बसपा सुप्रीमो मायावती के जन्मदिन पर जानिए कुछ खास

दिल्ली में रहने वाली 10 साल की एक लड़की। उसकी मां ने एक बेटे को जन्म दिया। दो दिन बाद उस बच्चे को निमोनिया हो गया। बच्चे को इलाज के लिए 6 किलोमीटर दूर, राजेंद्र नगर की डिस्पेंसरी में ले जाना था। उस वक्त लड़की के पिता घर में नहीं थे। मां बिस्तर से उठने की हालत में नहीं थीं। ऐसे में उस लड़की को कुछ समझ नहीं आया।
वो अचानक उठी। अपने पिता का डिस्पेंसरी कार्ड उठाया। एक बोतल पानी भरा और बच्चे को उठाकर पैदल चल पड़ी। रास्ते में जब भी बच्चा रोता, लड़की उसके मुंह में पानी की कुछ बूंदे डाल देती। पसीने से तरबतर जैसे-तैसे वो बच्ची अपने भाई को लेकर डिस्पेंसरी पहुंच गई। डॉक्टरों से तुरंत इलाज किया और बच्चे की जान बच गई।
उस बच्चे की जान बचाने वाली लड़की कोई और नहीं बल्कि UP की पूर्व CM मायावती हैं। मायावती आज 68 साल की हो गईं। पैदा हुईं तो पिता खुश होने की बजाय दुखी हो गए। बचपन कष्टों में बीता। नेता बनना चाहा तो पिता ने समर्थन नहीं किया इसलिए घर छोड़ना पड़ा। लेकिन दिल्ली की गलियों से निकलकर मायावती ने मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। वो देश की पहली दलित महिला CM बनीं। आज UP की राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं।
15 जनवरी 1956 को दिल्ली में रहने वाले डाक-तार विभाग के क्लर्क प्रभुदास के घर एक बच्ची की किलकारी गूंजी। नाम रखा मायावती। मायावती अपने घर की तीसरी बेटी थीं। उनका कोई बड़ा भाई नहीं था। घर में लगातार तीसरी बार लड़की के जन्म से पिता प्रभुदास दुखी हो गए। उन्हें अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए एक बेटा चाहिए था।
मायावती के जन्म के बाद प्रभुदास के रिश्तेदारों ने उन्हें उनकी पत्नी राम रती के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि राम रती ने लगातार तीन बेटियां पैदा की हैं। अगर उन्हें लड़का चाहिए तो दूसरी शादी कर लें। प्रभुदास ने कुछ वक्त सोचा वो भी दूसरी शादी के लिया तैयार हो गए। लेकिन मायावती के दादा मंगलसेन को जब यह बात बता चली तो वह नाराज हो गए और उन्होंने प्रभुदास को दूसरी शादी करने से रोक दिया।
एक बार की बात है। मायावती अपने ननिहाल सिमरौली गई हुईं थीं। गांव के पास ही काली नदी नाम की एक छोटी नदी बहती है। वो अपने नाना के साथ उसी नदी के पास खड़ीं थीं तभी एक लकड़बग्घा वहां से गुजरने लगा। मायावती के नाना ने उन्हें पकड़ा और लकड़बग्घे से दूर ले गए। मायावती ने पूछा, नाना ये क्या है? नाना ने बताया कि यह एक लकड़बग्घा है, इससे दूर ही रहना वरना खा जाएगा।
नाना ने इतना बोलकर दूसरी तरफ देखा ही था कि मायावती बोलीं, यह मुझे कैसे खाएगा इसके पहले मैं ही इसे खा जाउंगी। इतना बोलकर वो लकड़बग्घे के पीछे दौड़ पड़ीं। आगे कुछ गांव वालों ने मायावती को लकड़बग्घे के पीछे दौड़ते देखा तो उन्हें रोक लिया और नाना को सौंप दिया। इस पूरे किस्से का जिक्र लेखक अजय बोस ने मायावती पर लिखी ‘बहनजी’ नाम की किताब में किया है।
मायावती पांचवीं क्लास में थीं। उनकी मां प्रेग्नेंट थीं। एक दिन अचानक उनको पेट में दर्द हुआ। पास के अस्पताल में एडमिट कराया गया। उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन जन्म के दो दिन बाद ही उस बच्चे को निमोनिया हो गया। उस वक्त मायावती के पिता घर के किसी काम से गाजियाबाद गए थे।
बच्चे के इलाज के लिए उसे 6 किलोमीटर दूर राजेंद्र नगर की सरकारी डिस्पेंसरी में ले जाना था। पिता घर में नहीं थे और मां बिस्तर से उठने की हालत में नहीं थीं। मायावती उस वक्त सिर्फ 10 साल की थीं। उन्हें कुछ भी समझ नहीं आया। वो उठीं। पिता का डिस्पेंसरी कार्ड उठाया। एक बोतल में पानी भरा और बच्चे को उठाकर चल पड़ीं। रास्ते में जब वो बच्चा रोता तो मायावती उसके मुंह में पानी की कुछ बूंदें डाल देती थी।
रास्ता लंबा था। जब भी वो थक जाती बच्चे को कभी दाएं कंधे की तरफ तो कभी बाएं कंधे की तरफ कर लेतीं। पसीने से तरबतर आखिर में वह अस्पताल पहुंच गई। डॉक्टरों ने देखा तो हैरान रह गए। बच्चे का इलाज शुरू हुआ। इंजेक्शन लगे और तीन घंटे बाद उसकी हालत में सुधार आ गया। मायावती ने इसके बाद बच्चे को फिर से गोद में उठाया और पैदल ही घर के लिए निकल लीं। जब घर पहुंची तो रात के साढ़े नौ बजे थे।
