मल्लिका-ए-गजल कही जाने वालीं बेगम अख्तर कौन थीं जानिए

ये कहानी है मल्लिका-ए-गजल कही जाने वालीं बेगम अख्तर की। उनकी जान उनकी गायिकी में बसती थी। यही कारण है कि जब उन्हें गाने से रोका गया तो वो डिप्रेशन में चली गईं और मौत भी गाना गाते हुए ही हुई।
पद्मश्री, पद्मभूषण जैसे न जाने कितने सम्मान हासिल कर चुकीं बेगम अख्तर 1930-50 के दशक की वो मशहूर सिंगर थीं, जो अपनी गजलों से राजा-महाराजाओं को अपनी महफिलों तक खींच लाती थीं। दरबारी गायिका का दर्जा हासिल कर चुकीं बेगम अख्तर पर कोई सोने-चांदी का नजराना देता तो कोई एकड़ों की जमीन उनके नाम कर देता था। खुद भी बड़ी दिलदार थीं। पता चलता की कोई दूर से उनसे मिलने आया है तो तोहफे में मंहगी गाड़ी दे देती थीं
बेगम अख्तर एक मशहूर तवायफ मुश्तारी बाई की बेटी थीं, जिन्हें कम उम्र में पिता ने ठुकरा दिया था। 13 साल की उम्र में एक राजा ने रेप किया, जिससे उन्होंने बेटी को जन्म दिया। ये छिपाने के लिए वो अपनी ही बेटी को अपनी बहन बनाकर रखती थीं, लेकिन आवाज में वो जादू था, जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सका।
उनका रुतबा गायिकी में जद्दनबाई, गौहर जान, मलका जान के बराबर था। इस कदर खूबसूरत थीं कि हर फिल्ममेकर उन्हें अपनी फिल्म में लेने की गुजारिश करता था, लेकिन बेगम अख्तर का पहला और आखिरी प्यार सिर्फ और सिर्फ गायिकी था।-
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मुश्तारी बाई नाम की एक मशहूर तवायफ हुआ करती थीं, जिनकी महफिलों में बड़े-बड़े लोग सिर्फ उनके गाने सुनने आते थे। एक दिन उनकी महफिल में सिविल जज अजगर हुसैन पहुंचे, जो उनके एक गाने के बाद ही उनके मुरीद हो गए। बात बढ़ी और दोनों ने कुछ समय बाद ही शादी कर ली। जाहिर है कि अजगर हुसैन एक इज्जतदार पेशे के थे, जबकि मुश्तारी बाई तवायफ थीं। ऐसे में उन्होंने शादी के बाद गायिकी छोड़ दी।
कुछ समय बाद 7 अक्टूबर 1914 को उनके घर जुड़वां बेटियों अख्तर और जोहरा का जन्म हुआ। वही अख्तर बाई फैजाबादी, जिन्हें पहले बेगम अख्तर नाम से पहचान मिली और फिर उन्हें मल्लिका-ए-गजल की उपाधि दी गई।
बचपन से ही बेगम अख्तर अपनी बदमाशियों के चलते मां से डांट खाती आई थीं। एक दिन उन्हें स्कूल टीचर की चोटी इतनी पसंद आई कि उसे हासिल करने के लिए उन्होंने उनकी चोटी काट दी।
बेगम अख्तर कम उम्र की थीं कि उनके पिता को एक तवायफ से शादी करने और बच्चे होने का पछतावा होने लगा। पछतावा कम करने के लिए एक दिन अचानक उन्होंने मुश्तारी बाई और अपनी दो बच्चियों को ठुकरा दिया। बच्चियों की परवरिश के लिए मुश्तारी ने फिर गायिकी को जरिया बनाया। बेगम अख्तर, बचपन से ही अपनी मां का गाना बड़ी गौर से सुनती थीं। कुछ 7 साल की थीं, जब उन्होंने थिएटर कंपनी की चंद्रा बाई को गाते सुना। गाना उनके कानों में गूंज उठा और उन्होंने खुद भी उनकी तरह गाने का सपना देखा।
