(द दस्तक 24) महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हाल ही में एक लेटर पैड जारी किया है जिसमे उन्होंने लिखा है कि “इस लोकसभा चुनाव 2024 मे इंडिया गठबंधन ने महान दल को अपने गठबन्धन मे नही लिया था लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा. अखिलेश यादव जी ने महान दल से समर्थन माँगा था।महान दल का किसी भी पार्टी से गठबन्धन नही था और बड़ा चुनाव होने के कारण महान दल के पास कोई प्रत्याशी भी नही था इसलिए महान दल ने समाजवादी पार्टी को समर्थन दे दिया था।समर्थन देने के पहले सपा के वार्ताकार श्री उदयवीर सिंह जी से मैने जानकारी माँगी की क्या समाजवादी पार्टी गठबन्धन मे जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा तो नही आ रहे हैं, अगर ऐसा है तो मैं समाजवादी पार्टी को समर्थन नहीं करूँगा लेकिन उन्होने साफ इंकार कर दिया।इसलिए उस विषम परिस्थिति मे जब समाजवादी पार्टी को जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और पल्लवी पटेल ने छोड़ दिया था, तब मैं समाजवादी पार्टी के साथ चट्टान की तरह खड़ा हुआ और समर्थन दिया। लेकिन दूसरे चरण का चुनाव समाप्त होने के बाद समाजवादी पार्टी ने बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकारपार्टी का विलय कराकर बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर लोकसभा से अपना प्रत्याशी बना दिया, यहाँ तक तो ठीक था लेकिन समाजवादी पार्टी ने मेरे साथ पुनः 2022 का वही पुराना खेल शुरू किया जो स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर खेला था, समाजवादी पार्टी के मुखिया के इशारे पर महान दल का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली लोकसभाओं मे बाबू सिंह कुशवाहा का न सिर्फ फोटो लगाकर सम्मान दिया गया बल्कि जिस जन अधिकार पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय करा लिया गया, उस पार्टी का झंडा लगाकर प्रचार भी किया गया, जिसका सीधा मतलब ये है कि’ वोट महान दल से लो परन्तु श्रेय जन अधिकार पार्टी और बाबू सिंह कुशवाहा को दे दो’ जिससे महान दल को महत्व और सम्मान न मिल सके मैने इस बात का विरोध किया, समझाने का प्रयत्न किया लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया पूर्व के चुनावों की भांति पुनः ओवर-कॉन्फिडेंस हो गये हैं, उन्हें लगता है कि वो अधिकतर लोकसभा सीट लाखों वोटों से जीत रहे हैं इसलिए उन्हे अब महान दल की कोई आवश्यकता नहीं हैं।मा. अखिलेश यादव जी की आँख खोलने और समझानें के लिए शाहजहाँपुर की ददरौल विधानसभा के उपचुनाव मे जहाँ समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी महान दल के मजबूत जनाधार के कारण जीत रहा था, मैने अंतिम समय में उससे समर्थन वापस लेकर भाजपा प्रत्याशी को समर्थन देकर एकतरफा जिता दिया।लेकिन मेरे तमाम प्रयासों का कोई फायदा नही निकला, अब जबकि समाजवादी पार्टी, महान दल की लगातार उपेक्षा कर रही है, समाजवादी पार्टी ने महान दल को सीट नही दिया तो भी मै साथ आया लेकिन महत्व और नाम भी नहीं मिलेगा तो मैं साथ नही निभा सकता, इसलिए मै दुःखी मन से समाजवादी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले रहा हूँ।” देखना तो यह होगा कि अब समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ने से सपा या इंडिया गठबंधन पर क्या फर्क पड़ेगा।
अर्पित शाक्य (कानपुर मंडल संवाददाता)