47 फिल्में डायरेक्ट कर चुके महेश भट्ट अकेले ऐसे फिल्म मेकर हैं, जिन्होंने हर तरह की फिल्में बनाईं

मशहूर फिल्म डायरेक्ट महेश भट्ट आज 75 साल के हो गए हैं। कोई 47 फिल्में डायरेक्ट कर चुके महेश भट्ट अकेले ऐसे फिल्म मेकर हैं, जिन्होंने हर तरह की फिल्में बनाईं। फिल्मों के लिए जितना चर्चाओं में रहे, उतना ही विवादों के कारण सुर्खियों में छाए। ये एकमात्र डायरेक्टर हैं जिन्होंने अपनी ही जिंदगी से प्रेरित 5 फिल्में बनाईं। इनमें से 3 एक्ट्रेस परवीन बाबी के साथ उनके संबंधों पर थीं।
‘पैसे लेकर आना, वर्ना घर मत आना’
मां की कही ये बात सुनकर 19 साल के महेश भट्ट एक दिन घर से निकल पड़े। ये दौर था 1968-69 के आसपास का। कड़ी धूप थी और क्या करना है इसका अंदाजा भी नहीं था। पिता नानाभाई भट्ट फिल्ममेकर थे तो महेश ने भी यही करियर चुना। वो सीधे पहुंच गए महबूब स्टूडियो। 60 के दशक में फिल्मों में करियर बनाने वालों का एक ही ठिकाना हुआ करता था…महबूब स्टूडियो। महेश भट्ट जैसे ही अंदर दाखिल होने लगे तो वॉचमैन ने उन्हें रोक लिया।
वॉचमैन ने पूछा- भैया, कहां जा रहे हो?
महेश भट्ट- राज खोसला साहब के दफ्तर जा रहा हूं। उन दिनों राज खोसला सीआईडी, मेरा साया, वो कौन थी जैसी हिट फि्ल्में बनाने के लिए जाने जाते थे।
वॉचमैन ने कहा- ऐसे ही किसी को अंदर नहीं जाने देते।
महेश भट्ट ने भी झूठ कह दिया- उन्होंने मुझे मिलने बुलाया है।
एक झूठ के सहारे वो राज खोसला के दफ्तर में दाखिल हो गए। जैसे ही बैठे तो पहला ख्याल आया कमरे में चल रहे एयरकंडीशन का, क्योंकि वो तपती धूप से आए थे, फिर नजर पड़ी उनकी कुर्सी के पीछे लगी गुरु दत्त की तस्वीर पर। राज खोसला भी कभी गुरु दत्त के असिस्टेंट हुआ करते थे।
बातें शुरू हुईं। राज खोसला का पहला सवाल था- फिल्म मेकिंग के बारे में कुछ जानते हो?
इस बार महेश भट्ट ने झूठ नहीं कहा। सीधे कह दिया- नहीं कुछ नहीं।
ये सुनकर राज खोसला ने कहा- अहा, जीरो शुरुआत करने के लिए सबसे बेहतरीन होता है।
बातों का सिलसिला चल पड़ा और राज खोसला ने महेश को अपना असिस्टेंट बना लिया।
करियर शुरू ही किया था कि एक रोज एक स्कूल के स्पोर्ट्स इवेंट में शामिल होते ही महेश भट्ट की नजर एक लड़की पर पड़ गई। वो ब्रिटिश मूल की अनाथ लॉरेन ब्राइट थीं, जो स्कॉटिश ऑर्फन स्कूल में पढ़तीं और रहती थीं। महेश भट्ट ने जैसे ही लॉरेन को देखा तो देखते ही रहे। वो दिन महेश भट्ट की जिंदगी के यादगार दिनों में से एक है
उस लड़की का चेहरा उनके जेहन में ऐसा चढ़ा कि उसे दोबारा देखने के लिए वो स्कूल की दीवार कूदकर अंदर दाखिल हो गए। लड़की तो नहीं दिखी, लेकिन महेश पकड़े गए। प्रिंसिपल ने वजह पूछी तो महेश ने सब सच बता दिया। प्रिंसिपल ने तुरंत लॉरेन की दादी को स्कूल बुला लिया। महेश की गलती का हर्जाना लॉरेन को भुगतना पड़ा। उसे स्कूल से तुरंत निकाल दिया गया। लॉरेन अनाथ थीं, तो अब उनकी जिम्मेदारी कौन लेता?
