शायद कोई ऐसा काम नहीं जो मैंने बचपन में किया ना हो। गोबर उठाना, गाय-बकरियों को चराने से लेकर साइकिल का पंचर बनाने तक का काम किया है। वजह ये थी कि हम सात भाई-बहन थे और कमाने वाले सिर्फ पापा, जो सरकारी दफ्तर में चपरासी थे, इसलिए कम उम्र से मैंने भी काम करना शुरू कर दिया था। इन सारी चीजों की झलक फिल्मों में जो मैंने रोल किए हैं, उसमें भी देखने को मिलती है। जब इस तरह का रोल मिलता है, तो मैं आसानी से कर लेता हूं क्योंकि बचपन संघर्ष और तंगी में ही बीता है। उन दिनों को आज भी जब याद करता हूं तो सिहर जाता हूं।’
ये कहना है यशपाल शर्मा का जिन्होंने गंगाजल, अपहरण, लगान जैसी फिल्मों में काम किया है। फिल्म लगान में लाखा के रोल से उन्हें बहुत पॉपुलैरिटी मिली थी। 53 फिल्मों का हिस्सा रहे यशपाल का यहां तक का सफर संघर्षों से भरा रहा।
तंगी की वजह से उन्होंने कम उम्र से ही छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया था। रामलीला से शुरू हुआ एक्टिंग का सफर उन्हें NSD तक ले गया, फिर वहां से उन्होंने एक टीवी शो करके फिल्मों में एंट्री ली
मेरा जन्म 1 जनवरी 1967 को हिसार, हरियाणा के एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ। पापा PWD में चपरासी थे। हम सात भाई-बहन थे, जिनकी परवरिश पिता के लिए बहुत ही मुश्किल थी, क्योंकि आमदनी अच्छी नहीं थी। इस वजह से कम उम्र में ही हम भाई-बहनों ने काम करना शुरू कर दिया था। घर में गाय- बकरियां पाली गई थीं, जिन्हें मैं चराने ले जाया करता था। उनके लिए चारा काट कर लाता था, गोबर से उपले बनाता था।
आठवीं के बाद मैंने पापा से पैसे लेना बंद कर दिया था, खुद की कमाई से अपना खर्च निकालता था। इस दौरान 50 रुपए के लिए दूसरे के खेत को पूरा जोत देता था, हाथ में छाले भी पड़ जाते थे, फिर भी 50 रुपए के लिए काम करने से पीछे नहीं रहता था। मैंने साइकिल का पंचर ठीक करने और चक्की पर आटा पीसने का भी काम किया है। इसके साथ सरसों के तेल की मिल और टीन की फैक्ट्री में भी काम किया। यहां तक कि दिवाली में पटाखे और होली में रंग-गुलाल भी बेचा है।
तंगी इतनी थी कि सिर्फ मैं और मेरा एक भाई है, जिसने 10वीं के बाद भी पढ़ाई जारी रखी थी। बाकी सब ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी क्योंकि फीस भरने के पैसे नहीं थे। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मैं दिन में ट्यूशन पढ़ाता और रात में नाइट क्लास अटेंड करता था।
एक्टिंग का कीड़ा मुझे इसी दौरान लगा था। जब रामलीला होती थी, तो उसमें मैं और मेरे कुछ दोस्त भाग लेते थे। कृष्ण जन्म पर भी हम नाटक करते थे, जिसमें मैं वासुदेव बनता था। ये सब करते-करते नाटक से मेरा इतना लगाव हो गया कि मैंने सोच लिया कि मैं नाटकों में आगे करियर बनाऊंगा। मैंने इंग्लिश में MA के लिए कॉलेज में एडमिशन ले लिया। यहां एडमिशन इसलिए क्योंकि प्रिंसिपल चाहते थे कि मैं कॉलेज से जुड़ा रहा हूं और कॉलेज की तरफ से नाटक में हिस्सा लेता रहूं।
कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने 300 रुपए महीने की तनख्वाह पर सुनार की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया, लेकिन नाटक के लिए प्यार कम नहीं हुआ। घरवाले चाहते थे कि मैं किसी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करूं, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मैं नाटक के अलावा कुछ नहीं करूंगा। यहां नौकरी करके और कुछ उपरी कमाई से मैंने लगभग 20 हजार रुपए इकट्ठा कर लिए थे।
