आज जानिए बॉलीवुड की पहली इंटीमेसी कोऑर्डिनेटर आस्था खन्ना के बारे में

बॉलीवुड में लव सींस फिल्माने में एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है इंटीमेसी कोऑर्डिनेशन का। जब दो एक्टर्स के बीच कोई इंटीमेट सीन फिल्माया जाना होता है तो इंटीमेसी कोऑर्डिनेटर उसकी पूरी गाइड लाइन तय करते हैं। भारत में ये पहले नहीं था। दीपिका पादुकोण की फिल्म गहराइयां पहली ऐसी फिल्म है जिसमें इंटीमेट सीन फिल्माने के लिए इंटीमेसी कोऑर्डिनेटर की मदद ली गई। ये कोऑर्डिनेटर हैं आस्था खन्ना।

आस्था ने अपना फिल्मी सफर बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर शुरू किया, लेकिन फिल्म गहराइयां करते समय उन्हें महसूस हुआ कि इंटीमेसी कोऑर्डिनेशन का काम बहुत दिलचस्प है और भारत में अभी कोई प्रोफेशनल इंटीमेसी कोऑर्डिनेटर नहीं है। उन्होंने बाकायदा इसका कोर्स किया और भारत की पहली इंटीमेसी कोऑर्डिनेटर बन गईं।

एक लड़की होकर फिल्म इंडस्ट्री में काम और काम भी इंटीमेसी कोऑर्डिनेशन का। ये एक साहस भरा कदम था, लेकिन आस्था के लिए मुश्किल नहीं था। बॉलीवुड के अपने सफर में #MeToo के एक्सपीरियंस से भी गुजरीं और वर्क प्लेस हैरेसमेंट भी सहा। गुजरात के वलसाड में जन्मी आस्था बचपन से ही बेबाक रही हैं और परिवार का भी पूरा सपोर्ट मिला।

आज की स्ट्रगल स्टोरी में इन्हीं आस्था खन्ना की कहानी उन्हीं की जुबानी। साथ ही आस्था ये भी बता रही हैं कि फिल्मों में दिखाए जाने वाले इंटीमेट सीन कितने सच्चे या फेक होते हैं, उन्हें फिल्माने में कितनी सावधानियां बरती जाती हैं।

फिल्म मेकिंग की पढ़ाई पर लोगों ने पापा से किए थे कई सवाल
जब मैं फिल्म मेकिंग की पढ़ाई के लिए बाहर (UK) गई, तो बहुत से लोगों ने पापा से कहा- कौन अपनी बेटी को फिल्मों की पढ़ाई के लिए बाहर भेजता है। वहां पर कुछ तो वो करेगी नहीं, फिर कुछ समय बाद वापस आ जाएगी।

फिर जब मैं वापस आई तो पापा को उन लोगों की बात सच लगी कि ये सच में वापस आ गई। मैंने पापा को बताया – मैं सीधे मुंबई जा रही हूं, वहां पर मुझे एक नौकरी मिल गई है। अगर 2-3 साल में लगा कि मुंबई में मेरी ग्रोथ नहीं हो रही है, तो फिर से मास्टर्स करने वापस इंडिया से बाहर चली जाऊंगी।

मेरे इस फैसले पर पापा ने सहमति दिखाई, लेकिन ये भी कहा- 3 साल हम तुम्हें सपोर्ट करेंगे, उसके बाद नहीं। हालांकि मेरे पेरेंट्स ने हर कदम पर मुझे सपोर्ट किया है।

बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की करियर की शुरुआत
मुंबई आने के बाद मेरी मुलाकात शकुन बत्रा से एक फिल्म फेस्टिवल के दौरान हुई थी। उसके बाद उन्होंने मुझे एक दिन बुलाया और पूछा कि क्या मैं उन्हें असिस्ट करूंगी। मैंने हामी भर दी जिसके बाद मेरा करियर बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर शुरू हुआ। मैंने शकुन बत्रा के साथ काम किया है जिन्होंने फिल्म गहराइयां और कपूर एंड सन्स बनाई हैं। साथ ही मैंने श्रीराम राघवन के साथ बदलापुर और अंधाधुन में काम किया है। दोनों मेरे लिए एक मेंटॉर जैसे हैं।
इसके बाद में मैंने जब दूसरी जगह काम किया तो वहां पर मेरा शोषण हुए। उन लोगों का नाम नहीं लेना चाहूंगी, लेकिन उन पर Me Too का भी आरोप लगा है, वो नामी लोग हैं। हालांकि वो हादसे बहुत भयानक नहीं थे, इसलिए खुद को मैं लकी मानती हूं। हादसे भयानक नहीं होने की एक वजह ये भी थी कि मैं बहुत ज्यादा बोलती हूं, थोड़ा मेरा बिहेवियर भी हटकर था। जिससे लोगों को लगता था कि मेरे साथ उनका कुछ हो नहीं पाएगा।
ऐसे कई मौके आए जब लोगों ने मेरे साथ मिस बिहेव किया। मैंने वर्बली भी बहुत कुछ सुना है। ऐसे माहौल में काम किया जहां पर वर्क प्रेशर के बहाने शोषण किया गया। इन सबसे गुजरने के बाद पता चला कि यहां पर भी दो तरह के लोग हैं। बाकी लोग उन दोनों (शकुन बत्रा, श्रीराम राघवन) के जैसे अच्छे नहीं हैं।
काम के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब किसी बात पर मैं अपनी राय रखती थी तो उसे सुना भी नहीं जाता था। इसका ये मतलब नहीं कि मेरा सुझाव गलत रहता था या लोगों को मेरी बातें समझ में नहीं आती थी। असल वजह ये थी कि सबका काम करने का तरीका अलग होता है। जो भी काम किया, चाहे बुरा हो या अच्छा, उससे मैंने कुछ न कुछ सीखा ही है। खराब माहौल देखने के बाद मैं ये इंडस्ट्री छोड़कर नहीं गई क्योंकि खराब माहौल देखने से पहले अच्छे माहौल को देख चुकी थी। पता था कि आने वाला मेरा समय बेहतर होगा।

अंधाधुन में काम करने के बाद मैंने स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 में काम किया था। इसके बाद मैंने फिल्म रात अकेली है में काम किया। मैंने एक रीजनल फिल्म खुद प्रोड्यूस की जिसका नाम है Home Coming जो अभी सोनी लिव पर मौजूद है। इसके बाद मैंने शकुन के साथ मिलकर फिल्म गहराइयां पर काम किया। इस फिल्म से मैंने बतौर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम करना शुरू किया था।
ये सारी बातें कोविड के पहले की हैं। एक दिन मैं और शकुन इस बात पर विचार कर रहे थे कि हम फिल्म गहराइयां के इंटिमेट सीन्स को कैसे शूट करेंगे। हमें दो गानों में इंटिमेसी दिखानी थी। शकुन ने मुझसे कहा कि मैं पता करूं कि वेस्ट में फिल्मों में इंटिमेसी कैसे होती है, वहां इसे लेकर क्या प्रोटोकॉल है और इंटरनेशनल लेवल पर इंटिमेट सीन कैसे शूट किए जाते हैं।

इसके बाद जब हमें इंडिया में कोई इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर नहीं मिली तो शकुन ने अपनी फ्रेंड दार गाई को अप्रोच किया जो म्यूजिक वीडियो को डायरेक्ट करती हैं। उन्होंने अपने कुछ वीडियोज में इंटिमेट सीन्स को डायरेक्ट किया था।शकुन ने उनसे कहा कि फिल्म के दो गाने की इंटिमेट सीन्स को वे को-डायरेक्ट करें। वो राजी हो गईं, लेकिन उन्होंने कहा कि वो डायरेक्ट करेंगी पर बतौर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर।

