जानें अपने बच्चे के साथ संवाद कैसे करें

बच्चों की ठीक तरह से परवरिश उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य का बनाने में बहुत ही जरूरी है. इसलिए सभी माता पिता अपने बच्चों की उचित देखभाल करने में विश्वास करते हैं. क्योेंकि माता पिता का व्यवहार बच्चे के मन काे बहुत प्रभावित करता है. हाल ही में 9 व 10 वर्ष के बच्चों पर हुए एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि पारिवारिक प्रयत्न व माता-पिता की निगरानी बच्चों में आत्मघाती विचारों ( suicidal thoughts in children ) को जन्म देती है. ये अध्ध्यन journal JAMA Network Open में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन में बोला गया है कि 75 फीसदी से अधिक मामलों में बच्चों ने आत्महत्या के विचारों या व्यवहारों की सूचना दी व देखभालकर्ताओं को बच्चे के इस अनुभव के बारे में पता नहीं था.

शोधकर्ता ने बोला कि माता-पिता, देखभाल करने वाले व बच्चों के साथ कार्य करने वाले लोग उन बच्चों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो मुसीबत में हो सकते हैं. यदि आपके पास ऐसे बच्चे हैं जो किसी तरह से व्यथित हैं, तो उनसे बात करके जानकारी लें.

जब बच्चे बुरा महसूस करें तो क्या करें
बच्चों में आत्महत्या या आत्मघाती विचार आने के पीछे अवसाद बड़ा कारण होने कि सम्भावना है. क्योंकि बड़े ही नहीं बच्चे भी अवसाद का अनुभव करते हैं. लेकिन बच्चों में आत्मघाती विचारों के इशारा हमेशा स्पष्ट नहीं हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आत्महत्या के विचार वाले बच्चे उनके बारे में सीधे बात नहीं कर सकते हैं जैसा कि एक वयस्क कर सकता है.

ऐसे में आप बच्चे के कपड़ों की, उनके द्वारा कंप्यूटर टेलीविजन शो व कंप्यूटर वेबसाइट की निगरानी करें. इस बात का भी पता रखें की क्या वो किसी ऐसे आदमी को जानते हैं जो आत्महत्या की बात करता है. कभी-कभी एक बच्चा सीधे मरने या खुद को मारने की ख़्वाहिश के बारे में बोल सकता है.

बच्चों में अवसादग्रस्तता आत्मघाती विचारों के लिए एक जोखिम है, इसलिए बचपन के अवसाद के लक्षणों को पहचानना व इलाज की तलाश करना जरूरी है. बचपन के अवसाद के संभावित लक्षणों में व्यर्थता, निराशा व सामाजिक बहिष्कार जैसी भावनाएं शामिल हो सकती हैं.

अपने बच्चे के साथ संवाद कैसे करें
आप अवसाद के बारे में अपने बच्चे के साथ एक खुली व ईमानदार चर्चा कर सकते हैं, यह उन्हें बहुत महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान कर सकता है. उन शब्दों का इस्तेमाल करें जिन्हें आपका बच्चा सरलता से समझ सकता है व वार्ता को सकारात्मक रखने की प्रयास कर सकता है.

अपने बच्चे को बताएं कि आप उनकी भावनाओं को पहचानते हैं व उनका सम्मान करते हैं. एक अच्छे श्रोता बनें ताकि आपका बच्चा खुलकर बात करने, अपनी राय व विचार जाहीर करने में सहज महसूस करे.

अपनी भावनाओं के लिए उन्हें जज या दंडित न करें. विशेषज्ञों का बोलना है कि माता-पिता का समर्थन बच्चों में आत्मघाती विचारों को कम कर सकता है.