कुछ समय बाद मेरा मन धार्मिक नाटकों से हट गया, मुझे नसीरुद्दीन शाह और उत्पल दत्त जैसे कलाकारों के नाटक पसंद आने लगे। इसी दौरान मैंने सुना कि दिल्ली में एक कार्यक्रम हो रहा है, जिसमें नसीरुद्दीन शाह भी आ रहे हैं। ये सुनने के बाद मैं खुद को रोक नहीं पाया और परिवार वालों को बिना बताए दिल्ली चला गया।
मैं सोचकर गया था कि दो दिन में वो कार्यक्रम देखकर घर वापस चला जाऊंगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 2 दिन के बजाय वहां मैं 4 महीने रुक गया। घरवालों को खत भेज दिया कि मैं कुछ महीने बाद घर आऊंगा। उन दिनों मैं नाटक ग्रुप खिलौना से जुड़ गया और कई नाटक किए। यहां पर ही मुझे NSD के बारे में पता चला।
लगभग 4 महीने तक यहां रहने के बाद मैं हिसार वापस चला गया और NSD के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए सुनार की दुकान पर वापस काम करने लगा। कुछ पैसे जमा होने के बाद मैंने NSD में अप्लाई किया, लेकिन रिजेक्ट हो गया। इसके बाद मैं 2 बार और रिजेक्ट हुआ। कुल 3 बार रिजेक्ट होने के बाद मैं चंडीगढ़ के ड्रामा स्कूल चला गया। वहां अभी एक साल भी नहीं हुए थे कि मैंने NSD के लिए अप्लाई किया और मेरा सिलेक्शन हो गया। यहां पर एडमिशन लेने के लिए मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं थे, तब कुछ दोस्तों ने मेरी मदद की थी और मेरा एडमिशन हुआ।
3 साल मैं NSD में रहा, फिर 2 साल रेपेट्री में काम किया। इसके बाद DD1 के लिए मैंने आदर्श टीवी शो में काम किया। यहां पर काम करने के बदले मुझे लगभग 50 हजार रुपए मिले थे, जिन्हें लेकर मैं मुंबई चला गया। मुंबई इसलिए गया क्योंकि कुछ लोगों का कहना था कि वहां जाकर मुझे अच्छा काम मिलेगा।
मुंबई पहुंचने के बाद मैंने एक कमरा किराए पर लिया। जिन लोगों के सहारे मैं यहां आया था, आगे चलकर उनमें से किसी ने भी मेरी मदद नहीं की। धीरे-धीरे कुछ लोगों से मेरी पहचान हुई, जिनकी मदद से टीवी शो CID और आहट में काम किया। इसी दौरान दूसरे नए टीवी शो बन रहे थे। एक दिन मैं एक टीवी शो की शूटिंग पर गया।
वहां देखा कि अगर कोई एक्टर बिना टेक लिए अपना डायलाॅग बोल दे रहा है, वो उसे बेहतर एक्टर मानकर कास्ट कर ले रहे हैं। इन सब चीजों को देख कर मैं बहुत परेशान हुआ और फैसला किया कि कभी भी टीवी शो में काम नहीं करूंगा, अगर करूंगा भी तो फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा काम करने के बाद। वजह ये थी कि मुझे पता था कि अगर मैं वहां काम करूंगा तो मेरी क्रिएटिविटी खत्म हो जाएगी।
इस फैसले के बाद कई दिनों तक मुझे कोई काम नहीं मिला। सारे पैसे भी खत्म हो गए थे। गुजारे के लिए दोस्तों से उधार मांगता था। उन दिनों राजपाल यादव समेत कई एक्टर्स घर के पास ही रहते थे, तो उनसे भी कई बार मैंने पैसे उधार मांगे हैं। कभी भूखा नहीं रहना पड़ा
इसी दौरान मेरी मुलाकात सुधीर मिश्रा से हुई, जिन्होंने मुझे टीवी शो फर्ज में लीड एक्टर का रोल ऑफर किया। इसके बदले वो मुझे महीने का 60-70 हजार रुपए दे रहे थे, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैंने कहा- मैं आपके साथ फिल्म करना चाहता हूं। अगर मैं उस दिन इस ऑफर को रिजेक्ट ना करता, तो शायद आज मैं सिर्फ टीवी शोज का हिस्सा बन कर रह जाता और लाइफ में कुछ बेहतर नहीं कर पाता।