दादी ने महेश से कहा, अगर तुम इतने बड़े हो कि दीवार कूदकर स्कूल आ सकते हो, तो तुम इसकी जिम्मेदारी भी उठा लो। महेश के लिए ये सुनहरा मौका था। उन्होंने लॉरेन की जिम्मेदारी ली और उनका दाखिला एक हॉस्टल में करवा दिया। महेश ने लॉरेन को टाइपिंग की ट्रेनिंग दिलवाई, जिससे वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।

वहीं दूसरी तरफ महेश उस समय तक डालडा और लाइफबॉय जैसी कंपनियों के ऐड बनाने लगे थे। 1970 में जब लॉरेन ने पढ़ाई पूरी की तो महेश ने महज 21 साल की उम्र में उनसे शादी कर ली। लॉरेन ने शादी के लिए हिंदू धर्म अपना लिया और नाम भी किरण भट्ट कर लिया। शादी के दो साल बाद 1972 में महेश और किरण के घर बेटी पूजा का जन्म हुआ।
महेश भट्ट ने 3-4 साल राज खोसला को असिस्ट किया और फिर एक दिन उन्हें वो मौका मिल गया, जिसका उन्हें इंतजार था। 1972 में प्रोड्यूसर जॉनी बक्शी ने उनसे पूछा कि क्या वो उनके लिए एक फिल्म डायरेक्ट करेंगे। महेश भट्ट मान गए और 2 साल बाद 1974 में उन्होंने फिल्म ‘मंजिलें और भी हैं’ से बतौर डायरेक्टर अपने करियर की शुरुआत की।
1977 की एक शाम महेश भट्ट एक प्रोड्यूसर से मुलाकात करने जुहू स्थित स्टूडियो पहुंचे थे। तब तक करियर में 1-2 फिल्में ही की थीं। लिहाजा उन्हें पहचान मिलनी अभी बाकी थी। इंतजार में बैठे ही थे कि अचानक उनका ध्यान सैंडल की आवाज पर गया।
दूर से आ रही टक-टक की आवाज करीब आती गई। गौर किया तो देखा उस जमाने की बेहद खूबसूरत और बोल्ड एक्ट्रेस परवीन बाबी पास से गुजर रही थीं। परवीन ने सिगरेट जलाई और अकेले ही पीनी शुरू कर दी। ये देखकर महेश दंग थे, क्योंकि आखिरी बार उन्होंने सिर्फ अपनी नानी को सिगरेट पीते देखा था। ये उनकी परवीन से एकतरफा पहली मुलाकात थी।
समय बीता और महेश भट्ट के भाई मुकेश भट्ट ने अपनी एक फिल्म में परवीन बाबी को कास्ट कर लिया। वो महेश भट्ट की बतौर प्रोड्यूसर पहली फिल्म होने वाली थी, लेकिन फिल्म का प्रोडक्शन बीच में ही रुक गया। फिल्म तो बंद पड़ गई, लेकिन इसके जरिए परवीन बाबी और महेश भट्ट करीब आ गए।
उस समय परवीन का रिश्ता कबीर बेदी से खत्म हुआ ही था। कुछ समय बीता और दोनों एक ही घर में साथ रहने लगे। समय बीतता गया। कुछ दिनों में परवीन का बर्ताव बदलने लगा। एक दिन महेश उनकी फिल्म काला पत्थर के सेट पर गए। घबराई हुईं परवीन उन्हें देखते ही खामोश रहने का इशारा करने लगीं। परवीन ने धीमी आवाज में कहा, श्श्श्श….कुछ बोलना मत, इस कमरे में मेरी जासूसी करने के लिए माइक्रोफोन्स लगाए हुए हैं। वो लोग मुझे मारने की कोशिश कर रहे हैं। वो लोग मुझ पर झूमर गिराने की कोशिश कर रहे थे।
ऐसे ही एक दिन जब महेश, परवीन से मिलने घर पहुंचे तो वो घबराई हुईं बिस्तर के पास दीवार की तरफ चेहरा करके बैठी हुई थीं। लगातार बड़बड़ा रही थीं कि वो लोग मारने आ रहे। हाथ में चाकू, माथे पर पसीना और डर साफ जाहिर हो रहा था। जैसे ही घर के बाहर पहुंचे तो देखा परवीन की मां बेबस खड़ी थीं। उनके हावभाव से महेश समझ चुके थे कि परवीन ने ऐसा पहली बार नहीं किया था।
परवीन की बिगड़ती हालत देखकर महेश उन्हें डॉक्टर के पास ले गए। जांच में पता चला कि परवीन को पैरानॉइड सिजोफ्रेनिया है, वो लाइलाज बीमारी जिसमें मरीज को लगातार वहम होता है कि उसके आसपास के लोग उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