नन्ही बेगम अख्तर का गायिकी के लिए ऐसा जुनून देख उनकी मां ने एक रिश्तेदार की मदद से उन्हें पटना भेज दिया, जहां वो मशहूर सारंगी वादक उस्ताद इमदाद खान से ट्रेनिंग लेने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने पटियाला के अता मोहम्मद खान से भी गायिकी के गुर सीखे। बेगम अख्तर को शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी थी, तो मां उन्हें अपने साथ कलकत्ता (अब कोलकाता) ले गईं, जहां वो शास्त्रीय संगीत के महारत मोहम्मद खान और लाहौर के अब्दुल वहीद खान से क्लासिक्ल सिंगिंग सीखकर उस्ताद झंडे खान की शिष्य बन गईं।
बेगम अख्तर बड़ी-बड़ी महफिलों में गाया करती थीं। कहा तो ये भी जाता है कि बिहार के एक राजा ने एक महफिल के बाद उनका रेप किया, जिससे वो गर्भवती हो गईं। उन्होंने महज 13 साल की उम्र में एक बेटी को जन्म भी दिया था, जिसे वो दुनिया के सामने अपनी बहन के रूप में पेश करती थीं।
एक जमाने में बेगम अख्तर की शिष्य रहीं रीता गांगुली ने उन पर एक किताब लिखी थी, जिसके मुताबिक मुंबई के एक तवायफ संगठन ने उनकी आवाज को परखकर उन्हें खरीदने की पेशकश की थी। वो संगठन बेगम अख्तर के लिए उनकी मां मुश्तारी बाई को 1 लाख रुपए देने को तैयार था। उस दौर में ये एक बड़ी रकम थी, हालांकि मुश्तारी ने पैसे ठुकरा दिए।
महज 15 साल की उम्र में बेगम अख्तर ने नेपाल-बिहार भूकंप पीड़ित लोगों के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए हुए एक प्रोग्राम में पहली बार सिंगिग परफॉर्मेंस दी। गूंजती आवाज में जब 15 साल की बेगम अख्तर ने मधुर गाना शुरू किया, तो प्रोग्राम में चल रहा शोर अचानक खामोशी में बदल गया। हर कोई ध्यान लगाकर उनका गाना सुन रहा था। जैसे ही उन्होंने गाना खत्म किया, तो प्रोग्राम में तालियों का शोर कई मिनटों तक सुनाई देता रहा।
तालियां बजाने वालों में भारत कोकिला कही जाने वाली सरोजिनी नायडू भी शामिल थीं, जिन्होंने बेगम अख्तर को पास बुलाया और उनकी गायिकी की सराहना की। सरोजिनी नायडू की तारीफें मिलने के बाद ही बेगम अख्तर ने अपनी जिंदगी गायिकी और गजलों के नाम कर दी।
जब मेगाफोन रिकॉर्ड कंपनी ने बेगम अख्तर की गजलें, दादरा और ठुमरी की रिकॉर्डिंग की, तो देशभर में उनके गाने मशहूर होने लगे। ये शुरुआती फीमेल सिंगर्स में से थीं, जिनके कॉन्सर्ट हुआ करते थे। बेगम अख्तर की गजल ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया, काफी पसंद की गई। इन गजलों की बदौलत उन्हें मल्लिका-ए-गजल कहा जाने लगा।
1934 तक लखनऊ के चीना बाजार में बेगम अख्तर की गजलें सुनने के लिए बड़े-बड़े घराने के लोग पहुंचा करते थे। कोई उन पर सोना-चांदी लुटाता, तो कोई नजराने में 50 एकड़ जमीन के कागजात। बौरी के राजा उनके बड़े मुरीद थे, उन्होंने बेगम अख्तर से उनकी ऊंचाई का एक शीशा लिया था, जिसमें वो खुद को निहारती थीं। एक दिन तो एक राजा ने उन्हें 50 एकड़ जमीन तोहफे में दी, लेकिन खुद्दार बेगम ने लौटते हुए बड़ी इज्जत के साथ वो कागजात लौटा दिए।
ऐसे ही एक दिन रामपुर के नवाब के बेटे उनकी गजल सुनने पहुंचे थे। जब बेगम अख्तर को पता चला कि ये नवाबजादे हैं तो उन्होंने लौटते हुए उन्हें एक लग्जरी कार तोहफे में दी थी।
