फिल्म के डायलॉग राइटर सौरभ गुप्ता ने क्या कुछ कहा, जानिए ?

एनिमल के कुछ डायलॉग्स पर काफी विवाद हुए। फिल्म को महिला विरोधी भी बताया गया है। हालांकि जब हमने फिल्म के डायलॉग राइटर सौरभ गुप्ता से बात की तो उनकी राय कुछ और ही थी। सौरभ ने फिल्म की शूटिंग से जुड़े कुछ किस्से भी सुनाए।
फिल्म एनिमल के एक सीन में रणबीर कपूर का किरदार यानी रणविजय सिंह खुद को चांटा मारता है। यह सीन स्क्रिप्ट में नहीं था। रणबीर कपूर ने इस सीन को खुद से इम्प्रोवाइज किया था। जब उन्होंने खुद को थप्पड़ मारा तो सेट पर सभी लोग सन्न रह गए। फिल्म के डायलॉग राइटर सौरभ गुप्ता ने इस बात से पर्दा उठाया है।
एनिमल के डायलॉग्स पर तरह-तरह के रिएक्शन देखने को मिले। कहीं इसकी तारीफ हुई तो कहीं इसकी आलोचना की गई। इन डायलॉग्स को लिखने वाले सौरभ गुप्ता ने कहा कि जैसे फिल्म के कैरेक्टर थे, उन्होंने उसी हिसाब से फिल्म के डायलॉग्स लिखे हैं। उनकी सोच ऐसी नहीं थी कि जिससे किसी की भावनाएं आहत हों।
सौरभ ने संदीप रेड्डी वांगा की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि संदीप एक तेलुगु भाषी हैं, इसके बावजूद उनकी हिंदी बेहतरीन है। फिल्म के अधिकतर डायलॉग्स भी उन्होंने ही लिखे हैं। फिल्म के कुछ कॉन्ट्रोवर्शियल जैसे सैनिटरी पैड वाले डायलॉग के पीछे भी संदीप रेड्डी वांगा का ही दिमाग था।
राजस्थान जैसे हिंदी पट्टी क्षेत्र से संबंध रखने वाले सौरभ ने पंजाबी में डायलॉग्स लिखे। यह देखकर प्रेम चोपड़ा से लेकर सुरेश ओबेरॉय जैसे दिग्गज एक्टर्स भी अचरज में थे। सौरभ ने बताया कि अनिल कपूर के साथ डायलॉग्स का रिहर्सल करना चुनौतीपूर्ण था। अनिल कपूर कुछ-कुछ लाइन्स खुद से डेवलप कर लेते थे। उन्हें इतना तजुर्बा है कि राइटर्स भी उनके सामने कुछ भी कहने से हिचकिचाते हैं। कैसे उन्होंने इतनी बड़ी फिल्म के लिए डायलॉग्स लिखे। रणबीर कपूर, अनिल कपूर और रश्मिका मंदाना के साथ काम करना कैसा रहा। संदीप रेड्डी वांगा के साथ उनकी जुगलबंदी कैसी रही।
सौरभ गुप्ता फिल्म एनिमल के साथ कैसे जुड़े। सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘2021 की बात है। एक दिन मेरा फोन बजा। सामने वाले इंसान ने कहा कि हैलो, मैं संदीप रेड्डी वांगा बोल रहा हूं। उन्होंने मुझे एक सीन लिखने को बोला।
सीन यह था कि रणबीर कपूर अपने कजिन्स को मनाने पंजाब जाते हैं। संदीप ने मुझे वो पूरा सीक्वेंस लिखने को कहा। मैंने वो सीन लिखकर उन्हें दिया। संदीप ने इसे काफी पसंद किया। उन्होंने मुझसे तुरंत कहा कि आप मेरी फिल्म एनिमल के डायलॉग्स लिखेंगे। इस तरह मैं इस फिल्म से जुड़ गया।’
डायलॉग्स लिखने के प्रोसेस पर सौरभ कहते हैं, ‘डायलॉग्स कैसे लिखने हैं, वो एक डायरेक्टर ही तय करता है। संदीप रेड्डी वांगा का अलग स्टाइल है। फिल्म के सेट पर वे हमें बताते थे कि किस सीन के लिए कैसे डायलॉग्स लिखने हैं। उसी हिसाब से मैं डायलॉग्स लिखता था।
संदीप को लगता था कि कुछ बदलाव होने चाहिए तो वो भी कराते थे। आपको जानकर बहुत हैरानी होगी कि एक तेलुगु भाषी होने के बाद भी संदीप की हिंदी काफी बेहतरीन है। कुछ-कुछ शब्द एक आम हिंदी भाषी को भी पता नहीं होगा जितना संदीप को आता है।
