दुखी मन को संभालने की कला हर किसी के पास नहीं होती। हम मदद के लिए आए व्यक्ति को खुश करना चाहते हैं, पर अनजाने ही कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि दुख से भीगा दिल और भी व्यथित हो उठता है। आइए जानते हैं मदद का सही सलीका….
क्या कभी आपके सामने भी ऐसी स्थिति आई है कि आप बेहद नाराज, निराश या चिड़चिड़े हों और किसी से बात तक नहीं करना चाह रहे हों? ऐसे में आप क्या करते हैं? क्या अपने आप को बाहरी दुनिया से काट लेते हैं या फिर अपने प्रियजनों को मन की व्यथा बताते हैं? ऐसी स्थिति में हममें से ज्यादातर लोग पहले वाला रास्ता चुनते हैं और खुद को बाकी सबसे बिलकुल अलग-थलग कर लेते हैं। दरअसल, हम ऐसा मानते हैं कि अगर समस्या हमारी है, तो समाधान भी हमको ही ढूंढ़ना पड़ेगा, जबकि हर स्थिति में ऐसा नहीं होता। .
कई बार हमें अपने मन की बात दूसरे को सिर्फ बताने भर से आराम मिलता है। कभी-कभी दूसरों की सलाह भी राहत लेकर आती है। लेकिन ऐसी किसी स्थिति में बात करना सबसे जरूरी होता है और यही नियम उन लोगों पर भी लागू होता है, जो मदद मांगने आपके पास आते हैं। उस सूरत में आपको एक सच्चे साथी की तरह सहायता करनी चाहिए।
1. रूखा या आलोचनात्मक रवैया न अपनाएं
याद रखें कि आपका काम मुसीबत में पड़े व्यक्ति की मदद करना है और मदद का अर्थ हमेशा रुपये-पैसे नहीं होता। सामने वाले की व्यथा सुनकर उसे समझना भी बहुत बड़ी मदद है। लेकिन ऐसा करते समय भूलकर भी उससे अटपटे सवाल न पूछें। मसलन, तुम्हें शायद गलत लग रहा है या ऐसा तो संभव ही नहीं है… कहने से बचें। यह तो कतई न कहें कि स्थिति इतनी भी खराब नहीं है…। कहने का मतलब यह है कि दूसरे के दुख को अपने तराजू में न तोलें, क्योंकि उस कष्ट और उस दौर से वह गुजरा है, आप नहीं। इसलिए सामने वाले की भावनाओं का सम्मान करें। .
2. सिर्फ सुनें नहीं, संवाद का हिस्सा बनें
हमारे अंदर कहीं न कहीं एक डर छिपा होता है कि सामने वाला अपने दुखों और परेशानियों का सारा भार शब्दों के जरिये हमारे ऊपर डालना चाह रहा है। इसलिए हम उससे कटने लगते हैं और बात तक करने से कतराने लगते हैं। इसके विपरीत यदि आप सामने वाले की परेशानी को सुनकर उससे उसकी परेशानी से संबंधित कुछ सवाल पूछेंगे तो हो सकता है कि उसे अपनी समस्या के समाधान का कोई रास्ता मिल जाए। इसलिए परेशान व्यक्ति की समस्या को चुपचाप सिर्फ सुनने की बजाय उसकी बातचीत में हिस्सेदार बनें, ताकि मिल जुलकर कोई हल निकाला जा सके। अपने कड़वे अनुभव साझा न करें। यह ध्यान रखें कि आपका काम खुले दिल-दिमाग से सामने वाली की परेशानी सुनना है और उसे भावनात्मक सहारा प्रदान करना है। संभव है कि आप भी कभी उसी स्थिति से गुजरे हों, पर यह जरूरी नहीं कि अपने कड़वे अनुभव आप पहले से ही परेशान व्यक्ति को बताकर उसे और परेशान कर दें। इसलिए खुद को किनारे रखते हुए सिर्फ सामने वाले की परेशानी सुनें और उसका साथ दें। .
3. भाषा का भी रखें ध्यान
यह बहुत सामान्य बात है कि आहत व्यक्ति कड़वे शब्दों का प्रयोग अपनी बातचीत के दौरान कर लेता है, लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि आप भी उसी शब्दावली का इस्तेमाल करने लगें। जैसे, आपके मित्र का अपने जीवनसाथी से किसी बात पर मनमुटाव हो गया है, तो हो सकता है कि गुस्से में वह उसके लिए कड़वे शब्दों का इस्तेमाल करे। लेकिन आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपकी अपनी भाषा शालीन बनी रहे। क्योंकि सुलह के बाद वे दोनों तो फिर एक हो जाएंगे, लेकिन हो सकता है कि गुस्सा ठंडा होने के बाद आपके मित्र को उसके साथी के लिए आपके द्वारा बोले गए कड़वे शब्द अच्छे न लगें। .
4. बिन मांगे न बढ़ाएं मदद का हाथ
यह भी हो सकता है कि सामने वाला व्यक्ति सिर्फ अपनी मन की बात आपके साथ साझा करना चाहता है, लेकिन उसे आपसे कोई समाधान नहीं चाहिए। किसी बहुत निकट परिजन की मृत्यु, शादी के बाद बच्चा न हो पाना, एक बेहद लंबी बीमारी या बहुत भारी आर्थिक नुकसान, ये कुछ ऐसी घटनाएं हैं, जहां पीड़ित व्यक्ति सिर्फ अपने भाव आपसे साझा करना चाहता है। क्योंकि इन समस्याओं से उबरने का हल उसे खुद ही निकालना होता है। ऐसे में एक अच्छे दोस्त की तरह सिर्फ ध्यान से उसकी बातें सुननी चाहिए और जब तक वह खुद से न कहे, अपनी सलाहों का बोझ उस पर नहीं डालना चाहिए। .
5. स्नेह और दुलार भी आता है काम
कभी-कभी बिना कुछ कहे सिर्फ गले लगा लेने भर से ही बहुत सारी समस्याएं छंटने लगती हैं और मन को मजबूती मिलती है। इसलिए अगर सामने वाला दुखी हो और आपके साथ सहज महसूस करता हो तो उसे प्यार भरी झप्पी जरूर दें, साथ ही उससे यह पूछना न भूलें कि आप किस तरह उसकी और मदद कर सकते हैं। दरअसल स्नेह और दुलार किसी जादुई दवा का काम करते हैं। ये दुखी व्यक्ति को भावनात्मक रूप से मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ उससे आपके रिश्तों को और भी प्रगाढ़ बनाते हैं।.
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