आइये जानते हैं ऋषिकेश मुखर्जी को, और उनकी जिंदगी के कुछ किस्से

हिंदी सिनेमा के बेहतरीन डायरेक्टर्स में से एक ऋषिकेश मुखर्जी की आज 17वीं डेथ एनिवर्सरी है। उन्होंने गुड्डी, आनंद, मिली, चुपके-चुपके, सत्यकाम, गोलमाल, नमक हराम जैसी बेहतरीन फिल्में बनाईं। अपनी फिल्मों में वह मिडिल क्लास की कहानियों को बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में दिखाते थे। उनकी यही बात उन्हें बाकी फिल्म निर्देशकों से अलग बनाती थी।
कोई बड़ा स्टार अगर सेट पर लेट आता था तो कई बार शूटिंग भी कैंसिल कर देते थे। धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना जैसे स्टार्स को सेट पर डांटने से भी नहीं हिचकिचाते थे, लेकिन तब भी हर बड़ा स्टार उनकी फिल्म में काम करने का सपना देखता था।
फिल्म आनंद में जब इन्होंने राजेश खन्ना को ले लिया तो धर्मेंद्र को इतना बुरा लगा कि उन्होंने शराब पीकर रात भर ऋषि दा को कॉल करके परेशान किया। इन्हें दादा साहेब फाल्के और पद्म विभूषण जैसे अवॉर्ड्स से नवाजा गया था। इन्होंने अपने चार दशक के करियर में 42 फिल्मों का निर्देशन किया था।
ऋषि दा का जन्म 30 सितंबर 1922 को कोलकाता में हुआ था। उनकी स्कूलिंग कोलकाता से ही हुई। उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया था। वहीं कुछ समय तक वो मैथमेटिक्स और साइंस के टीचर भी रहे। उन्होंने बतौर कैमरामैन अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की और उसके बाद बी.एन. सरकार के कोलकाता स्थित थिएटर में बतौर फिल्म एडिटर काम किया।
ऋषि दा 50 के दशक में मुंबई आए। वे बिमल रॉय की टीम में एडिटर का काम करते थे। उन्होंने बिमल रॉय के साथ लगभग पांच साल तक न्यू थिएटर्स में काम किया। एक बार फुर्सत के पलों में उनकी टीम ने सोचा कि चलो कोई फिल्म देखते हैं।
सभी इरोज सिनेमा में अकीरा कुरोसावा की फिल्म ‘राशोमोन’ देखने पहुंचे। जब फिल्म देखकर वापस लौटे तो सभी चुप थे। तब बिमल दा ने पूछा कि कौन है हमारी टीम में जो ऐसी बेहतरीन कहानी लिख सकता है? ऋषि दा बोले, ‘आप मौका तो दीजिए लिखने का।’
बस यहीं से बिमल रॉय प्रोडक्शंस की नींव पड़ी और ऋषि दा अपना बेहतरीन काम दिखाने में जुट गए। बतौर डायरेक्टर उनकी पहली फिल्म ‘मुसाफिर’ आई, वहीं दूसरी फिल्म ‘अनाड़ी’ ने पांच फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते, लेकिन ऋषि दा को बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड अपने गुरु बिमल रॉय के हाथों हारना पड़ा। अनाड़ी के बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों का निर्देशन किया।

अमिताभ बच्चन ऋषि दा को अपना गॉडफादर मानते थे। उन्हें याद करते हुए बिग बी ने एक बार अपने ब्लॉग में लिखा था, हमने कोई स्क्रिप्ट नहीं सुनी, न ही कोई कहानी। हम सिर्फ सेट पर आते थे। वो (ऋषि दा) हमें कहते थे, यहां खड़े हो जाओ, यहां चलो, डायलॉग ऐसे बोल दो, सीन में अपनी बात ऐसे कहो। उनके डायरेक्शन का तरीका बस यही था। इसमें एक्टर्स का कोई इनपुट नहीं होता था। आप उनकी फिल्मों में जो कुछ भी देखते थे, वो केवल उनका ही इनपुट रहता था।
बिग बी ने अपने ब्लॉग में ऋषि दा से जुड़ा एक और किस्सा सुनाते हुए कहा था, ऋषि दा हमें कभी भी फिल्म के शूट किए हुए हिस्से नहीं दिखाते थे। वो हमेशा फाइनल प्रोडक्ट ही दिखाते थे। उस जमाने में एक्टर्स का एडिटिंग रूम में जाना मना था। अगर कोई चुपके से एडिटिंग रूम में झांकता था और ऋषि दा की उस पर नजर पड़ गई, तो उस वक्त पैनल्टी भी भरनी पड़ती थी। उस समय वीडियो एडिटर्स भी नहीं होते थे। ऐसे में डायरेक्टर की नजर से सबसे बेस्ट सीन बाहर आता था।
