शाही परिवार से आने वाले प्रद्युत किशोर को ये खुशी और बेफिक्री 2 मार्च को आए चुनाव नतीजों ने दी है। दो साल पहले बनी उनकी पार्टी अब त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल है। पार्टी पहली बार चुनाव लड़ी, 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 13 को जीत मिली।
चुनाव से पहले माना जा रहा था कि टिपरा मोथा सरकार चला रही BJP को नुकसान पहुंचा सकती है। इसका फायदा कांग्रेस और CPI(M) को मिलता, पर हुआ इसका उल्टा। BJP को सिर्फ 3 सीटों का नुकसान है, वहीं CPI(M) से मुख्य विपक्षी का दल का दर्जा छिन गया। उसे टिपरा मोथा से 2 कम यानी 11 सीटें मिली हैं। 2018 में CPI(M) ने 16 सीटें जीती थीं।
नतीजों में BJP और कांग्रेस के लिए कुछ नया नहीं, लेकिन टिपरा मोथा का सीधे विपक्ष की हैसियत में आना लेफ्ट के लिए ध्वस्त होने जैसा है। त्रिपुरा CPI(M) का गढ़ रहा है, उसके पास वजूद के नाम पर विपक्षी दल का स्टेटस था, वह भी टिपरा मोथा ने छीन लिया।
टिपरा मोथा के चीफ प्रद्युत किशोर मानिक देब बर्मा रैलियों और जनसभाओं में बताते रहे कि BJP ने उनसे हाथ मिलाने के लिए दबाव डाला, लेकिन वह बिकने वाले लोगों में नहीं हैं। उन्होंने पूरे चुनाव के दौरान अपना मुकाबला BJP से बताया। कांग्रेस को लेकर उन्होंने राहुल और प्रियंका गांधी से अच्छे रिश्ते तक की बात कही। लेफ्ट के खिलाफ कोई बयान नहीं आया। जब नतीजे आए तो नुकसान BJP से ज्यादा लेफ्ट को पहुंचा।
त्रिपुरा के सीनियर जर्नलिस्ट शेखर दत्त कहते हैं, ‘आदिवासियों के बीच में टिपरा मोथा की पकड़ थी। वह कुछ सीटें जीतेगी, यह तय था। पर 13 सीटें जीतकर लेफ्ट को विपक्ष की हैसियत से बेदखल कर देगी, यह अंदाजा लगाना मुश्किल था। वह भी तब जब कांग्रेस उसके साथ थी।’
वे कहते हैं, ‘ लेफ्ट ने इस चुनाव में पूरी ताकत लगा दी थी। आदिवासी नेता जितेंद्र चौधरी को CM बनाया, पर वह उतनी सीटें भी नहीं ला पाए, जितनी पिछली बार थीं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कितनी सीटों का अंतर है। फर्क इस बात से पड़ता है कि आप पद में प्रमोट हुए या डिमोट।’
CPI(M) ने 3 फरवरी को मेनिफेस्टो जारी किया था, इसमें पुरानी पेंशन बहाल करने और ढाई लाख नौकरियां देने का वादा किया था, लेकिन चुनाव में इसका फायदा नहीं मिला।
उम्मीद से बिल्कुल उलट 2 मार्च को नतीजे आने के बाद और अगले दिन भी प्रद्युत ने कोई राजनीतिक कमेंट नहीं किया। न उन्होंने जनता का शुक्रिया अदा किया और न ही जीत पर ट्वीट। शायद वे जताना चाहते थे कि उन्हें जीत-हार से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैंने उनसे पूछा कि आप राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी और मुख्य विपक्षी दल हैं। यह बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि पार्टी बिल्कुल नई है। ट्विटर पर न जनता को शुक्रिया और न कोई जश्न की झलक। तब बेफिक्र अंदाज में उनका जवाब मिला, ‘ मैं अपना ट्विटर हैंडल खुद हैंडल करता हूं। कोई टीम नहीं है। मैं पूरे दिन व्यस्त था।’
प्रद्युत देब बर्मा से मैंने पूछा कि क्या अब भी आप अलग प्रदेश की पुरानी मांग पर अड़े रहेंगे। जवाब मिला- ‘जज्बात में घुली मांग पुरानी नहीं होती। मुझे उन्हीं लोगों ने चुनकर भेजा है, जिनके लिए मैंने मांग की है। मैं ग्रेटर त्रिपरालैंड की मांग असेंबली में भी उठाऊंगा।’
प्रद्युत किशोर देब बर्मा का अंदाज पूरे चुनाव में छाया रहा। वे लाइमलाइट में तब आए, जब गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें दिल्ली बुलाया और त्रिपुरा में मिलकर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। दरअसल प्रद्युत त्रिपुरा में आदिवासियों के लिए अलग ग्रेटर त्रिपरालैंड की मांग कर रहे हैं।
इस बार उन्होंने लिखित में BJP से इसका वादा मांग लिया था। BJP तैयार नहीं हुई तो उन्होंने साथ आने से इनकार कर दिया। इससे भी आगे उन्होंने टिपरा मोथा के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
