नई दिल्ली : देश में चुनावों का बिगुल बज चुका है। चुनावी दंगल के लिए मैदान तैयार होने के बाद अब इस रण में पार्टियां अपने मुताबिक कूदने को भी तैयार है। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, कम्यूनिस्ट पार्टी, शिवसेना, समेत तमाम पार्टियां इस चुनाव में अपनी रणनीति को या तो आखिरी मुकाम दे चुकी हैं या फिर ऐसा करने की तैयारी कर रहीं हैं। इस बार का चुनाव वास्तव में बेहद दिलचस्प होने के वाला है। दिलचस्प सिर्फ इस वजह से नहीं कि इस बार मोदी बनाम पूरा विपक्ष है बल्कि इसलिए भी है क्योंकि राष्ट्रीय पार्टियों समेत कुछ पार्टियों की साख इस चुनाव में दांव पर लगी है। यह चुनाव इन पार्टियों के लिए अपनी जमीन बचाने की भी लड़ाई साबित होने वाला है।
आगे बढ़ने से पहले जरा उन मुद्दों पर गौर लेना भी जरूरी है जो इस चुनाव का अभिन्न हिस्सा होंगे। इनमें आतंकवाद, किसान, राफेल, राममंदिर के अलावा पुलवामा हमला भी शामिल जरूर होगा। हर कोई इन मुद्दों को अपने तरीके से भुनाने की कोशिश भी करेगा। इन सभी के बीच यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि आखिर विभिन्न पार्टियों के बड़े चेहरे और बड़े नाम इस चुनाव में कितना गुल खिला पाएंगे। इसके अलावा एक और खास बात है, वो ये कि इस बार भी हर बार की तरह ही उत्तर प्रदेश केंद्र की सत्ता की राह खोलेगा।
2014 के लोकसभा चुनाव पर यदि गौर करें तो वह चुनाव कांग्रेस बनाम भाजपा था। ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त सत्ता के केंद्र में कांग्रेस थी और खुद को सत्ता में वापसी के सपने संजो कर चुनावी रण में उतरी थी। लेकिन इस चुनाव में भाजपा सभी दलों पर भारी पड़ी। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी के विशाल कद के आगे सभी बौने साबित हुए। 2014 में चली मोदी आंधी में अपने को दिग्गज कहलाने वाले कई नेता इस कदर धराशायी हुए कि उन्हें अब अपनी राजनीतिक जमीन खोने तक का डर हो रहा है। ऐसे एक नहीं कई नेता है।
इनमें कांग्रेस के कई बड़े नाम विजय पताका फहराने में नाकामयाब रहे। इसमें सलमान खुर्शीद, सुशील कुमार शिंदे, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, प्रफल पटेल, एमएमपी राजू, अजीत सिंह, गिरिजा व्यास, दिनिशा पटेल, श्रीप्रकाश जायसवाल, चंद्रेश कुमारी, सचिन पायलट का नाम शामिल है। इनमें से कई मनमोहन केबिनेट का हिस्सा थे।
आपको बता दें कि पिछला चुनाव कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में लड़ा था। उनके नेतृत्व में पार्टी को अपनी करारी हार को भी सहना पड़ा था। भाजपा ने इस चुनाव में कांग्रेस के भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था। इस चुनाव में जहां भाजपा ने 282 सीटों पर अपनी विजय पताका फहराकर देश को एक मजबूत सरकार दी वहीं कांग्रेस को इस चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले 162 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस को इस चुनाव में महज 44 सीटें मिलीं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए इस चुनाव में भाजपा को करीब 166 सीटों का फायदा हुआ था। इस 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन और विरासत को लगभग खो बैठी थी। कांग्रेस के लिए 2019 के चुनाव इसी राजनीतिक जमीन को बचाने की लड़ाई है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि हर लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टियों की जीत हार केंद्र की सत्ता का रास्ता साफ करती आई है। 2014 में यहां से भाजपा अकेले दम पर 71 सीटों पर जीत हासिल की थी।
उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनाव में हर बार काफी अहम भूमिका निभाता रहा है। इस बार भी वह इसी भूमिका में दिखाई देने वाला है। दरअसल उत्तर प्रदेश में लोक सभा की 80 सीटें हैं जो देश भर के राज्यों में मौजूद सीटों में से सबसे अधिक हैं। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा का असली जोर यहां पर ही होता है। पिछली बार मोदी के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में यहां पर भाजपा ने अन्य दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था। इस बार भी भाजपा उसी तरह से मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी है। पिछली बार यहां से भाजपा को कुल मत प्रतिशत में से 42 फीसद से अधिक मत मिले थे। वहीं दूसरे नंबर पर सपा रही थी जिसको 22 फीसद से अधिक और तीसरे नंबर पर बसपा 19 फीसद से अधिक और चौथे नंबर पर कांग्रेस रही थी जिसे महज साढ़े सात फीसद मत मिले थे। भाजपा के लिए जहां इस बार उत्तर प्रदेश में पिछली बार मिली सीटों को दोबारा पाने की कवायद सबसे बड़ी है वहीं कांग्रेस समेत बसपा और सपा के लिए अपनी खोई हुई जमीन पाने की कवायद है। लिहाजा यह कहना गलत नहीं होगा कि हर बार की ही तरह इस बार भी केंद्र की सत्ता की राह उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरेगी।