महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के 14 दिन बाद भी नई सरकार गठन को लेकर संशय जारी है। बीजेपी और शिवसेना के बीच नई सरकार गठन को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। बीजेपी ने गुरुवार को राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से अवगत कराने के लिए राज्यपाल से मुलाकात की।
उधर शिवसेना ने भी अपने विधायकों के साथ मुंबई में बैठक की और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिवसेना अपने विधायकों को होटल में शिफ्ट कर रही है। शिवसेना बीजेपी से चुनाव पूर्व हुए 50: 50 वादे के तहत राज्य में दोनों पार्टियों के लिए ढाई-ढाई साल सीएम पद की मांग कर रही है, लेकिन बीजेपी ने ऐसे किसी वादे से इनकार करते हुए मांग खारिज कर दी है।
इन तमाम घटनाक्रमों के बावजूद अब तक नई सरकार गठन को लेकर स्थिति साफ नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल 9 नवंबर को खत्म हो रहा है। बीजेपी 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में इस बार 105 सीटें जीतते हुए सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि शिवसेना ने 56 सीटें जीती हैं, महाराष्ट्र में बहुमत का आंकड़ा 145 सीटों का है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर अगले दो दिनों में भी कोई दल सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर पाया तो क्या होगा, क्या राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा या फिर से चुनाव होंगे? आइए जानें।
महाराष्ट्र में अगर 9 नवंबर तक नहीं बनी सरकार तो क्या होगा?
-बीजेपी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है और फिर शिवसेना को मनाने और कुछ अन्य विधायकों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर सकती है। अभी बीजेपी बहुमत से 40 सीट पीछे है।
-अगर नई सरकार को लेकर जारी गतिरोध नहीं दूर होता है और बीजेपी सरकार बनाने का दावा नहीं पेश करती है, तो विधानसभा को सस्पेंडेड एनिमेशन में रखा जा सकता है और राज्य में दारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
-एक सूरत ये भी बन सकती है कि बीजेपी के दावा पेश करने में असफल रहने पर शिवसेना एनसीपी (54 सीट) और कांग्रेस (44 सीट) के समर्थन से सरकार बना सकती है। हालांकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार इन अटकलों को खारिज कर चुके हैं।
क्या विधानसभा कार्यकाल खत्म होते ही लग जाएगा राष्ट्रपति शासन?
महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है। अब सवाल ये है कि अगर शनिवार तक नई सरकार का गठन नहीं हुआ और नई विधानसभा का कार्यकाल शुरू नहीं हुआ तो क्या राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। तो इसका जवाब है-नहीं।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने एफपीजे से इस पर नियम को स्पष्ट करते हुए कहा कि 9 नवंबर तक नई सरकार न बनने के बावजूद राष्ट्रपति शासन लगना जरूरी नहीं है, क्योंकि जब तक राज्यपाल को इस बात का यकीन नहीं हो जाता कि कोई भी सरकार नहीं बना सकता है, तब तक वह राष्ट्रपति शासन की सिफारिश नहीं करता है।
सुभाष का ये भी कहना है कि हालांकि राज्यपाल को इस समय तक किसी एक दल या दलों को सरकार बनाने के लिए बुला लेना चाहिए था, लेकिन संविधान में इसके लिए कोई समयसीमा नहीं बताई गई है।
राज्यपाल के पास हैं सरकार गठन को लेकर कौन से अधिकार
संविधान के मुताबिक, नई सरकार गठन करवाना राज्यपाल का काम है लेकिन इसमें कितना समय लगेगा इसके लिए कोई तय समयसीमा नहीं है और ये राज्यपाल के विवक पर निर्भर करता है। उसे इसके लिए जितना उचित लगे वह उतना समय ले सकता है। ये प्रक्रिया नई विधानसभा का कार्यकाल शुरू होने के बाद भी जारी रह सकती है।
संविधान के मुताबिक, विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने और राष्ट्रपति शासन लागू होने के बीच कोई संबंध नहीं है। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के तुरंत बाद अगली विधानसभा अस्तित्व में आ जाएगी। अगली विधानसभा कार्यकाल की शुरुआत के लिए नई सरकार या राष्ट्रपति शासन की जरूरत नहीं होती है। सरकार गठन एक स्वतंत्र प्रक्रिया है।
राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या होगा?
जब राज्यपाल को ये लगता है कि कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो वह राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करता है। इसके बाद आर्टिकल 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, इसके बाद राज्य सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ जाता है और राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर प्रशासनिक कार्यवाही की अध्यक्षता करेंगे।
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए दोनों सदनों की मंजूरी जरूरी होती है। मंजूरी मिलने के बाद एक बार में अधिकतम छह महीने के लिए ही राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान अगर कोई दल सरकार बनाने लायक बहुमत जुटा लेता है तो राष्ट्रपति शासन हटाया जा सकता है।
राष्ट्रपति शासन को अधिकतम तीन साल से ज्यादा समय तक नहीं लागू किया जा सकता है और इसके लिए भी हर छह महीने में दोनों सदनों की मंजूरी लेनी पड़ती है।