इसके बाद भी कई दिन तक मेरे हालात नहीं सुधरे। खाने का कुछ नहीं रहता था। जगह-जगह जाकर ऑडिशन के लिए पूछता था, अपनी फोटो पर पेजर का नंबर लिख चला आता था, इस उम्मीद में चला आता था कि शायद किसी दिन कोई काम के लिए बुला ले। हालांकि ऐसा होता नहीं था। कुछ दिनों बाद मैं इस संघर्ष से थक गया था। कहीं भी जाता, सिर्फ निराशा ही हाथ लगती थी। इन सारी चीजों से मैं टूटने लगा था।
कुछ दिनों बाद मुझे एक दोस्त ने बताया कि डायरेक्टर गोविंद निहलानी अपनी अपकमिंग फिल्म हजार चौरासी की मां के लिए ऑडिशन ले रहे हैं। इतना सुनते ही मैं रेलवे स्टेशन के लिए पैदल निकल गया और बिना टिकट लिए ट्रेन से स्टूडियो चला गया, जहां ऑडिशन हो रहा था। उस दिन बहुत बारिश हो रही थी। किसी तरह मैं भीगते-भागते स्टूडियो पहुंचा। ऑडिशन देने से पहले मैं बाथरूम गया, सारे कपड़े निकाले, उन्हें निचोड़ा। फिर दोबारा उन कपड़ों को पहनकर मैंने ऑडिशन दिया।
गोविंद निहलानी को मेरा ये जुनून और काम दोनों पसंद आए, जिसके बाद मुझे फिल्म हजार चौरासी की मां में काम करने का मौका मिला। गोविंद निहलानी ने मेरी तारीफ श्याम बेनेगल से की जिन्होंने मुझे 1999 में रिलीज हुई फिल्म समर में काम करने का मौका दिया।
फिल्म समर में मेरा काम देखने के बाद डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर ने मुझे फिल्म लगान के लिए अप्रोच किया। इस फिल्म में काम मिलने का किस्सा ये है कि फिल्म समर करने के बाद मेरे पास कोई बड़ा ऑफर नहीं था। एक दिन दोपहर में खाना खा रहा था कि तभी पेजर पर देखा कि आमिर खान फिल्म प्रोडक्शन से मुझे ऑफर का मैसेज आया था।
पहले मुझे लगा कि कोई मजाक कर रहा है, लेकिन सोचा कि चल कर देख ही लेते हैं। मैं ऑफिस मिलने चला गया। वहां पर मेरी आशुतोष गोवारिकर से मुलाकात हुई, जिन्होंने मुझे फिल्म की पूरी कहानी सुना दी। जब वो कहानी सुना रहे थे, तभी मैं सोच रहा था कि लाखा का रोल कौन करेगा। तभी उन्होंने मुझे बताया कि मुझे इस रोल के लिए चुना गया है, लेकिन इससे पहले मेरा ऑडिशन होगा। मैंने कहा ठीक है।
अगले दिन मैं आमिर खान के घर ऑडिशन देने चला गया। वहां ऑडिशन देकर जैसे ही मैं ट्रेन के लिए निकला तभी पेजर पर मैसेज आया कि लाखा के रोल के लिए मैं सिलेक्ट हो गया हूं। अगले दिन मुझे आमिर खान की एक्स-वाइफ रीना दत्ता ने फीस डिस्कस करने के लिए बुलाया। इस दौरान मैं सोच रहा था कि क्या फीस मांगू, बड़ी उलझन थी। पहले सोचा कि 80 हजार फीस के लिए कहूंगा, फिर लगा ज्यादा ना हो जाए।
बाद में तय किया अगर वो 20 हजार भी देंगे, फिर भी काम करना ही है क्योंकि उस समय काम की सख्त जरूरत थी। मैं फीस के लिए कुछ बोलता कि रीना ने बोल दिया- फिल्म का बजट कम है, हम सभी एक्टर को 1.5 लाख दे रहे हैं। मैंने बोला कि 2 लाख दे दीजिए। मेरी इस बात पर उन्होंने हामी भरी और इस तरह मैं इस फिल्म का हिस्सा बना। आज भी ये बात हैरान करती है कि मैंने 2 लाख कैसे बोल दिया था।
इसके बाद मैं कई फिल्मों का हिस्सा रहा। एक दिन मैं फ्लाइट से बनारस जा रहा था, उसी फ्लाइट में डायरेक्टर अनुराग कश्यप भी थे। हम दोनों मिले, मुझे देखकर वो बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझे बताया कि फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के दोनों पार्ट की शूटिंग लगभग एक साथ पूरी हो गई। मुझे भी लगा कि ये कुछ बड़ा करेंगे।
एयरपोर्ट से मैं जाने लगा था कि तभी वो मुझसे पूछ बैठे कि क्या मैं आइटम बॉय का रोल करूंगा। ये सुनकर मैं हैरान रह गया, आइटम गर्ल तो सुना था, लेकिन आइटम बॉय नहीं। हालांकि इसके बाद भी मैंने हामी कर दी क्योंकि मैं कुछ हट कर रोल करना चाहता था। इस तरह मैं इस फिल्म का हिस्सा रहा।