डॉक्टर की बातें सुनकर महेश को धक्का लगा। उनका करियर अभी शुरू ही हुआ था, इक्का-दुक्का फिल्में डायरेक्ट की थीं और घर में एक पत्नी और एक बेटी थी, जिन्हें उन्होंने परवीन के लिए छोड़ दिया था। लोगों के समझाने पर महेश भट्ट ने परवीन से दूरी बना ली, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने परवीन का साथ देने का फैसला किया। वो इलाज के लिए उन्हें देश के हर बड़े डॉक्टर के पास ले गए।
दवाइयों से परवीन की हालत में कुछ समय के लिए सुधार आया और इसी बीच महेश भट्ट की फिल्में नया दौर (1978) और लहू के दो रंग (1979) रिलीज हुईं। इन फिल्मों ने महेश को हिंदी सिनेमा में नामी डायरेक्टर्स के बीच जगह दिलाई। लहू के दो रंग वही फिल्म थी, जिसके लिए हेलन को उनके करियर का पहला अवॉर्ड मिला था।
फिल्मों में तो कामयाबी मिली, लेकिन दूसरी तरफ परवीन की हालत बदतर होती जा रही थी। एक दिन अचानक परवीन ने ये कहते हुए हंगामा खड़ा कर दिया कि एयरकंडीशन में चिप है, जो उनकी बातें रिकॉर्ड करती है। महेश ने उनकी तसल्ली के लिए एक मैकेनिक बुलाकर पूरा AC खुलवाया, लेकिन उन्हें तब भी तसल्ली नहीं हुई।
ऐसे ही एक रोज महेश भट्ट, परवीन के साथ दोस्त यू.जी. कृष्णमूर्ति से मिलकर घर लौट रहे थे। अचानक परवीन चिल्लाईं और कहने लगीं कार में बम है। परवीन लगातार कह रही थीं कि उन्हें बम की आवाज आ रही है, जबकि असल में ऐसा कुछ नहीं था।
जब महेश ने उन्हें समझाने की कोशिश की तो परवीन बम के डर से चीखने लगीं। सड़क पर तमाशा बन गया और महेश ने उन्हें टेक्सी से घर भेज दिया। सालों बाद महेश भट्ट ने ठीक इसी सीन को अपनी फिल्म फिर तेरी कहानी याद आई (1992) में इस्तेमाल किया। जिसमें उनकी बेटी पूजा भट्ट ने सिजोफ्रेनिया बीमारी की मरीज का रोल प्ले किया था।
डॉक्टर्स की सलाह थी कि अब परवीन को शॉक ट्रीटमेंट दिया जाना चाहिए, लेकिन महेश इसके खिलाफ थे। महेश को लगा कि शायद परवीन को चकाचौंध से भरे शहर और लोगों से दूर रखना चाहिए। बस इसी ख्याल के साथ वो परवीन को अपने साथ बैंगलोर ले गए।
बात तब बिगड़ी जब परवीन ने इलाज करवाने से साफ इनकार कर दिया। डॉक्टर्स ने महेश से कहा था कि अगर वो परवीन के साथ रहेंगे, तो उनकी जान को भी खतरा हो सकता है, क्योंकि उनकी कंडीशन बिगड़ती जा रही है। एक दिन जब महेश घर आए तो परवीन ने कहा- या तो मैं रहूंगी या डॉक्टर। महेश समझ गए कि परवीन अब कभी ठीक नहीं हो सकेंगी।
1980 में उन्होंने तुरंत अपना रिश्ता खत्म कर लिया और घर से निकल गए। कुछ समय बाद महेश को खबर मिली कि परवीन विदेश के एक आश्रम से अचानक गायब हो गई हैं।
ये अधूरी प्रेम कहानी 45 सालों बाद फिर ताजी हुई, जब 22 जनवरी 2005 को महेश भट्ट का मोबाइल फोन SMS से भर गया। वो हैदराबाद से मुंबई लौट रहे थे। एयरपोर्ट पर बार-बार बजते मोबाइल पर नजर पड़ी तो खबर मिली कि परवीन अपने अपार्टमेंट में मृत मिलीं।
उनके लिए यकीन करना मुश्किल था, लेकिन सच्चाई कब तक टाली जाती। जब महेश को पता चला कि कूपर अस्पताल में घंटों बाद भी कोई रिश्तेदार परवीन की बॉडी लेने नहीं पहुंचा तो उन्होंने खुद उनकी जिम्मेदारी उठाई और उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।
फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में महेश ने कहा था, वो मेरी कामयाबी का कारण थी। उससे अलग होने के बाद ही मैंने फिल्म अर्थ बनाई और कामयाबी हासिल की। जब 23 जनवरी को उसे दफनाया जा रहा था तब मुझे लगा कि मैं इसके बिना क्या होता। उसने मेरे अस्तित्व को अर्थ दिया।