बेगम अख्तर को दर्दनाक बचपन और हादसों के चलते कम उम्र में ही सिगरेट की तल लग चुकी थी। रमजान के दिनों में भी सिगरेट से दूर न रहना पड़े, इसलिए वो चंद रोजे ही रखती थीं। उनकी इस लत का एक किस्सा बहुत मशहूर है। एक दिन काम के सिलसिले में बेगम अख्तर ट्रेन में सफर कर रही थीं कि उनकी सिगरेट खत्म हो गई
तलब ऐसी थी कि जैसे ही ट्रेन रुकी तो वो बिना कुछ सोचे-समझे सीधे ट्रेन के गार्ड के पास पहुंच गईं और सिगरेट देने की जिद करने लगीं। गार्ड नहीं माना तो बेगम अख्तर ने उसकी झंडी और टॉर्च छीन लिया और कहा जब तक सिगरेट नहीं मिलेगी, तब तक ट्रेन नहीं चलेगी। आखिरकार गार्ड को उनकी मांग माननी ही पड़ी।बेगम अख्तर बेहद खूबसूरत भी थीं, जिसके चलते उन्हें कई हिंदी फिल्मों के ऑफर मिला करते थे। कई फिल्ममेकर उन्हें मनाने के लिए घंटों उनका इंतजार करते थे। हालांकि, उन्होंने शास्त्रीय संगीत को तवज्जो देने के लिए कई फिल्में ठुकरा दीं। जब 30 के दशक में बोलती फिल्में बनना शुरू हुईं, तो फिल्ममेकर्स ऐसी हीरोइनें तलाशते थे, जो सुंदर होने के साथ-साथ गाना भी गा सके।
उनकी तुलना उस जमाने की मशहूर अदाकाराओं से होती थी। बेगम अख्तर में वो सारे गुर थे, जो एक हीरोइन की खूबी हो सकती थी। ये देखते हुए उन्हें कोलकाता की ईस्ट इंडिया कंपनी ने फिल्म एक दिन का बादशाह के लिए बड़ा ऑफर किया। इस बार बेगम अख्तर मान गईं। फिल्म के सभी गाने उन्होंने खुद गाए। आगे वो 1933 की नल दमयंती में भी दिखीं।
उस जमाने के मशहूर फिल्ममेकर महबूब खान ने भी कई मिन्नतों के बाद बेगम अख्तर को फिल्म रोटी (1942) में काम करने के लिए राजी किया। फिल्म के लिए उन्होंने 6 गजलें रिकॉर्ड की थीं, लेकिन महबूब खान और प्रोड्यूसर की अनबन होने के कारण उनकी सिर्फ 3 गजलें ही इस्तेमाल की गईं। फिल्म पूरी होते ही बेगम अख्तर ने फैसला कर लिया कि वो अब कभी फिल्मों में काम नहीं करेंगी और सिर्फ गायिकी में ध्यान देंगी।
लखनऊ जाकर बेगम अख्तर ने दोबारा महफिलों में गाना शुरू कर दिया। एक दिन उनकी एक महफिल में बैरिस्टर इश्तियाक अब्बासी पहुंचे। उन्हें बेगम अख्तर का गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने सीधे शादी का प्रस्ताव दे दिया। वो भी राजी हो गईं और दोनों ने 1945 में शादी कर ली। शादी के तुरंत बाद लखनऊ में उनकी महफिलें अचानक बंद हो गईं।
बेगम अख्तर के पति बैरिस्टर इश्तियाक अब्बासी काकोरी के इज्जतदार खानदान के थे। उन्होंने शादी के बाद बेगम अख्तर को नई पहचान दे दी, जिससे उन्हें कोई गाने वाली के नाम से न पहचाने। उनके गाने पर रोक लगा दी गई और उन्हें पिछली पहचान के किसी भी शख्स से संपर्क करने की इजाजत भी नहीं दी गई।
इज्जतदार घराने की बहू बनने के लिए बेगम अख्तर ने खुद को पूरी तरह बदल लिया और घरेलू महिला बन गईं। ऐसे में जब भी उन्हें घर में या उसके आसपास अपने गाने सुनाई देते थे तो वो डर जाती थीं कि कहीं कोई उन्हें पहचान न ले।