फिल्म के डायलॉग्स को लेकर जारी विवाद पर सौरभ गुप्ता ने कहा, ‘बहुत सारे डायलॉग्स संदीप रेड्डी वांगा ने खुद लिखे हैं। मैं तुम्हारे लिए चांद तारे तोड़कर लाऊंगा…प्रपोजल के वक्त ऐसा सभी कहते हैं। संदीप कुछ नया चाहते थे इसलिए उन्होंने ऐसे डायलॉग्स लिखे। यह डायलॉग था- YOU HAVE A BIG PELVIS, YOU CAN ACCOMMODATE HEALTHY BABIES
जहां तक सैनिटरी पैड वाले डायलॉग की बात है तो यह पति और पत्नी के बीच की बातचीत है। मुझे लगता है कि हसबैंड-वाइफ के बीच एक इंटीमेसी होती है, उनकी कुछ पर्सनल बातें होती हैं। इसी को ध्यान में रखकर यह डायलॉग लिखा गया है। खैर, सराहना और आलोचना दो सगी बहनें हैं। जहां सराहना होगी वहां आलोचना जरूर होगी। हमें इसका भी सम्मान करना चाहिए।’
जो हाथ तेरी मांग में सिंदूर भरेगा, उसकी हर एक लकीर मैं खुद चेक करूंगा। स्वयंवर रचाऊंगा।’ इस डायलॉग का अर्थ समझाते हुए सौरभ कहते हैं, ‘फिल्म में रणबीर कपूर का किरदार बहुत निर्भीक है। वो किसी से नहीं डरता। वो नहीं चाहता कि जैसा पति उसकी बड़ी बहन को मिला, वैसा ही पति छोटी बहन को भी मिले।
रणविजय सिंह खुद को पिता बलवीर सिंह के बाद घर का मालिक समझता है। वो चाहता है कि फैमिली मेंबर्स से जुड़े सारे बड़े डिसीजन वही ले।’
सौरभ गुप्ता ने कहा कि संदीप रेड्डी वांगा को हिंदी फिल्मों की बहुत अच्छी समझ है। उन्होंने बहुत सारी हिंदी फिल्में देखी हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘संदीप से आप पुरानी से पुरानी हिंदी फिल्मों के बारे में पूछ लें, उन्हें सारी जानकारी है। एक दिन उन्होंने रणबीर को ऋषि कपूर जी की एक फिल्म के बारे में बताया, जिसकी जानकारी रणबीर को भी नहीं थी। संदीप की हिंदी फिल्मों को लेकर जानकारी देख रणबीर भी शॉक्ड थे।’
एनिमल में रश्मिका मंदाना की डायलॉग डिलीवरी को लेकर उनकी काफी ट्रोलिंग हुई। इस पर सौरभ ने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आया कि यह ट्रोलिंग क्यों हुई। उन्होंने अपने डायलॉग्स इतनी बारीकी से बोले कि उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है।
मुझे एक भी बार उन्हें तर्जुमा समझाना नहीं पड़ा। मुझे कभी भी उनकी हिंदी सही नहीं करानी पड़ी। रश्मिका को पता था कि डायलॉग्स को किस फील के साथ दोहराना है। अगर आप किसी भाषा में पारंगत नहीं हैं, तो उसे सही मर्म के साथ बोल नहीं पाएंगे। रश्मिका के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं था। उन्हें पता होता था कि किसी पर्टिकुलर वर्ड या सेंटेंस को किस फील के साथ कैमरे पर बोलना है।’
फिल्म में सुरेश ओबेरॉय, शक्ति कपूर और प्रेम चोपड़ा जैसे दिग्गज कलाकार सौरभ गुप्ता के काम से काफी प्रभावित थे। सौरभ कहते हैं, ‘सेट पर सुरेश जी और प्रेम चोपड़ा जी मुझसे पूछते थे कि पुत्तर तू पंजाबी है? मैं कहता, नहीं सर मैं राजस्थान का रहने वाला हूं। वे कहते थे- फिर तूने पंजाबी में इतने अच्छे डायलॉग्स कैसे लिख लिए?
