लोकसभा 2024 की दौड़ में बसपा भी मजबूती दिखा रही है। पार्टी प्रमुख मायावती ने 1 लाख गांव तक पहुंचने का टारगेट रखा है। स्लोगन दिया है, हर बूथ पर 10 यूथ जोड़ेंगे। 3 दिन में ये अभयान गांव-गांव शुरू हो चुका है। 3 महीने तक बसपा का कोर कैडर यूथ को पार्टी से जोड़ने का काम करेगा।
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा,”बीते 3 दिनों से अभियान 75 जिलों में शुरू हो चुका है। 2024 के चुनाव से पहले बसपा का 1.70 लाख बूथ मजबूत करने वाली है।”
बसपा से जुड़े पदाधिकारी बताते हैं कि मायावती के निर्देश पर यूपी के करीब 1 लाख 6 हजार गांव में पदाधिकारियों को जाने का निर्देश दिया गया है। हर गांव के बूथ में 10 नए युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ा जा रहा है। उन्हें बूथ की जिम्मेदारी दी जा रही है।
बसपा अध्यक्ष मायावती ने समीक्षा बैठक में कहा,”गांव-गांव जाकर कैडर वोटर को समझाओ, जो पार्टी से दूर हो रहे हैं, उन्हें जोड़ो।” उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति साझा की थी। इसी में नारा दिया था ‘वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा’। इसके साथ, पार्टी ने काम शुरू कर दिया है।
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा 2019 में जीती गई 10 सीटों को सुरक्षित रखना चाहती है। वहीं पिछले चुनावों में भी जीती हुई सीटों को मजबूत करने पर काम शुरू हुआ है। दलित और अति पिछड़ों को जोड़ने के लिए ही इस बार ‘वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा’ नारे के साथ पार्टी लोकसभा चुनाव में जा रही है।
पार्टी अगस्त 2023 में बूथ कमेटियों का गठन करेगी। इसके बाद कैडर कैंप लगाए जाएंगे। इनमें पार्टी के वरिष्ठ नेता युवाओं को पार्टी की विचारधारा के बारे में बताएंगे।
बसपा को सबसे ज्यादा चिंता अपने परंपरागत दलित वोट बैंक को लेकर है। लोकसभा चुनाव से पहले इसे अपने पाले में लाने पर पार्टी का खासा जोर है। पुराने बड़े नेता अब पार्टी में रहे नहीं। ऐसे में युवाओं को पार्टी से जोड़ने की लगातार कोशिश है।
हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव और नगर निकाय चुनाव में भी कुछ युवाओं को जिम्मेदारी देने के निर्देश बसपा प्रमुख ने दिए थे, लेकिन उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां नहीं दी गई थीं। इसके बाद भी नतीजे पार्टी के मन मुताबिक नहीं आए। ऐसे में इस बार उन खामियों को दूर करते हुए अब युवाओं को बूथ से लेकर विधानसभा स्तर तक महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देने के निर्देश दिए गए हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से बसपा ने सबक लिया है। विधानसभा चुनाव में उसने ब्राह्मण-दलित कार्ड पर दांव खेला था, लेकिन उसकी हाथ गहरी निराशा लगी। बसपा एक सीट पर सिमट कर रह गई है। इसके बाद से मायावती दलित-अति पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद कर रही हैं।
बसपा ब्राह्मण समाज से दूरी बना लिया है और मुस्लिमों पर ही अपना फोकस केंद्रित कर रखा है। सूबे में प्रदेश से लेकर जिला और पंचायत स्तर तक मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने का अभियान चला रही है। मायावती सपा को ओबीसी विरोधी बताते हुए कई बार हमलावर हो चुकी हैं।
साल 2007 से पहले दलित, अति पिछड़ा और मुसलमान ही बसपा का चुनावी समीकरण की धुरी रहे हैं। साल 2007 में ब्राह्मणों को बसपा में अहमियत दी और प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली थी। लेकिन 2012 के बाद से बसपा के ग्राफ लगातार गिरा है।
2022 के चुनाव में मुसलमानों ने जिस तरह से एकतरफा सपा को वोट दिया है, उसके चलते बसपा यूपी में गिरकर 12 फीसदी पर वोटों पर आ गई। सूबे में दलित 22 फीसदी है और मुस्लिम 20 फीसदी है। यह दोनों वोट एक साथ आ आ जाते हैं तो फिर यह आंकड़ा 42 फीसदी हो जाता है और अति पिछड़ी जातियां जुड़ती है तो बसपा इस ताकत में आ जाएगी कि वह बीजेपी को चुनौती दे सके।
पिछले लोकसभा चुनाव-2019 में सपा के साथ गठबंधन करके 10 सीटें हासिल की थीं। उसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव बसपा ने फिर अकेले लड़ा। इनमें प्रदर्शन और निराशाजनक रहा। विधान सभा चुनाव में वोट प्रतिशत 13 फीसदी से नीचे आ गया और महज एक सीट पर पार्टी सिमट गई। नगर निकाय चुनाव में भी मेयर की एक भी सीट नहीं जीत सकी और वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत रहा।