किताब ‘बहनजी’ में अजय बोस लिखते हैं कि मायावती के बाद प्रभुदास को लगातार 6 बेटे हुए। वह इस बात से फूले नहीं समाते थे कि वह 6 बेटों के पिता हैं। बेटों के आने से अपनी बेटियों के प्रति उनका व्यवहार भी बदल गया। सभी भाई-बहनों में मायावती पढ़ने में सबसे अच्छी थीं। लेकिन फिर भी उनके पिता में लड़की होने की वजह से उनका और बहनों का एडमिशन सस्ता सरकारी स्कूल में करवाया। जबकि बेटों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया गया।
इस भेदभाव से आहत मायावती ने ठान ली कि वो बहुत मेहनत करेंगी और बड़े होकर IAS बनेंगी। 1975 में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकॉनॉमिक्स से बी.ए किया। उसके बाद बी.एड करके वो स्कूल में टीचर के तौर पर काम करने लगीं। दिन में पहले पढ़ातीं फिर घर जाकर UPSC की तैयारी करतीं। इसके साथ ही उन्होंने LLB की डिग्री भी हासिल की।
UPSC की तैयारी के वक्त ही दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में एक सम्मेलन हो रहा था। मायावती भी वहां मौजूद थीं। उस वक्त के स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण भी थे। उनका भाषण शुरू हुआ। उन्होंने जैसे ही दलितों को हरिजन कहकर संबोधित किया मायावती नाराज हो गईं। वो स्टेज पर चढ़ीं और उन्होंने इस चीज का विरोध किया। वहां मौजूद लोगों ने मायावती के इस फायरब्रांड अवतार की खूब सराहना की।
सम्मेलन खत्म हुआ। हर जगह इस घटना की चर्चा होने लगी। कांशीराम को जब यह बात पता चली तो अगले ही दिन वो मायावती से मिलने उनके घर पहुंच गए। मायावती उस समय लालटेन की रोशनी में पढाई कर रहीं थीं। कांशीराम ने उनसे पूछा तुम क्या बनना चाहती हो?
मायावती बोलीं, “मैं IAS अफसर बनना चाहती हूं ताकि अपने समाज के लिए कुछ कर सकूं।” मायावती का यह जवाब सुनकर कांशीराम बोले, “मैं तुम्हें उस मुकाम पर ले जाऊंगा जहां दर्जनों IAS अफसर तुम्हारे सामने लाइन लगाकर खड़े होंगे। सही मायने में तुम तब अपने समाज की सेवा कर पाओगी। अब तुम तय कर लो, तुम्हें क्या करना है?”
मायावती ने कांशीराम की इस बात पर सोच-विचार किया। आखिरकार वो उनके आंदोलन से जुड़ने को तैयार हो गईं। लेकिन आगे बढ़ने से पहले मायावती के लिए चुनौतियां उनके घर से ही शुरू हो गईं। उनके पिता नहीं चाहते थे कि वो राजनीति में जाएं। इसलिए उन्होंने मायावती पर सब छोड़कर UPSC की तैयारी करने का दबाव डाला।
लेकिन मायावती को पिता की यह इच्छा अब मंजूर नहीं थी। उन्होंने टीचिंग से जुटाई कमाई इकट्ठा की। सूटकेस में कपड़े भरे और घर छोड़ दिया। लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो किराए पर कमरा ले पाएं। इसलिए वह संगठन के ऑफिस में आकर रहने लगीं। इसके बाद वह कांशीराम के साथ तमाम आंदोलन में शामिल होने लगीं।
साल 1984 में जब बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा की स्थापना हुई तब मायावती उसकी कोर टीम का हिस्सा थीं। उन्होंने साल 1984 में पहली बार कैराना लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। उसके बाद 1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से भी हार गईं।
लेकिन 1989 के उपचुनाव में मायावती बिजनौर सीट से चुनाव जीतकर संसद के अंदर पहुंच गईं। साल 1991 आया। देश में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए। बसपा दो ही सीटें जीत सकी। मायावती बिजनौर और हरिद्वार दोनों जगह से चुनाव हार गईं।
यह तो थी मायावती के बचपन से लेकर उनके राजनीति में पहुंचने तक की कहानी। आगे बात मायावती के जीवन के दो ऐसे किस्सों की जिन्हें वो जीवन भर शायद भुला नहीं पाएंगी…
दिसंबर 1991. जगह बुलंदशहर। मायावती और एक डीएम के बीच बैलेट पेपर देखने के लिए छीना-झपटी होने लगी। बात हाथापाई तक पहुंच गई। इसी मामले में मायावती को गिरफ्तार कर बुलंदशहर से इलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल लाया गया। जिसके बाद हाईकोर्ट में पेशी के लिए उन्हें लखनऊ ले गए।
