5 साल बाद ट्रेन ब्लास्ट मामले में 7 आतंकियों को लखनऊ कोर्ट ने दी फांसी की सजा

लखनऊ की NIA कोर्ट ने 2017 में हुए भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन ब्लास्ट केस के 7 दोषियों को फांसी और 1 को उम्रकैद की सजा सुनाई। मंगलवार रात करीब 8 बजे यह फैसला आया। उस वक्त कोर्ट में आठों आतंकी मौजूद थे। ट्रेन ब्लास्ट में कुल 9 आतंकी शामिल थे। इनमें से एक का पहले ही एनकाउंटर हो चुका है।

इन्हें फांसी की सजा: 1. मोहम्मद फैसल, 2. गौस मोहम्मद खान, 3. मोहम्मद अजहर, 4. आतिफ मुजफ्फर, 5. मोहम्मद दानिश, 6. सैयद मीर हुसैन, 7. आसिफ इकबाल रॉकी
NIA ने कोर्ट में पेश की अपनी रिपोर्ट में 9 आतंकियों पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आतंकी गतिविधियों के लिए धन, विस्फोटक और हथियार जुटाने के आरोप लगाए थे और इनके सबूत भी दिए थे। जांच एजेंसी ने बताया था कि ये लोग जाकिर नाइक का वीडियो दिखाकर युवाओं को जिहाद के लिए उकसाते थे।

इस केस में 21 मार्च, 2018 को आरोप तय किए गए थे। शुक्रवार यानी 24 फरवरी को NIA कोर्ट के जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने आरोपियों को दोषी ठहराया था।
पुलिस ने आतंकियों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया था। लखनऊ के काकोरी में हुई मुठभेड़ में सैफुल्ला मारा गया था। जबकि अन्य आरोपियों के पास से भारी मात्रा में गोला-बारूद और हथियार बरामद हुए थे। इसके बाद मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने करते हुए बाकी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी।
7 मार्च 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन (59320) सुबह 6:25 बजे तय समय से भोपाल स्टेशन से रवाना हुई। सुबह 9:38 बजे का वक्त रहा होगा। शाजापुर जिले के कालापीपल के पास जबड़ी रेलवे स्टेशन के करीब ट्रेन में ब्लास्ट हुआ। इसमें नौ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। ट्रेन में अफरा-तफरी मच गई। कुछ लोग ट्रेन से कूद गए। उसकी वजह से उन्हें चोटें आईं। ब्लास्ट की आवाज सुनकर कुछ लोगों ने चेन पुलिंग कर ट्रेन को रोका।

14 मार्च 2017 को केंद्र सरकार ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी। जांच में सामने आया कि आतंकी संगठन ISIS से जुड़े आतंकियों ने बम प्लांट किया था। जांच एजेंसियों ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से सभी नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
7 मार्च, 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में ब्लास्ट होते ही खुफिया तंत्र एक्टिव हुआ। तेलंगाना पुलिस ने MP और UP पुलिस को अहम इनपुट दिए।
MP पुलिस ने दोपहर करीब 1.30 बजे पिपरिया में चलती बस से 3 युवकों को अरेस्ट किया। इन्होंने UP के लखनऊ, कानपुर और इटावा में साथियों के नाम बताए।
कोर्ट ने इन आतंकियों के खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, विधि खिलाफ क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 की धारा 16 (ख), लोक संपत्ति निवारण अधिनियम 1984 की धारा 4, रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 150 और 151 सहित भारतीय दंड संहिता की धारा 324 और 326 के तहत आरोप तय किए।
सीहोर की रहने वाली जिया कुशवाहा भी उस दिन ट्रेन में सवार थीं। जिया बताती हैं, ‘हम लोग बोलई बाबा के स्थान पर जा रहे थे। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। ट्रेन में बैठने की जगह तक नहीं थी। बमुश्किल हमें ऊपर की सीट पर बैठने की जगह मिली। मैं तो नीचे ही खड़ी रही।

अचानक से टिफिन बम जैसा कुछ फटा। जहां मैं खड़ी थी, वहां मेरे ऊपर ही ब्लास्ट हुआ। इतने में अफरा-तफरी मच गई। मेरी उंगली कटकर लटक गई थी। बाल भी उड़ गए थे। कान के परदे फट गए। पूरे शरीर में छर्रे लगे थे। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। ट्रेन में धुआं-धुआं हो गया था।
मुझे स्वस्थ होने में करीब 3 महीने लग गए थे। हादसे के वक्त मेरी उम्र 26 साल थी। मेरा 6 साल का बेटा मरते-मरते बचा। उस दौरान मैं प्रेग्नेंट थी। मेरा मिसकैरेज भी हो गया था। बुजुर्ग दादा जी का पैर खराब हो गया था। धमाके से ट्रेन ऊपर से फट गई थी। दहशत ये भी थी कि कहीं ट्रेन पटरी से न उतर जाए।

किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। दहशत आज भी याद आती है, मेरी उंगली हमेशा के लिए खराब हो गई है, हड्डी के अंदर से 6 टुकड़े हुए थे। सरकार से 25 हजार रुपए सहायता के तौर पर मिले। आतंकियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।’
उज्जैन में रहने वाले जगदीश पटवा भी ट्रेन में सवार थे। वे बताते हैं, ‘घटना वाले दिन सीहोर से परिवार के करीब 20 सदस्यों के साथ भोपाल-उज्जैन पैसेंजर में बैठा था। मैं ट्रेन के पीछे से 5वें कोच में था। उस दिन सुबह के 9.37 बजे ट्रेन जबड़ी स्टेशन से रवाना हुई थी। स्टेशन गुजरते ही पिछले कोच में सवार चार युवक चलती ट्रेन से कूदकर भागने लगे।

हम लोग कुछ समझ पाते, इससे पहले ही कोच से धुआं निकलने लगा। करीब 250 फीट आगे जाकर ट्रेन रुक गई। यात्री ट्रेन से कूद-कूदकर खेतों में भागने लगे, तभी कोच में एक धमाके की आवाज आई। देखा तो बाहर खून से लथपथ एक बुजुर्ग यात्री तड़प रहा है। थोड़ी ही दूर पर खून से लथपथ एक बच्ची तड़प रही थी। उसके सीने में छेद हो गया था।
घटनास्थल पर हाहाकार मचा था। हमारा परिवार दहशत में था। जब तक आरोपी पकड़े नहीं गए, हमें नींद नहीं आई। वह मंजर याद कर आज भी हम सहम जाते हैं। ट्रेन में जब भी बैठते हैं, ब्लास्ट का मंजर दिलो-दिमाग में चलने लगता है। वह कभी न भूलने वाला मंजर था। किस्मत से सब लोग बच गए।’
उज्जैन के ही रहने वाले मोंटी भी उसी ट्रेन में सवार थे। उन्होंने बताया कि एक दम जोरदार आवाज आई और धुआं निकलने लगा। इसके बाद ट्रेन में अफरा-तफरी मच गई। कई लोग लहूलुहान थे। बोगी अस्त-व्यस्त थी। इसके बाद सभी को भगत की कोठी ट्रेन में शिफ्ट करके भेजा गया।