का कहना है कि इस दौरान अफगान सैनिकों ने तालिबान के साथ सांठगांठ की. वे तालिबान से युद्ध लड़ने के इच्छुक नहीं थे. इस कारण अमरीकी सेना के सामने दुविधा की स्थिति थी. करीब 3 हजार अफगान सैनिक युद्ध लड़ने के मूड में नहीं थे.
दोहा समझौते ने अमरीकी सेना को कमजोर किया
एक अन्य सेनेटर ने कहा कि दोहा में तालिबान अमरीका के बीच चली शांति वार्ता ने भी अमरीकी सेना को कमजोर किया. इसके साथ अफगान सेना के मनोबल को भी कम किया. अफगान सेना के लिए इस वार्ता ने भ्रम की स्थिति उत्पन्न की है.