लखनऊ से लौटते वक्त ट्रेन प्रयाग स्टेशन के पास खड़ी हुई। माया को वहीं ट्रेन से नीचे उतारा गया। जैसे ही वो रेलवे लाइन पास कर रहीं थीं एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उनका एनकाउंटर करने के लिए अपनी रिवॉल्वर निकाली। वो फायर करता उससे पहले ही ट्रेन में मौजूद आर्मी के जवानों ने उसे देखा और रोक दिया।
आर्मी के जवानों की वजह से मायावती की जान बच गई। मायावती के एनकाउंटर की कोशिश का यह किस्सा उनके करीबी सरवर हुसैन ने मीडिया से शेयर किया था। कुछ वक्त बीता। मायावती जेल से रिहा हुईं। कांशीराम के सहयोग से उन्होंने सियासत के दांव पेंच सीखे।
वो एक बेहतरीन और तेज-तर्रार वक्ता थीं इसलिए उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी। साल 1993 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर यूपी में चुनाव लड़ा और सरकार बना ली। इसके बाद 3 अप्रैल 1994 को वो राज्यसभा पहुंच गईं। उच्च सदन में बीएसपी की वो पहली सांसद थीं।
दूसरा किस्सा: मायावती की बैठक के वक्त चमार पागल हो गए की आवाज आने लगी
1 जून 1995 को मुलायम सिंह को खबर लग गई कि बसपा समर्थन वापस लेने जा रही है। मायावती ने उस वक्त के राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मिलकर बीजेपी के सहारे सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा। मुलायम गुस्से से लाल हो गए। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम बहादुर को अपने पाले में कर लिया। उनके साथ 15 और विधायक भी आ गए। लेकिन दल-बदल कानून से बचने के लिए एक तिहाई सदस्य चाहिए, यानी 8 और विधायक चाहिए थे।
अजय बोस बताते हैं, “कांशीराम के अस्पताल में होने के कारण मुलायम सिंह इस बात को लेकर निश्चिंत थे कि सरकार चलती रहेगी। क्योंकि बसपा के कई विधायक पहले से जेब में थे। लेकिन जब समर्थन वापस लेने की बात आई तब तय हुआ कि बसपा के और विधायकों को डरा धमकाकर अपने पाले में किया जाए।”
2 जून 1995, मायावती लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में पार्टी के विधायकों और सांसदों के साथ मीटिंग कर रही थीं। उस वक्त वह इसी गेस्ट हाउस के रूम नंबर 1 में रहती थीं। सभी विधायक कॉमन हाल में बैठे थे। चार बजे थे तभी सपा के करीब 200 कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस पहुंच गए। उनकी पहली लाइन थी, “चमार पागल हो गए हैं।”
सपा कार्यकर्ता भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे। बसपा के विधायकों ने मेन गेट बंद करना चाहा तभी उग्र भीड़ ने उसे तोड़ दिया। इसके बाद बसपा के विधायकों को हाथ-लात और डंडों से पीटा जाने लगा। मायावती के साथ बदसलूकी हुई। उन्होंने भागकर अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। उपद्रव कर रहे लोग दरवाजा पीटने लगे। कह रहे थे, “चमार औरत को उसकी मांद में से घसीटकर बाहर निकालो।”
उस वक्त पेजर का चलन था। जैसे-तैसे प्रशासन को सूचना दी गई। रात में जब भारी पुलिस फोर्स पहुंची और मायावती को लग गया कि अब वह सुरक्षित हैं तब जाकर कमरे से बाहर आईं।साल 1995 में राज्यपाल ने मुलायम सिंह यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया और मायावती भाजपा के समर्थन के साथ यूपी की सीएम बन गईं। सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाली वो देश की पहली दलित महिला सीएम थीं। उस वक्त के पीएम पी.वी.नरसिम्हा राव ने इसे ‘लोकतंत्र का चमत्कार’ कहा था। इसके बाद धीरे-धीरे मायावती सियासत की मंझी हुई खिलाडी बन गईं। संघर्ष हुआ, सियासी गुणा-भाग हुआ लेकिन मायावती का सटीक निशाना लगता रहा।
इसके बाद साल 1997, 2002 और 2007 में भी मायावती ने सीएम के तौर पर यूपी की कमान संभाली। इसी बीच साल 2003 में उन्हें बीएसपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। तब से लेकर आज तक वो बीएसपी की सबसे बड़ी नेता और यूपी की सियासत के बड़े चेहरे के रूप में जानी जाती हैं।
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बसपा तैयारी कर रही है। इससे ठीक पहले मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया है।