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों की शूटिंग से जुड़ा एक मशहूर किस्सा है। एक बार एक बड़ा स्टार उनकी सेट पर 9 बजे की शिफ्ट होने के बावजूद करीब 12:30 बजे पहुंचा। चूंकि ऋषि दा को सेट पर लेट आने वाले लोग पसंद नहीं थे इसलिए जब वो स्टार आया तो वे उस समय तो कुछ नहीं बोले। जब स्टार ने मेकअप करवा लिया और शॉट देने के लिए तैयार हो गया तब अचानक ऋषि दा ने कहा कि आज शूटिंग नहीं होगी। उनका मूड कब बदल जाए, कोई नहीं जानता था।

एक और किस्सा यह भी है कि एक बार अमोल पालेकर उनके साथ शूटिंग कर रहे थे। उन्होंने कोई शॉट दिया जो काफी अच्छा था पर अमोल को लगा कि वे इसे दोबारा और बेहतर कर सकते हैं। मुखर्जी के मना करने पर भी जब अमोल अड़े रहे तो मुखर्जी ने दोबारा शॉट तो लिया, लेकिन फाइनल फिल्म में उन्होंने पहले वाला शॉट ही रखा।
गुलजार के साथ ऋषि दा ने कई फिल्मों में काम किया। फिल्म ‘गुड्डी’ का निर्देशन भी गुलजार खुद करने वाले थे, लेकिन किसी वजह से फिल्म के निर्देशन की कमान ऋषि दा को संभालनी पड़ी। जब उन्होंने फिल्म पूरी की और वह हिट हुई तो खुद गुलजार ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ऋषिकेश मुखर्जी का काम बिल्कुल अलग ही स्टाइल में होता है। वे एक्स्ट्रा शॉट्स या फिर एक्स्ट्रा एंगल में विश्वास नहीं करते और एडिटर होने की वजह से वे अपने दिमाग में ही बहुत सारे सीन एडिट कर लेते हैं। शूटिंग सेट पर कभी-कभी वे शतरंज खेला करते थे और फिर अचानक से उठकर शूटिंग इंस्ट्रक्शन देने लगते थे।
असरानी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म ‘चुपके-चुपके’ की शूटिंग चल रही थी और एक सीन था जिसके बारे में धर्मेंद्र को कुछ भी नहीं बताया गया था, क्योंकि ऋषि दा अपने सीन को एक्टर्स से सीक्रेट ही रखते थे। एक सीन के लिए उन्होंने मुझे सूट पहना दिया। तभी धर्मेंद्र वहां ड्राइवर के कपड़ों में आए और मुझे सूट में देखकर हैरान होते हुए बोले…‘मैं तेरा ड्राइवर बना हूं क्या? अगला सीन क्या है? तुझे सूट कैसे मिल गया?’ वहीं दूर बैठे ऋषि दा ने कहा, ‘धर्मेंद्र तू उससे क्या पूछता है? उसे कुछ पता होता तो वह डायरेक्टर नहीं होता।’
ऋषिकेश दा ने लीक से हटकर ‘सबसे बड़ा सुख’ नाम की एक बोल्ड फिल्म भी बनाई थी। असरानी और उत्पल दत्त जैसे एक्टर्स ने इसमें ऐसा काम किया जो यकीन करने लायक नहीं है। फिल्म समीक्षकों ने तो यहां तक कहा कि ऐसा लगता है ऋषिकेश मुखर्जी 70 के दशक में एक प्रयोग करके देख रहे थे। वह ऐसी फिल्म बनाकर कुछ क्रांतिकारी करने की सोच रहे थे, लेकिन जॉनर उन्होंने गलत चुन लिया था। फिल्म बी-ग्रेड सिनेमा वाला फील दे रही थी इसलिए ये फ्लॉप रही।

फिल्म ‘आनंद’ में ऋषि दा पहले किशोर कुमार को कास्ट करने वाले थे, पर उन्हीं दिनों किशोर दा का एक बंगाली प्रोड्यूसर से विवाद हो गया और उन्होंने गार्ड को निर्देश दिए कि कोई बंगाली मुझसे मिलने आए तो उसे भगा देना। एक दिन ऋषि दा उनके घर पहुंचे, लेकिन गार्ड ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। ऋषि दा को इस बात से बहुत गुस्सा आया और उन्होंने फिर किशोर कुमार के साथ कोई फिल्म बनाने का इरादा ही छोड़ दिया।