इसके बाद मैंने सीन्स को शूट करने के लिए इंटिमेसी प्रोटोकॉल भी मंगा लिया। इसी दौरान मैंने शकुन को मजाक में बोला कि जब फिल्म की शूटिंग खत्म हो जाएगी तो मैं इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर की पढ़ाई करूंगी क्योंकि मुझे ये काम बहुत अच्छा और अलग रहा है। इस पर शकुन ने हामी भर दी थी।
इसके बाद कोविड आ गया। सब कुछ बंद हो गया, फिल्म की शूटिंग भी रुक गई। उसी दौरान मैंने एक इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर ट्रेनिंग प्रोग्राम जॉइन किया और कोर्स पूरा किया। बाद में जब फिल्म गहराइयां की शूटिंग शुरू हुई तो मैंने ही उसमें बतौर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर काम किया।
मैं इंडिया की पहली इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर बनी। मेरे अलावा इंडिया में दूसरा कोई इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर नहीं था। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं एक ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू करूंगी जिसके तहत इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर की पढ़ाई की जा सके। ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू हुआ, जिसकी मदद से अब तक नए 6 सर्टिफाइड इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर इंडिया में और हो गए है।
फिल्मों में इंटिमेसी सीन्स को डायरेक्ट करते समय खास परेशानी नहीं होती है। इंटिमेसी सीन्स के दौरान रियल सेक्स नहीं होता है। जो फिल्मों में दिखाया जाता है, उसे स्टीमुलेट सेक्स कहते हैं। जैसे फिल्मों के एक्शन सीक्वेंस में सच में लड़ाई नहीं होती, वैसे ही इंटिमेसी में भी रियल सेक्स नहीं होता। एक्टर्स को ऐसे सीन्स को परफॉर्म करने के लिए ऐसा डायरेक्ट किया जाता है कि कैमरे के सामने लगे कि सच में इंटिमेसी जैसा कुछ हो रहा है
न्यूड सीन्स में भी कुछ रियल नहीं दिखाया जाता है। माॅडेस्टी गारमेंट्स से शरीर के प्राइवेट पार्ट को छुपा दिया जाता है। ये कैमरे पर न्यूड दिखाने के लिए किया जाता है, लेकिन ऐसा रियल में नहीं होता। कुछ ऐसे भी एक्टर्स होते हैं जिन्हें इंटीमेट सीन्स को परफॉर्म करने में परेशानी होती है, लेकिन कैमरे पर उन्हें ऐसा करते दिखाया जाए तो कोई दिक्कत नहीं होती। तब ऐसे सीन्स के लिए बाॅडी डबल का इस्तेमाल किया जाता है जो ऐसे सीन्स परफॉर्म करते हैं। अगर किसी सीन में किसी एक्टर को परेशानी है, तो हम सीन को उसके हिसाब से बदल देते हैं।

रियल होते हैं फिल्मों के किसिंग सीन्स
फिल्मों में किसिंग सीन्स रियल में होते हैं। किसिंग को कभी-कभी कैमरा एंगल के हिसाब से भी दिखाया जाता है। किसिंग सीन्स देते समय दो लोग जो सीन परफॉर्म कर रहे होते हैं उनको ये ध्यान रखना होता है कि उनकी जीभ आपस में ना टकराए। ऐसे सीन के दौरान मिंट भी दिया जाता है। ऐसे सीन्स को परफॉर्म करने के लिए शूटिंग से पहले एक्टर्स कई वर्कशॉप करते हैं, जिससे को-स्टार कम्फर्टेबल हो जाए।
फिल्मों में इतने सारे Me Too हो रहे थे जिसके बाद इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर की जरूरत पड़ी। इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर की जरूरत इसलिए पड़ती है कि फिल्म डायरेक्टर्स को लीगल समस्या का सामना ना करना पड़े। साथ ही एक्टर्स भी बिना किसी झिझक के सीन्स को परफॉर्म कर सकें।
इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर के अलावा मैं अभी सेक्स रिलेशनशिप कोच की पढ़ाई कर रही हूं। मैं ये रियल लाइफ कपल्स के लिए कर रही हूं, जिन्हें रिलेशनशिप में थेरेपी और गाइडेंस की जरूरत होती है। इंडिया में इस चीज की बहुत जरूरत है।
मेरा जन्म वलसाड (गुजरात )में एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था। मै पली-बढ़ी कोलकाता में हूं और पढ़ाई भी मैंने यहीं पूरी की है। मैंने 12वीं तक की पढ़ाई कोलकाता में की है, उसके बाद की पढ़ाई मैंने बाहर जाकर UK में पूरी की। मैं अपने मां-पापा की इकलौती संतान हूं। जब मैं पैदा हुई तो मां-पापा करीब 25 साल के थे। मेरे पापा एक बिजनेसमैन और मां वर्किग वुमन थीं। हालांकि बिजी शेड्यूल के बाद भी दोनों मुझे पूरा टाइम देते थे।

