लखनऊ में पंकज के सिंह जी(राहिब मैत्रेय) के गजल संग्रह “दरमियानी रविश” का लोकार्पण सम्पन्न ?

साहित्यिक जगत में अपनी धाक जमा चुके मशहूर लेखक एवं कवि पंकज के सिंह जी उर्फ राहिब मैत्रेय साहब के गजल संग्रह “दरमियानी रविश” का लोकार्पण लखनऊ के जीसीआरबी ग्रुप ऑफ इंस्टिटयूशंस – चंद्रिका देवी रोड ,बख्शी का तालाब, लखनऊ के ऑडिटोरियम में 26 अप्रैल 2025 को दिन में 12 बजे से प्रारंभ हुआ। उक्त लोकार्पण समारोह में “वर्तमान समय में साहित्य की भूमिका” विषय पर सारगर्भित चर्चा की गई।देश के मशहूर कवि एवं साहित्यकार प्रो उदयप्रताप सिंह जी (पूर्व सांसद) ने “दरमियानी रविश” के लोकार्पण के साथ “वर्तमान समय में साहित्य की भूमिका” विषय पर विद्वतापूर्ण गुफ्तगू की।उक्त अवसर पर अनेक लेखक एवं कवि उपस्थित हुए। बी डी नकवी ,अब्बास रज़ा नय्यर, राम प्रकाश बेखुद ,दीपक कबीर, सुबोध दुबे ,मोहम्मद साहिल, संधिनी मैत्रेय ,प्रो कालीचरण सनेही जी, प्रो रविकांत जी, डा अभिषेक यादव जी सहित अनेक प्रबुद्ध जनों ने अपने विचार रखे और इस गजल संग्रह में लिखी गजलों को बेहतरीन बताया। कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन शाहबाज तालिब ने किया।

“दरमियानी रविश” गजल संग्रह के रचनाकार पंकज के सिंह जी उर्फ राहिब मैत्रेय साहब ने कहा कि उनकी कोशिश है कि समाज की बुराइयों पर प्रहार के साथ सार्थक समतावाद की स्थापना हेतु मैं कुछ लिखता रह सकूं। जिस गजल संग्रह “दरमियानी रविश” का लोकार्पण हुआ उसमें एक गजल कुछ यूं है जो भारत के सामाजिक ताना- बाना पर करारा प्रहार करता है –
“सबब ये है जो हिंदुस्तान, तेरे टुकड़े – टुकड़े है,
कहीं शेखों-बरहमन हैं,कही पर अगड़े-पिछड़े हैं।
बहुत गहरी गुलामी है कि जिसमें जेहन जकड़े हैं,
गला जिनका पकड़ना था,उन्हीं के पांव पकड़े हैं।
हमेशा से हमारे मुल्क में उनकी हुकूमत है,
अपाहिज सोच है जिनकी इरादे जिनके लंगड़े हैं।
हरा रंग अब मुसलमां है तो भगवा रंग हिन्दू है,
सदी विज्ञान की है और हमारे ऐसे झगड़े हैं।।”
इस गजल संग्रह “दरमियानी रविश “में राहिब मैत्रेय साहब धर्म पर कितना शानदार लिखते हैं कि –
“न अहले इल्म समझे हैं , न अहले दीन ही समझे।
“तथागत ” की जमीं के लोग कैसे इतने पिछड़े हैं?
कभी इक – दूसरे का दीन हम पढ़ते नहीं राहिब,
सबब ये है हमारे दरमियां जो इतने झगड़े हैं।।”
इस गजल संग्रह में जाति पर लिखते हुए पंकज के सिंह साहब लिखते हैं कि –
“जात छोटी – बड़ी नहीं होती, काम जैसा मकाम वैसा हो।
‘जैन’ और ‘बौद्ध’ जैसे जीते हैं,सबके जीने का तौर वैसा हो।।”
वंचित आबादी को हक वंचित करने पर गजलकार पंकज के सिंह जी द्वारा इस “दरमियानी रविश” गजल संग्रह में कुछ लाइनें यूं लिखी गई हैं –
“क्यों दो तिहाई कौन हुकूमत से है महरूम,
क्या इसमें कोई शख्स हुनरमंद नहीं है?
मुंसिफ ने लिख दिया है हर एक जुर्म उसके नाम,
जिसका कोई बयान कलमबंद नहीं है।।”
“दरमियानी रविश “गजल/नज़्म संग्रह के रचनाकार पंकज के सिंह जी की ये लाइनें कितनी क्रांतिकारी हैं,आप खुद महसूस कर सकते हैं-
“जुल्मों शिद्दत के खात्मे के लिए,आज दरकारे ‘चे -गवारा’ है।
‘सत्यशोधक’ हुए बिना राहिब, जिंदगी हर कदम खसारा है।।”

डा पंकज के सिंह जी उर्फ राहिब मैत्रेय साहब के इस गजल/नज़्म संग्रह “दरमियानी रविश ” के लोकार्पण समारोह में 500 से अधिक साहित्य और काव्य प्रेमी उपस्थित रहे। इस शानदार रचना संग्रह “दरमियानी रविश” के लिए उच्च कोटि के विद्वान डा पंकज के सिंह जी उर्फ राहिब मैत्रेय साहब को बहुत – बहुत शुभकामनाएँ।

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