लालू- मुलायम के उदय से पहले कौन था यादवों का नेता?

पिछड़े वर्ग के यादव समुदाय के नेताओं की बात हो तो लालू प्रसाद और मुलायम सिंह के नाम सबसे आगे आते हैं. वैसे ये भी सही है कि इन दोनों नेताओं ने यादव समुदाय को बड़ी पहचान दी. ताकवर मतदाता समूह में तब्दील किया. सत्ता भी हासिल की. राष्ट्रीय फलक पर अपनी ताकत दिखाई.

नेता हुए पर ताकतवर नहीं
इन सबके बावजूद ये भी एक सच है कि इन नेताओं के पहले कई यादव नेता हुए. फिर भी ऐसी पहचान नहीं बना सके. बात चाहे रामनरेश यादव की हो, चंद्रजीत यादव की हो या फिर मित्रसेन यादव की.

चौधरी चरण सिंह भी उस दौर के बड़े नेता थे. चरण सिंह किसानों के नेता के तौर पर जाने पहचाने जाते थे. ये अलग बात थी कि हरियाणा से लेकर देहरादून तक जाट लोग उनसे जुड़े हुए थे. हो सकता है कि इसकी एक वजह ये भी हो कि ज्यादतर जाट किसान ही थे.

खुद दावा किया
इमरजेंसी के बाद 77 के चुनाव के लिए धनिक लाल मंडल झंझारपुर से प्रत्याशी बनाए गए. झंझारपुर लोकसभा सीट की एक विधान सभा फुलपरास से खबर मिली कि वहां के लोग सिर्फ यादव जाति के प्रत्याशी को ही वोट देंगे. इस पर चरण सिंह ने विधान सभा सीट पर सभा की

पत्रकार जितेंद्र बताते हैं कि उस सभा में चरण सिंह ने अपने कुर्ते को झोली बनाते हुए कहा था – “मैं इस देश का सबसे बुजुर्ग यादव नेता हूं. अगर तुम लोगों को सिर्फ यादवों को ही वोट देना है तो मुझे दे देना.” और धनिक लाल मंडल चुनाव जीत गए. केंद्र में सरकार बनी तो मंडल जी चरण सिंह के मंत्रालय में राज्य मंत्री भी बने.

लोग भी मानते थे
ये तो स्थिति बिहार की थी. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी यही स्थिति थी. यादव समुदाय के लोग चरण सिंह को ही अपना नेता मानते थे. यहां चरण सिंह के नाम के पहले लगा चौधरी की उपाधि काम आती. उत्तर प्रदेश के तमाम हिस्सों में यादव लोग उन्हें अपनी ही जाति का मानते थे. लोक दल तक यही स्थिति रही.

बाद में जब मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ तब उन्होंने अलग तरीके से यादव मतदाताओं को संगठित किया. इस तरह से वे इस समुदाय के ताकतवर नेता बने.

आंदोलनों में जाते थे
ऐसा नहीं कि चरण सिंह सिर्फ यादवों का समर्थन लेकर मौन नहीं हो जाते थे. वे इस समुदाय के लिए संघर्ष भी करते थे. जहां कहीं किसानों के मुद्दे होते चरण सिंह वहां पहुंच कर आंदोलन भी करते थे. वे यहां पश्चिमी

उत्तर प्रदेश में अपने समर्थकों से पार्टी के लिए ज्यादा चंदा देने की अपील करते थे. समाजवादी नेता स्वर्गीय मोहन सिंह बताया करते थे कि चौधरी जी पश्चिम के अपने समर्थकों से कहा करते थे – “तुम लोग थोड़ा ज्यादा चंदा दो, क्योंकि पूरब के तुम्हारे भाई गरीब हैं. ”

उस समय गैरसत्ताधारी पार्टियां लोगों के चंदे से ही चला करती थीं. इसी की बदौलत चरण सिंह जैसे नेता बिहार और उत्तर प्रदेश में किसानें-गरीबों के आंदोलन को गति देते थे और यादव जैसी पिछड़ी जातियों के नेता भी थे.