पति के कहने पर बेगम अख्तर ने गायिती तो छोड़ दी, लेकिन वो ज्यादा दिनों तक गायिकी से दूर नहीं रह सकीं। 5 सालों तक गायिकी से दूर रहकर वो डिप्रेशन में चली गईं। उनकी हालत हर गुजरते दिन के साथ बिगड़ती जा रही थी। जब उन्हें इलाज के लिए ले जाया गया तो डॉक्टर्स ने उनके पति को उनके लिए एक ही इलाज का सुझाव दिया, जो था गायिकी। 1949 में पति की रजामंदी से बेगम अख्तर ने ऑल इंडिया रेडियो के लिए गजलें और दादरा रिकॉर्ड कीं।
गायिकी में लौटते ही बेगम की तबीयत सुधरी तो जरूर, लेकिन 1950 में उनकी मां मुश्तारी बाई गुजर गईं। इस बार सदमा गहरा था। डिप्रेशन से निकलने के लिए डॉक्टर्स ने उन्हें गायिकी से जुड़े रहने की सलाह दी। गाने की रिकॉर्डिंग शुरू की तो पहली रिकॉर्डिंग के समय उनके आंसू नहीं रुके। बेगम अख्तर के गायिकी में लौटने पर जितनी खुशी उन्हें मिली, उससे कहीं ज्यादा खुश उनके चाहनेवाले थे।
जब बेगम अख्तर ने वापसी की तो लंबे अंतराल के बावजूद उनकी आवाज का जादू कम नहीं हुआ। ऑल इंडिया रेडियो के लिए वो नियमित तौर पर गाने लगीं।
एक बार बेगम अख्तर गाने के सिलसिले में मुंबई पहुंची थीं, जहां उन्होंने अचानक हज करने का फैसला कर लिया। कम रुपयों के साथ ही वो मदीना तो पहुंचीं, लेकिन चंद दिनों में ही उनके पैसे खर्च हो गए। ऐसे में उन्होंने वहीं जमीन पर बैठकर नात (इस्लामिक रिलीजियस सॉन्ग) गाना शुरू कर दिया, लोगों का हुजूम लग गया और इससे उनके पास पैसे इकट्ठा हो गए। हज से लौटने के 2 साल बाद तक उन्होंने शराब को हाथ नहीं लगाया था।
30 अक्टूबर 1974 में बेगम अख्तर के एक दोस्त नीलम गमाड़िया ने उन्हें तिरुवनंतपुरम के पास बालारामापुरम में हुए एक कॉन्सर्ट में गाने का न्यौता दिया। जब उन्होंने गाना शुरू किया, तो वो अपनी पिच से खुश नहीं थीं। पिच सुधारने के लिए उन्होंने गले पर जोर दिया, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। बेगम अख्तर की हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन वो बिना रुके अपने गले पर जोर देती रहीं। नतीजा ये रहा कि वो स्टेज पर ही बेहोश होकर गिर गईं। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
बेगम अख्तर की कब्र लखनऊ के ठाकुरगंज एरिया में स्थित उनके घर पसंद बाग के आम के बगीचे के बीच बनाई गई है। उनकी मां मुश्तारी की कब्र भी वहीं स्थित है। उनके चाहनेवाले अक्सर उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने आते थे। हालांकि, शहर बसते हुए बचीगे का ज्यादातर हिस्सा खत्म हो चुका है। उनकी कब्र भी गुमनाम होने की कगार पर थी, हालांकि 2012 में उसे संगमरमर के पत्थरों से दोबारा तैयार किया गया।
पंडित जसराज, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया ने बेगम अख्तर को देखकर ही गायिकी शुरू की थी। लता मंगेशकर ने 1940 में एक दिन ऑल इंडिया रेडियो को कॉल कर बेगम अख्तर की गजल सुनने की फरमाइश की थी। लता ने एक इंटरव्यू में कहा था, जब मैंने ऑल इंडिया रेडियो में बेगम अख्तर के साथ अपना नाम सुना तो ये मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी थी।
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