वोटों की गिनती वाले दिन उन्होंने 12 बजकर 48 मिनट पर कुछ नए म्यूजिशियन्स की फोटो के साथ एक ट्वीट किया, ‘ म्यूजिशियन्स के साथ शाम बिताना, यह महसूस करने का बिल्कुल सटीक तरीका है कि अपनी आत्मा के साथ सच्चा रहना पॉलिटिकल लाइमलाइट में रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’
त्रिपुरा के राजवंश से ताल्लुक रखने वाले प्रद्युत का स्टाइल चर्चा में रहता है। डार्क चश्मा और अब कुर्ता-पैजामा। सोशल मीडिया पर वे विरोधियों को चुनौती देते रहते हैं। वे यह भी कहते रहे कि जीत हार तो लगी रहेगी, लेकिन मैं अपने लोगों के लिए हमेशा लड़ता रहूंगा। त्रिपुरा की स्थानीय भाषा में राजा को नाते बुबाग्रा कहा जाता है। वह जनसभाओं में कहते रहे, ‘ये बुबाग्रा केवल आपका है, कभी नहीं बिकेगा।’
5 फरवरी 2021 को प्रद्युत ने अपने सामाजिक संगठन को राजनीतिक पार्टी में बदलने की घोषणा की थी। उसी साल ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट कांउसिल के चुनाव में टिपरा मोथा खड़ी हुई और बहुमत हासिल किया। महज दो साल में पार्टी विधानसभा चुनाव में खड़ी हुई और विपक्ष का दर्जा हासिल किया।
BJP ने पिछली बार के मुकाबले इस बार 4 सीटें खोईं, लेकिन 32 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया। लेफ्ट ने इस बार 11 सीटें जीतीं, पिछली बार उसे 16 सीटें मिली थीं। BJP की सहयोगी पार्टी IPFT इस बार महज एक सीट जीत पाई। पिछली बार उसकी 8 सीटें थीं। कांग्रेस ने इस बार 3 सीटें जीतीं, पिछली बार वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
प्रद्युत देब बर्मा ने 7 फरवरी को पेचारथल में जनसभा की थी। यहीं उन्होंने एक घर में खाना खाया और कुछ देर आराम किया। जानकारों का मानना है कि प्रद्युत का यही अंदाज लोगों को पसंद आया
प्रद्युत देब बर्मा अपना सोशल मीडिया अकाउंट खुद हैंडल करते हैं। उनके करीबी बताते हैं कि उन्होंने पॉलिटिकल इमेज मेकिंग के लिए भी कोई टीम हायर नहीं की है। फिर भी वह सोशल मीडिया पर छाए रहे।
एक पत्रकार ने उन्हें किंग मेकर और महाराज कहकर पुकारा तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘आजकल किंग की तरह कपड़े केवल जादूगर पीसी सरकार पहनता है।’ एक और पत्रकार ने पूछा, आपको क्या कहूं प्रद्युत या महाराज, तो उनका जवाब था, ‘महाराज तो खाना बनाने वाले को भी कहते हैं।’
प्रद्युत भाषण देते हुए कभी फिल्म ‘दीवार’ के अमिताभ बच्चन के अंदाज में नजर आए तो कभी फिल्मी अंदाज में डायलॉग सुनाते दिखे। चुनाव में उतरने से पहले सभाओं में कहा, ‘जीतेगा तो जीतेगा। हारेगा तो हारेगा, लेकिन एक लास्ट फाइट करके रहेगा।’ यह वीडियो काफी वायरल भी हुआ।
शाही परिवार से होने के बावजूद प्रद्युत लोगों से चुनाव के लिए फंड मांगने से भी नहीं झिझके। प्रद्युत ने बकायदा बैंक अकाउंट की डिटेल लोगों से सोशल मीडिया पर शेयर की। कभी 6 साल की एक बच्ची अपना पिगी बैंक लिए उनके पास पहुंची, तो कभी किसी राजघराने से जुड़ी महिला ने उनके बैंक अकाउंट में पैसा डाला।
एक रैली के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने प्रद्युत को लेफ्ट और कांग्रेस की B टीम कहा, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया। कहा, ‘मैं देश के होम मिनिस्टर से कहना चाहता हूं कि यह मानिक्य परिवार किसी के सामने झुकता नहीं है। यह किसी की B टीम नहीं है। आपने मेरे दादा वीर विक्रम का नाम लिया तो आपको समझना चाहिए कि वीर विक्रम सिंह का पोता झुकेगा नहीं।’
पश्चिम बंगाल में अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव हो सकते हैं। TMC से लेकर BJP और CPM तक ने ग्राउंड पर चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। TMC को हराने के लिए कई जगह दोनों ने हाथ मिला लिया है। कांग्रेस भी साथ है। इसकी वजह है कि पंचायत चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में बड़ा असर डालेंगे। BJP प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार का कहना है कि ‘TMC की गुंडागर्दी इतनी बढ़ गई है कि कई जगह समझौते किए जा रहे हैं।’