परवीन से अलग होने के बाद महेश अपने परिवार के पास लौट गए और फिल्में बनाने पर ध्यान देने लगे। उन्होंने अपनी और परवीन की अधूरी प्रेम कहानी पर फिल्म अर्थ (1982) लिखी और डायरेक्ट की। इसके बेहतरीन डायलॉग के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड समेत 3 कैटेगरी में अवॉर्ड मिले।
1984 में आई फिल्म सारांश भी उन्होंने खुद लिखी और डायरेक्ट की, जिससे अनुपम खेर ने डेब्यू किया था। इसे भारत में बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला और ऑस्कर भेजा गया था। सारांश फिल्म बनाते हुए ही महेश भट्ट की सोनी राजदान से मुलाकात हुई, जो फिल्म की लीड एक्ट्रेस थीं। उस समय महेश शराबी बन चुके थे, लेकिन सोनी के आने से उन्होंने जिंदगी दोबारा जीना शुरू कर दिया।
तब तक महेश की बेटी पूजा 10 साल की हो चुकी थीं। एक दिन वो घर पहुंचे और बेटी को नींद से उठाकर कहा, मेरी जिंदगी में तुम्हारी मां के अलावा भी कोई महिला है और मैं उनसे शादी करने वाला हूं।
पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन जब ये बात मां किरण तक पहुंची तो उन्होंने विरोध किया। हालांकि तब तक वो सोनी से शादी करने का मन बना चुके थे। कई बार सोनी और किरण का झगड़ा भी हुआ, लेकिन इसके बावजूद महेश ने सोनी से 1986 में शादी कर ली। महेश पहली पत्नी को छोड़ना नहीं चाहते थे, ऐसे में उन्होंने और सोनी ने इस्लाम कबूल कर शादी की।
शादी के 2 साल बाद 1988 में सोनी राजदान ने बेटी शाहीन को जन्म दिया। शाहीन का जन्म महेश की जिंदगी में बड़ा बदलाव लेकर आया। वो शराब पीकर शाहीन को देखने पहुंचे, जैसे ही उसे हाथ में लिया तो उन्हें लगा कि बेटी ने उनसे मुंह फेर लिया। उस दिन महेश ने कसम खाई कि अब दोबारा कभी शराब नहीं पिएंगे। तब से लेकर आज तक उन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया।
जब महेश भट्ट और किरण भट्ट की बेटी पूजा भट्ट 17 साल की हुईं तो महेश भट्ट ने उन्हें अपनी फिल्म डैडी से फिल्मों में लॉन्च किया। उन्होंने पूजा को एक ऐसी लड़की का किरदार दिया था, जिसके रिश्ते उसके शराबी पिता (अनुपम खेर) से खराब रहते हैं। इस फिल्म ने पूजा को बेस्ट फीमेल डेब्यू का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिलवाया और अनुपम खेर को स्पेशल मेंशन नेशनल अवॉर्ड।
1990 में जब महेश भट्ट ने अपनी और किरण भट्ट की लव स्टोरी पर फिल्म आशिकी बनाई तो वो चाहते थे कि उनकी बेटी पूजा भट्ट ही उसमें मां किरण का रोल प्ले करें, लेकिन पूजा ने इससे साफ इनकार कर दिया। एक दिन महेश, पूजा के लिए साइनिंग अमाउंट लेकर पहुंच गए, लेकिन पूजा ने कहा कि वो दूसरी फिल्म में व्यस्त हैं और दूसरी किसी फिल्म में काम नहीं करेंगी, चाहे वो होम प्रोडक्शन में बनी पिता की ही फिल्म क्यों न हो।
पूजा के इनकार करने के बाद महेश भट्ट ने फिल्म में न्यूकमर मॉडल अनु अग्रवाल को फिल्म में लीड रोल दिया। वहीं राहुल रॉय और दीपक तिजोरी को भी उन्होंने आशिकी से ही लॉन्च किया। नए चेहरों के साथ फिल्म रिलीज हुई और इतनी जबरदस्त हिट रही कि डेब्यू एक्टर्स अनु और राहुल रातोंरात स्टार बन गए
