जनन द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं।
जीवधारियों के अंतअंतहेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है।
कृत्रिम कयिक जनन
कुछ पौधों का जनन कृत्रिम रीति से भी होता है। कुछ पौधे तनों की कतरन (cutting) से (इसके उदाहरण डूरैंडा, गुलाब, मेंहदी इत्यादि हैं), कुछ पौधे कलम बाँधने (Grafting) से (इसके उदाहरण आम, नीबू, कटहल आदि हैं) और कुछ दाब कलम (Layering) से (इसका उदाहरण अंगूर की लता है) नए पौधों को उत्पन्न करते हैं।
अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ, बिना किसी दूसरी इकाई से मिले ही, नए पौधों को उत्पन्न करती हैं। यह विखंडन विधि (fission) या बीजाणुनिर्माण विधि (sporulation) से होता है। पहली विधि से ही शैवाल, कवक और बीजाणुओं आदि का जनन एवं वर्धन होता है।
दूसरी विधि से जनन बीजाणुओं द्वारा होता है। बीजाणु एककोशीय और बहुत सूक्ष्म होते हैं। कुछ शैवालों, जलकाइयों और कवकों में बीजाणु होते हैं जो केवल प्रोटोप्लाज्म के बने होते हैं। इनमें लोमक (Cilia) होते हैं। ऐसे बीजाणुओं को चलजन्यु (zoospores) कहते हैं। ये चलजन्यु लोमक की सहायता से तैरते हैं और शुद्धजलीय प्राणियों की भाँति बाद में नए पौधों में बदल जाते हैं। कुछ पदार्थों में, जैसे युलो्थ्राक्स (Ulothrix) चलजन्यु अधिक संख्या में और सैप्रोलैग्निया (Saprolegnia) में उत्पन्न होते हैं।
कुछ शैवालों, जैसे नौस्टॉक (Nostoc) में, बीजाणुतंतु की कोशिकाओं से अचल बीजाणु उत्पन्न होते हैं, जो हवा से उड़कर फैलते हैं। बीजाणुजनक (sporophytes) से बीजाणुओं का निर्माण होता है, जिनमें नर और मादा दोनों होती हैं। ये परस्पर मिलकर युग्मक-सू (गैमिटोफाइट, Gametophyte) बनते हैं, जिनसे फिर बीजाणु और उनसे बीजाणुजनक बनते हैं।
लैंगिक जनन
अधिक विकसित पौधों में फल और बीज द्वारा लैंगिक जनन होता है। उनके फूलों में नर गैमीट और मादा गैमीट (Gamete) होते हैं, जिनके सायुज्य से युग्मक (Zygote) बनते हैं। ये बीज के अंदर भ्रूण में विकसित हो, अंकुर बनकर नए पौधों को जन्म देते हैं। गैमीट बहुत सूक्ष्म और एककोशिकीय होते हैं। लैंगिक जनन में दो विभिन्न जनकों की आवश्यकता होती है। कभी-कभी एक ही प्रकार के दो गैमीट मिलकर जनन करते हैं। ऐसे मिलन का समागम (Conjugation) कहते हैं। दो विभिन्न गैमीटों के मिलने को निषेचन (Fertilization) कहते हैं। शैवाल और कवक सदृश निम्न श्रेणी के पौधों में समागम से जनन होता है और उच्च श्रेणी की वनस्पतियों में निषेचन से। जिन पौधों के गैमीट में नर और मादा का विभेद नहीं होता उन्हें समयुग्मक (Isogametes) कहते हैं और ऐसे पौधों को समयुग्मी (isogamous)। निषेचन में नर और मादा के मिलने से जो बनाता है उसे शुक्रितांड (Oospore), गैमीट को असम युग्मक (heterogamete) और पौधे को असमयुग्मीया या विविधपुष्पी (heterogamous) कहते हैं। जनन की उपर्युक्त विधियों के अतिरिक्त कुछ अन्य विधियों, जैसे अजीवाणुजनन (Apospory), अपयुग्मजनन (Apogamy) और असेचन जनन (Parthenogenesis) से भी जनन होता है।
प्राणियों का जनन
प्राणियों में जनन की विधियाँ दो कोटि में बाँटी जा सकती हैं एक अलैंगिक और दूसरी लैंगिक। इनमें भेद यह है कि अलैंगिक विधि से जनन के लिए केवल एक ही जनक की आवश्यकता होती है और जनककोशिका तथा संतानकोशिका का विभाजन समसूत्रण (Mitosis) से ही होता है। लैंगिक जनन के लिए दो जनकों की आवश्यकता होती है और इसमें समसूत्रण के अतिरिक्त अर्धसूत्रण और निषेचन की क्रियाएँ होती हैं। निम्न श्रेणी के प्राणियों का जनन अलैंगिक और लैंगिक दोनों विधियों से होता है, पर उच्च श्रेणी के प्राणियों का जनन केवल लैंगिक विधि से ही होता है।
अलैंगिक जनन
यह जनन पिंड के दो या दो से अधिक सम भागों में विभाजन से होता है। इस विभाजन का विखंडन (Fission) कहते हैं। यह विखंडन द्विविखंडन (Binary fission), बहुविखंडन (Multiple fission) या बीजाणुकरण (Sporulation) का रूप ले सकता है। द्विविखंडन का उदाहरण अमीबा (Amoeba) में मिलता है। समुद्भवन से भी जनन होता है। स्पंज, सीलेंटरेटा (Coelenterata) और ब्राइओजोआ (Bryozoa) में प्रवर्धन या कालिकाओं के रूप में जनन होता है। कुछ प्राणियों में पुनरुत्पादन (Regeneration) की शक्ति होती है। यदि उनके शरीर का कोई भाग क्षतिग्रस्त हो जाए या कट जाए तो उसका फिर निर्माण हो जाता है। यह बात हाइड्रा और केंचुए में देखी जाती है। यह शक्ति उच्च श्रेणी के जंतुओं में क्रमश: कम होती जाती है। स्तनियों में सबसे कम होती है और मनुष्य में केवल घावों के भरने तक ही सीमित रह जाती है। पुनरुत्पादन का एक दूसरा रूप खंडों में बढ़ना है या संविभाजन (fragmentation) है। प्लैनेरियनों (Planarians) के टुकड़े हो जाने पर प्रत्येक टुकड़ा अलग प्राणी बन जाता है। कुछ प्राणियों में जेम्यूलों (Gemmules) का निर्माण होता है। उत्पादक कोशिकाएँ गेंद के रूप में इकट्ठी हो जाती है, तथा उनके चारों तरफ कंटिकाओं (Spirules) की भित्ति बन जाती है, जिसे जेम्यूल कहते हैं। यहाँ जनक की मृत्यु हो जाती हैं, पर जेम्यूल जीते रहते हैं और अनुकूल मौसम आने पर पूर्ण स्पंज के रूप में विकसित हो जाते हैं। कुछ प्राणी स्टैटोब्लास्ट (Statoblast) का निर्माण करते हैं। यह मंडलाकार अवरोध्क रचना होती है, जो प्रतिकूल स्थिति के हट जाने पर नए मंडल में अंकुरित हो जाती है।
लैंगिक जनन
प्राणियों में लैंगिक जनन की कई विधियाँ हैं, जिनमें प्रमुख विधियाँ हैं-
(1) सामान्य लैंगिक जनन,
(2) उभयलिंगी (Hermaphroditic) जनन,
(3) असेचन जनन (Parthenogenesis) और
(4) डिंभजनन (Paedogenesis)