बेबाकी की वजह से कई परेशानियों का सामना किया
मैं एक ऐसे घर में पैदा हुई, जहां पर सभी बड़े थे और मेरे उम्र के कम लोग थे। घर में कोई बात या घटना होती थी, तो सभी बड़े अपनी राय रखते थे और सभी की आवाजें सुनी जाती थीं। जब मैं बड़ी हुई, मेरे बातों को भी सुना जाने लगा था। कभी-कभार अपने बेबाक जवाब की वजह से विवादों से भी घिर जाती थी। इसी वजह से मैं खुद को Controversial Child बोलती हूं क्योंकि मैं बहुत सारी बातों पर खुलकर अपना पक्ष रख देती थी।

मेरी ये आदत घर तक सीमित नहीं थी, स्कूल में भी मैं अपनी बातें बेबाकी से रख देती थी। टीचर्स और प्रिंसिपल की बातों पर भी मैं अपना पक्ष रखती थी, जो कभी-कभी उन्हें पसंद नहीं आता था। इस वजह से पापा को कई बार स्कूल बुलाया जाता। मैं शरारती नहीं थी, लेकिन शायद अपना पक्ष रख देती थी तो वो उन लोगों को पसंद नहीं आता था। कुछ ऐसी चीजें होती थीं स्कूल में जो मुझे गलत लगती थीं, उसके खिलाफ भी मैं आवाज उठा देती थी, शायद वो दूसरों के नजरिए से सही हो, लेकिन मुझे गलत लगता था तो मैं बोल देती थी। ऐसे ही कुछ और वजहें थी जिसके लिए पापा को स्कूल बुलाया जाता था। इस वजह से मुझे स्कूल में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
यही वजह थी कि मेरे पेरेंट्स को मेरे अलावा दूसरे बच्चे की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि मैं एक नॉर्मल बच्चे की तरह तो बिल्कुल नहीं थी। मुझे शुरुआत से फर्स्ट आने की चाहत नहीं थी, लेकिन कुछ अलग हट कर करना चाहती थीं। मेरी इन्हीं सब आदतों की वजह से मां-पापा का मानना था कि मेरी आगे की पढ़ाई इंडिया से बाहर हो तो बेहतर होगा। उनका मानना था कि मैं पढ़ाई तो यहां कर लूगीं, लेकिन शायद उसमें बेहतर नहीं दे पाऊंगी, क्योंकि शुरू से ही मेरा लर्निंग मेथड अलग ही रहा।
मां-पापा के सुझाव के बाद मैंने बाहर जाकर पढ़ाई करने के लिए मन बना लिया। उन्होंने खुद को मेहनत करके फाइनेंशियली मजबूत किया ताकि मुझे बाहर भेज सकें पढ़ने के लिए। इसके बाद मैंने बाहर जाकर एक बहुत ही अच्छे कॉलेज में पढ़ाई की।
पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं वापस इंडिया आ गई। वापस आने पर पापा बहुत सरप्राइज हुए और सवाल भी किया कि मैं वापस क्यों आ गई। वजह ये थी कि मैंने वहां पर फिल्म मेकिंग की पढ़ाई की थी, लेकिन वहां के लोग इंडियन रूट कल्चर को समझ नहीं पाते थे। जो चीजें मैं फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंचाना चाहती थीं वो कहीं ना कहीं नहीं पहुंच पा रही थीं इसलिए मैं इंडिया वापस आई।
फिल्म मेकिंग में जाने की वजह ये थी कि मुझे बचपन में टीवी से बहुत प्यार था। उस वक्त के मुझे सारे टीवी एड याद रहते थे। जिस समय जो शो आता, सब देखा करती थी। हमेशा से ही मां से कहती थी कि इस शोज में या फिल्मों में जो हो रहा है, मुझे भी इसमें काम करना है। अगर टीवी चल रहा है, तो घर में कुछ भी हो जाए मुझे पता ही नहीं चलता था, मेरा पूरा फोकस सिर्फ टीवी पर रहता था।