फिल्म ने 4 फिल्मफेयर अवॉर्ड हासिल किए थे। इस फिल्म के गाने नजर के सामने से सिंगर अनुराधा पौडवाल को भी देशभर में पहचान मिली और साथ ही मिला दूसरा बेस्ट सिंगर फिल्मफेयर अवॉर्ड। फिल्म के ज्यादातर गाने कुमार सानु ने गाए थे, जिन्हें गाने अब तेरे बिन जी लेंगे हम के लिए करियर का पहला बेस्ट सिंगर फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था
फिल्म आशिकी को ठुकराने का अफसोस पूजा को हमेशा रहा। इस नुकसान की भरपाई महेश भट्ट ने फिल्म दिल है कि मानता नहीं (1991) से की। उन्होंने बेटी पूजा को लीड रोल दिया और साथ नजर आए आमिर खान। फिल्म दिल है कि मानता नहीं जबरदस्त हिट रही, जो पूजा के करियर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई। फिल्म के गाने चार्टबस्टर रहे। फिल्म के टाइटल सॉन्ग दिल है कि मानता नहीं के लिए अनुराधा पौडवाल को फिर बेस्ट सिंगर अवॉर्ड मिला।
महेश की पूजा भट्ट, संजय दत्त स्टारर फिल्म सड़क में सदाशिव अमरापुरकर ने महारानी का निगेटिव रोल निभाकर बेस्ट विलेन का पहला अवॉर्ड जीता। 1992 की फैंटेसी हॉरर फिल्म जुनून के बाद महेश भट्ट ने पूजा और राहुल रॉय को फिल्म फिर तेरी कहानी याद आई (1993) में लिया।
फिल्म में राहुल रॉय और पूजा भट्ट के बीच चल रही लव स्टोरी काफी हद तक महेश भट्ट और परवीन बाबी की कहानी दर्शाती थी। फिल्म के कई सीन महेश भट्ट की असल जिंदगी से प्रेरित हैं। फिल्म सर से महेश ने अतुल अग्निहोत्री को लॉन्च किया और इसी फिल्म से परेश रावल को करियर का पहला नेशनल अवॉर्ड मिला। कुणाल खेमू ने भी बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट इसी फिल्म से डेब्यू किया था।
1993 की फिल्म हम हैं राही प्यार के की बदौलत महेश को स्पेशल ज्यूरी के नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। फिल्म के गाने घूंघट की आड़ से की बदौलत सिंगर अलका याग्निक को उनके करियर का पहला नेशनल अवॉर्ड मिला था।
महेश भट्ट अपनी जिंदगी पर बनाई गई फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। साल 1998 में उन्होंने ऑटोबायोग्राफिल फिल्म जख्म बनाई, जिसे बेस्ट फिल्म, बेस्ट स्टोरी का अवॉर्ड मिला। इस फिल्म ने अजय देवगन को उनके करियर का पहला नेशनल अवॉर्ड दिलवाया था। कंगना रनोट ने भी महेश भट्ट के प्रोडक्शन की फिल्म गैंगस्टर से बॉलीवुड डेब्यू किया था। इस फिल्म के लिए कंगना ने 8 अवॉर्ड जीते थे।
महेश भट्ट ने अपने करियर की ज्यादातर फिल्में भाई मुकेश भट्ट के साथ विशेष प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले बनाई हैं। हालांकि साल 2021 में हुए मतभेद के बाद उन्होंने वो प्रोडक्शन छोड़ दिया। विवादों से उनका नाता कुछ यूं है कि जिया खान की मौत के बाद उनका महेश से नाम जुड़ा और सुशांत की मौत के बाद रिया चक्रवर्ती से। महेश भट्ट पर तो सुशांत की मौत से जुड़े होने के भी आरोप लगे, जिसका गुस्सा लोगों ने उनकी फिल्म सड़क 2 पर निकाला।
1999 की फिल्म कारतूस के 21 साल बाद महेश ने सड़क 2 से डायरेक्टोरियल डेब्यू किया था, जिसमें उनकी बेटी आलिया लीड रोल में थी। नेपोटिज्म के विरोध के चलते फिल्म फ्लॉप हो गई। कंगना रनोट ने भी एक इंटरव्यू में महेश पर संगीन आरोप लगाए थे।
कंगना का आरोप है कि महेश ने फिल्म वो लम्हे के एडिटिंग रूम में कंगना पर हाथ उठाने की कोशिश की थी, लेकिन पूजा भट्ट ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद कंगना को फिल्म वो लम्हे के प्रीमियर में आने से रोक दिया गया था। कंगना के अनुसार फिल्म धोखा ठुकराने से महेश गुस्से में थे।