लॉरेल हबर्ड ओलंपिक में खेलने वाली पहली ट्रांसजेंडर (पुरुष से महिला बनीं) एथलीट बनेंगी।

लॉरेल हबर्ड ओलंपिक में खेलने वाली पहली ट्रांसजेंडर (पुरुष से महिला बनीं) एथलीट बनेंगी। हबर्ड ने 185 क्रिगा भार उठाकर न्यूजीलैंड की पांच सदस्यीय महिला भारोत्तोलन टीम में जगह बनाई है। वह महिलाओं के प्लस 87 किग्रा भार वर्ग में चुनौती पेश करेंगी। 43 वर्षीय हबर्ड मौजूदा खेलों में खेलने वाली सबसे उम्रदराज वेटलिफ्टर होंगी। उन्होंने आठ साल पहले 2013 में अपना लिंग बदलवाया था।

इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के ट्रांस एथलीटों के निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए बने नियमों और सभी आवश्यकताओं को पूरा किया है। आईओसी नीति में शर्तों के साथ पुरुष से महिला बनने वालों को महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति है। इससे पहले तक उन्होंने पुरुषों की भारोत्तोलन स्पर्धाओं में भाग लिया था।

उन्होंने 2017 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक और समोआ में 2019 प्रशांत खेलों में स्वर्ण पदक जीता। हबर्ड को ओलंपिक में सुपर हैवी वेट में पदक का दावेदार माना जा रहा है। वह दो अगस्त को अपना पहला मुकाबला खेलेंगी।
हबर्ड के टीम में चयन के साथ ही विरोध भी शुरू हो गया है। उनका कहना है कि यह अन्य महिलाओं के साथ अन्याय होगा। बेल्जियम की भारोत्तोलक अन्ना वाबेलिंगेन ने कहा कि हबर्ड का टोक्यो में चुनौती पेश करना अन्य महिलाओं के लिए अनुचित और एक बुरे मजाक की तरह है। अन्ना भी 87 किग्रा भार वर्ग में खेलेंगी।
हबर्ड ने 2018 गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया लेकिन हाथ में गंभीर चोट के चलते उन्हें अपना नाम वापस लेना पड़ा था। ऑस्ट्रेलियाई वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ने वैश्विक संस्था से उनकी शिकयत की।

हबर्ड 2015 से ही ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा करने के लिए पात्र बन गई थी, जब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओए) ने अपने नियमों में बदलाव किया। इसमें किसी भी ट्रांसजेंडर एथलीट को एक महिला के रूप में खेलने की मंजूरी दी गई। बशर्ते उनकी पहली प्रतियोगिता से कम से कम 12 महीने पहले उनके टेस्टोस्टेरोन का स्तर 10 नैनोमोल प्रति लीटर से कम हो। टेस्टोस्टेरोन एक हार्मोन है जो मांसपेशियों को बढ़ाता है।