1971 में जब ऋषि दा ‘आनंद’ फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे थे तो सबसे पहले उन्होंने इसकी कहानी बेंगलुरु से मुंबई की फ्लाइट के दौरान धर्मेंद्र को सुनाई थी। धर्मेंद्र बड़े खुश हुए और उन्होंने कहा कि ये फिल्म तो मैं ही करूंगा। कुछ दिनों बाद अखबार में खबर छपी कि फिल्म के हीरो राजेश खन्ना होंगे। फिर क्या था धर्मेद्र ने जमकर शराब पी और फिर देर रात ऋषि दा को कॉल किया और कहा कि आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? ऋषि दा उन्हें शांति से समझाते रहे और कहते रहे कि धरम हम सुबह बात करेंगे, लेकिन धर्मेंद्र थे कि लगातार अपनी बात दोहराए जा रहे थे। ऐसा करते-करते उन्होंने रातभर ऋषि दा को सोने नहीं दिया।
जब ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म ‘आनंद’ बना रहे थे तो राजेश खन्ना उन दिनों 8 लाख रु. फीस लेते थे। जब राजेश खन्ना को पता चला कि कई बड़े एक्टर्स के पास से फिल्म ‘आनंद’ निकल गई है तो वे उतावले होकर ऋषि दा के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मैं फिल्म करने के लिए तैयार हूं। तब ऋषि दा ने उनसे कहा अगर आपको मेरे साथ काम करना है तो मेरी तीन शर्तें माननी होंगी। टाइम पर आना होगा। ज्यादा डेट्स देनी होंगी और तीसरी शर्त ये कि फीस एक लाख रु. ही मिलेगी। राजेश खन्ना बिना कुछ कहे उनकी सभी शर्तों पर राजी हो गए।
जब ऋषि दा फिल्म ‘नमक हराम’ बना रहे थे तो वो ये बात जानते थे कि उनकी फिल्म का हीरो एक सुपरस्टार है। इस फिल्म के ओरिजिनल क्लाईमैक्स में अमिताभ बच्चन के किरदार को मरते हुए दिखाया जाना था पर राजेश खन्ना को लगा कि कहीं अमिताभ मरने वाला सीन कर पॉपुलैरिटी न खींच ले जाएं तो उन्होंने ऋषि दा से जिद की कि मरने वाला सीन उनके ऊपर ही फिल्माया जाए।
यहां तक कि उन्होंने अपनी ही फोटो पर माला भी चढ़ा दी थी। जब अमिताभ को इसकी भनक लगी तो वे निराश हो गए। हालांकि फिल्म जब रिलीज हुई तो दर्शकों ने राजेश खन्ना से ज्यादा अमिताभ बच्चन के अभिनय को पसंद किया। दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर राजेश खन्ना ने फिर अमिताभ के साथ कभी कोई फिल्म नहीं की।
1998 में ऋषि दा ने अनिल कपूर-जूही चावला स्टारर फिल्म झूठ बोले कौआ काटे बनाई थी। यह उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। फिल्म के एक सीन में साजिद खान, जूही, अनिल कपूर और अनुपम खेर
27 अगस्त, 2006 को मुंबई में ऋषि दा का 83 साल की उम्र में निधन हो गया था। किडनी की बीमारी के चलते वो मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। मौत के समय केवल उनका केयरटेकर ही उनके साथ था। उनकी पत्नी का निधन काफी पहले ही हो चुका था। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे थे जो बीमारी के दौरान उन्हें समय-समय पर देखने आते रहते थे।
ऋषि दा की 92वीं बर्थ एनिवर्सरी पर उन्हें याद करते हुए अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा था- अपने अंतिम दिनों में वो ICU में थे। मैं कई बार उन्हें देखने के लिए अस्पताल गया, लेकिन उन्हें उस हालत में देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। एक दिन मैं हिम्मत करके उन्हें देखने के लिए गया। उनकी पूरी बॉडी वायर में लिपटी हुई थी। कई तरह की मशीनें लगी थीं, आंखें बंद थीं और वो वेंटिलेटर के जरिए सांसें ले रहे थे। फिर वो अचानक जागे और उन्होंने आंखें खोलीं। उन्होंने मुझे देखा और उनका चेहरा खिल गया। मैंने फिर बड़ी मशक्कत से पाइप्स और ट्यूब्स के बीच में से उनका हाथ निकालकर पकड़ा। काफी देर तक वो मुझे देखते रहे और फिर सिर पर हाथ फेरकर मुझे जाने का इशारा किया। अगले दिन वो चल बसे।