नन्हे पैरों की उड़ान, दुकानदार का बेटा बना इंजीनियर अब करा रहा है माता-पिता को विदेश की शहर

तस्वीर में तीन पीढ़ियाँ एक साथ हैं, वे पहली बार उड़ान भरते हैं और अपने पूरे जीवन में पहली बार विदेश जाते हैं।पूरी कहानी एक छोटे से गांव के रहने वाले एक गरीब परिवार के बेटे सुबोध शाक्य की है चलो आओ सुनते हैं उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी से हम एक बहुत छोटे से गाँव बढेली से हैं, जो अभी भी भारतीय मानचित्र पर सही ढंग से नहीं है।मेरे पिता एक दुकानदार हैं और माँ एक गृहिणी हैंमेरे माता-पिता एक काम बहुत अच्छे से करते हैं, वे अपने बच्चों को कभी भी मज़दूरी करने की इजाज़त नहीं देते हैं, लेकिन जब उनके बच्चे स्कूल जाते थे, तो वे अक्सर ऐसा कहा करते थे।उन्होंने बच्चों को सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा अब मैं सुबोध कुमार पहले मेरे गांव के नजदीक दूसरे गांव मतापुर में गौतम बुद्ध मोंटेसरी स्कूल से शिक्षा प्रारंभ हुईयूपी _बोर्ड _अलाहाबाद से स्कूली शिक्षा पूरी की और एजुकेशनलोन के ज़रिए राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, बांदा से बी.टेक किया, मेरे साथ गांव के स्कूल में कुछ और भी दोस्त पढ़ते थे उनमें से कुछ दोस्त वहीं कुछ ना कुछ करने लगे एक दोस्त डॉक्टर बना और कोई किसान इस तरीके से कुछ ना कुछ गांव में ही करने लगे लेकिन मैंने जीवन में ना हार मानते हुए फिर आईटी सेक्टर में काम करना शुरू किया कई इंटरव्यू के बाद पहली नौकरी 3000/- रुपये प्रति माह मिलीमेरे पूरे गाँव में मुझसे पहले किसी ने बी.टेक नहीं किया थामैं अक्सर विदेश जाने का सपना देखता था।फिर साथी गूगल बाबा की शुरुआत की कभी कोई कोचिंग नहीं कीअब कंपनी के खर्चे पर दो देशों का दौरा किया1: चीन ने ऑनसाइट काम दिया (कोविड से पहले)2: मलेशिया मे अब ऑनसाइट काम कर रहा हैहमेशा मैंने केवल और केवल काम ही पूजा है और माता-पिता कों भगवान की छाया माना हैं!