जमानत के बाद लालू का पहला इंटरव्यू

राजद की स्थापना के 25 वर्ष आज पूरे हो गए। लालू प्रसाद ने वर्ष 1997 में जनता दल से अलग होकर राजद बनाया था। विपक्ष के आरोपों और कोर्ट-कचहरियों का सामना करते-करते उन्होंने अपनी सरकार बनाई, बचाई और विपक्ष में रहने पर भी राजद की ताकत बनाए रखी। इस अवसर पर लालू के साथ सवाल जबाव

सवाल: लालू-राबड़ी के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल को किस रूप में देखते हैं?
जवाब: यह तुलना बिना पूर्वाग्रह के आने वाला इतिहास करेगा। 1990-2005 के शासन काल का सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण करते हुए हमारी परफॉर्मेंस का आकलन करना होगा तब जाकर असली बात समझ में आएगी। विकास का प्रथम सूचकांक मानव विकास होता है। जिस गैर-बराबरी समाज में उच्च कुल-जात का व्यक्ति मात्र जन्म के आधार पर दूसरे को नीचा समझता है, उस समाज में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, पुल-पुलिया और हवाई अड्डे के बखान का क्या फायदा। पहले सभी को समान शिक्षा और स्वास्थ्य देना होगा। वंचित, उपेक्षितों को उनका हिस्सा देना होगा।

हमने वही किया। वहीं नीतीश के 2005-2021 के कार्यकाल का प्रोपेगैंडा आधारित गवर्नेंस का सच अब पूरा देश जान चुका है। नीतीश के मंत्री-विधायक भी उनकी कार्यशैली का काला सच सामने ला रहे हैं। 90 के दशक की सबसे बड़ी जरूरत पिछड़ों और दलितों को उनका सम्मान और हक दिलाना था, जो हमने दिया। विरोधी भी दबी जुबान से ये उपलब्धि मानते हैं।

सवाल: आप राजनीति में फिर सक्रिय भूमिका निभाएंगे या मार्गदर्शक की तरह ही रहेंगे?
जवाब: नेता कभी रिटायर नहीं होता। राजनीतिक सक्रियता का अर्थ सिर्फ संसद और विधानसभाओं का चुनाव ही है क्या। मेरी राजनीति खेत-खलिहानों से लेकर सामाजिक न्याय और आखिरी पायदान पर खड़े लोगों को ऊपर उठाने की रही है जो आज भी जारी है। मार्गदर्शक तो ऊ हाफ पैंट वालों का कॉपीराइट है। हम तो गरीब-गुरबा के अधिकारों की लड़ाई के लिए पैदा हुए हैं और आखिरी सांस तक उनके लिए सक्रियता से लड़ते रहेंगे।

सवाल: आप किंगमेकर माने जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर किस विकल्प पर काम करेंगे?
जवाब: इ किंगमेकर का होता है। इ मीडिया का दिया हुआ नाम है। पूरी तरह स्वस्थ होने पर उस जनता के पास जाऊंगा जिनके प्यार ने मेरी बनावट तय की है। अभी सबसे बड़ी जरूरत वैकल्पिक कार्यक्रम तय करने की है। परेशान-हाल गरीब-गुरबा, निम्न आय वर्ग और मध्यम वर्ग को अनिश्चतता के कुएं से निजात दिलाने के लिए एक साझा कार्यक्रम तैयार करना होगा। उससे ही सही विकल्प सामने आएगा।

सवाल: लालू-नीतीश फिर साथ आ सकते हैं?
जवाब: यह काल्पनिक सवाल है। 2015 में हमने तमाम अंतर्विरोधों को दरकिनार कर महागठबंधन को जीत दिलाई। ज्यादा सीटें जीतीं, बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया। नीतीश ने पौने दो साल बाद ही उस अभूतपूर्व जनादेश के साथ क्या किया पूरा देश गवाह है। राजनीति में सिद्धांत, नीति, नियति और रीढ़ की हड्डी का महत्व अधिक है जो नीतीश खो चुके हैं।

सवाल: 2024 में मोदी का विकल्प कौन हो सकता है?
जवाब: गांठ बांध लिजिए, जो भी चेहरा होगा वो तानाशाही, अहंकार और आत्म-मुग्धता से कोसो दूर होगा। मोदी का विकल्प उनकी जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक प्रगतिशील एजेंडा ही हो सकता है। एक बार जब वैकल्पिक कार्यक्रम को लोग स्वीकार कर लेते हैं तो चेहरे का संशय समाप्त हो जाता है। पिछले 6 साल के शासन से तय हो गया कि आत्म-केन्द्रित व व्यक्ति-केन्द्रित शासन लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत नहीं कर सकता।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि आपके राज में कानून व्यवस्था में चूक हुई? बाकी दल आज तक जंगलराज का मुद्दा बनाए हुए हैं?
जवाब: बिहार के किसी कोने में जाकर किसी जात के आम परिवार से पूछिए। सत्ताधारी विधायकों से पूछिए। वो आज के महा-जंगल राज की हकीकत से रूबरू करा देंगे। कोई भी सरकार अपने कार्यकाल में हुए अपराध को जस्टिफाई नहीं कर सकती, लेकिन उस दौर में जंगल राज अलापने वाले अधिकांश वो लोग थे जिनका मेरे सत्ता में होने से प्रभुत्व कम या खत्म हो गया था। उन पंद्रह वर्षों (1990-2005) और पिछले पंद्रह वर्षों (2006-2021) के अपराध के सरकारी आंकड़ों की निष्पक्ष पड़ताल और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन कर लें, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

सवाल: 3-4 वर्षों के केंद्र व बिहार सरकार के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
जवाब: हमने कहा था कि वर्ष 2014 का चुनाव निर्धारित करेगा कि देश टूटेगा या रहेगा। वर्तमान में क्या हालात हैं किसी से छुपा नहीं है। सरकार तानाशाह बन चुकी है। देश में अघोषित आपातकाल है। किसान, मजदूर, व्यापारी, युवा, कर्मचारी और बेरोजगार सब त्रस्त हैं। महंगाई और बेरोजगारी सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी है।

संवैधानिक संस्थाओं को समाप्त किया जा रहा है। रेल, तेल, जहाज, एलआईसी, बीएसएनएल समेत कई सरकारी संपत्ति को बेचा जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र की दयनीय स्थिति है। किसानों पर काले कानून थोपे जा रहे हैं। पड़ोसी मुल्क देश की सीमा में घुस रहे हैं।