दरअसल, मैंने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई की है। वहां मेरे कई पंजाबी दोस्त थे। उन लोगों के साथ रहकर मुझे भी थोड़ी बहुत पंजाबी आ गई। इसके अलावा मैं देश के कई हिस्सों में रहा हूं इसलिए थोड़ी बहुत कई भाषाएं आती हैं। हालांकि एनिमल के पंजाबी डायलॉग्स का बहुत सारा श्रेय उन पंजाबी एक्टर्स को भी देना चाहिए। जहां उन्हें लग रहा था कि थोड़ा इधर-उधर लिख दिया है, वे सारे मिलकर इसे सही कर देते थे।’
सौरभ ने कहा कि वो हिंदी में ही डायलॉग्स लिखना पसंद करते हैं। वो हिंदी में ही सोचते हैं और हिंदी में ही लिखना पसंद करते हैं। उन्होंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘कुछ राइटर्स कहते हैं कि वो अंग्रेजी में सोचकर हिंदी में डायलॉग्स ट्रांसलेट करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।
मेरे ख्याल से हिंदी फिल्में लिखने वाले सभी लेखकों को सबसे पहले हिंदी की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें हिंदी साहित्य की किताबें पढ़नी चाहिए। जब तक आपको अच्छी हिंदी नहीं आएगी, आप इस भाषा में संवाद नहीं लिख पाएंगे।’एनिमल में रणबीर कपूर और अनिल कपूर जैसे बड़े स्टार्स को कन्विंस करना भी आसान नहीं था। अनिल कपूर इम्प्रोवाइज करते हैं। वो खुद से ही लाइन्स बोलने लगते हैं। उनके सामने डायलॉग राइटर भी कन्फ्यूज हो जाते हैं कि क्या किया जाए।
सौरभ ने कहा, ‘अनिल सर के सामने ईगो साइड में रखना पड़ता है। वो कई बार कहते थे कि क्या बकवास लाइन लिख दी है। फिर मुझे उन्हें समझाना पड़ता था। मैंने कहा कि सर, मैंने आपके गानों पर डांस किया हुआ है। आप मुझे एक राइटर नहीं बल्कि एक फैन की तरह देखिए। आपको मेरे ऊपर थोड़ा ट्रस्ट करना पड़ेगा, मैंने जो भी लिखा है…कैरेक्टर को ध्यान में रखकर ही लिखा है।
जहां तक रणबीर की बात है तो वो भी काफी इम्प्रोवाइज करते हैं। लास्ट वाले सीन में जहां बाप और बेटा रोल प्ले करते हैं, उसमें रणबीर ने जब खुद को चांटा मारा तो सेट पर मौजूद सभी लोग शांत हो गए।
रणबीर जब कैमरे के सामने एक्ट करते हैं तो बहुत नॉर्मल लगते हैं। लगता नहीं कि कुछ एक्स्ट्रा जोर दे रहे हैं। हालांकि वो सीन जब हम पर्दे पर देखते हैं तो लगता है कि यार, यह आदमी बिल्कुल जादूगर है।’
एक राइटर को फिल्म के डायलॉग लिखने में कितना वक्त लगता है? जवाब में सौरभ ने कहा, ‘कम से कम 6 महीने से एक साल का वक्त लगता है। डायरेक्टर का विजन समझना पड़ता है। फिर किरदारों को समझना पड़ता है। उसके बाद डायलॉग राइटिंग शुरू होती है। हालांकि एक डेमो तो हमें तीन चार दिन में ही लिखकर देना होता है।
जैसे एनिमल में रणबीर कपूर फैक्ट्री में जाकर स्पीच देते हैं। अब इस सीन के लिए पहले एक डेमो बनाकर दे दिया जाता है। फिर उसमें बाकायदा समय लेकर बदलाव किए जाते हैं। वहीं वेब शोज के डायलॉग्स लिखते वक्त एक डेडलाइन तय की जाती है। तीन से चार महीने में काम कम्प्लीट करके देना होता है। हालांकि वेब शोज के लिए तीन-चार लोग मिलकर संवाद लिखते हैं।’
क्या एक डायलॉग राइटर को अच्छे पैसे मिलते हैं। जवाब में सौरभ ने कहा, ‘मुझे एनिमल के लिए अच्छे पैसे मिले थे। हालांकि ऐसा सभी के साथ नहीं होता है। राइटर्स एसोसिएशन इस मुद्दे पर लड़ रहा है कि हमें ठीक-ठाक पैसे मिलने चाहिए।
अब यह बात सभी को पता चल गई है कि राइटर्स काफी अहम हो चुके हैं। मैं तो हिंदी फिल्मकारों से अपील करता हूं कि वे लेखकों को फिल्म के प्रोडक्शन में ज्यादा से ज्यादा शामिल रखें।