एक्ट्रेस जिसने पूरी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी, वो थीं बीना राय। निहायत खूबसूरत और गजब की कलाकार बीना राय हिंदुस्तानी सिनेमा की उन चंद महिलाओं में शामिल रहीं, जो हर काम अपनी मर्जी से करती थीं। ना कभी किसी के दबाव में काम किया और ना कभी जमाने की फिक्र की।
1940-45 के दौर का भारत, जब लड़कियों का फिल्मों में काम करना बहुत बुरा माना जाता था, उस जमाने में फिल्मों में आने के लिए बीना राय अपने घरवालों के खिलाफ ही भूख हड़ताल पर बैठ गई थीं। पहली फिल्म 1951 में आई और ये स्टार बन गईं। नई फिल्मों के ऑफर्स की लाइन लगी थी, लेकिन तब बीना ने सबको चौंकाया शादी के फैसले से। जिस दिन पहली फिल्म रिलीज हुई थी, उसी दिन इन्होंने एक्टर प्रेमनाथ से सगाई कर ली।
क्लासिक लव स्टोरी अनारकली में ये अनारकली बनी थीं। उस दौर में ये हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस थीं। 1950-60 के दशक में ही इन्हें एक फिल्म के डेढ़ लाख रुपए तक मिलते थे, लेकिन ये अपने करियर की बुलंदियों पर जब पहुंची तो परिवार और बच्चों के लिए बॉलीवुड छोड़ दिया।
आज इन्हीं बीना राय की 13वीं पुण्यतिथि है। 5 किस्सों में हमने बीना राय के पूरी पर्सनैलिटी और स्टारडम को समेटने की कोशिश की है। इन्हीं 5 किस्सों से जानिए बीना राय की पूरी कहानी…।
बीना राय का असली नाम कृष्णा सरीन था, उनका जन्म 13 जुलाई 1931 को लाहौर (पंजाब), ब्रिटिश इंडिया में हुआ था। सांप्रदायिक हिंसा बढ़ने से इनका पंजाबी परिवार लाहौर छोड़कर कानपुर (उत्तर प्रदेश) आकर बस गया। बीना हमेशा से ही पढ़ाई में अव्वल रहीं। लाहौर से स्कूलिंग कर इन्होंने लखनऊ के IT कॉलेज में दाखिला लिया।
इजाबेल थोरन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान बीना की एक्टिंग में रुचि बढ़ने लगी और वो कई प्ले का हिस्सा बनने लगीं। एक बार उन्हें बॉम्बे (अब मुंबई) में होने वाले एक टैलेंट हंट कॉन्टेस्ट के बारे में पता चला
जीतने वाले को 25 हजार रुपए नगद और उस जमाने के नामी फिल्ममेकर किशोर साहू के साथ फिल्म में हीरोइन बनने का मौका दिया जाने वाला था। जैसे ही बीना ने अपने घरवालों से बॉम्बे जाने की बात कही तो वो खूब गुस्सा हुए। हर कोई उनके फिल्मों से जुड़ने और टैलेंट हंट कॉन्टेस्ट में जाने के खिलाफ था। जब घरवालों ने साफ इनकार कर दिया तो गुस्से में बीना भूख हड़ताल पर बैठ गईं। आखिरकार घरवाले मान गए और उन्हें बॉम्बे जाने की इजाजत मिल गई। यहां बीना ने कॉन्टेस्ट में जीत हासिल कर 25 हजार इनाम और किशोर साहू की फिल्म काली घटा में काम करने का मौका जीता।
बीना राय को हमेशा से ही अपने जन्म की तारीख से खास लगाव रहा। इन्होंने अपनी जिंदगी के चंद बड़े फैसलों के लिए इसी खास तारीख को चुना।
फिल्मों में आते ही बीना राय को प्रेमनाथ से प्यार हो गया। पहली ही फिल्म हिट हुई थी और इनको कई फिल्मों के ऑफर मिले थे, लेकिन इसी समय ये प्रेमनाथ से शादी करने का मन बना चुकी थीं। दोनों की मुलाकात फिल्म औरत के सेट पर हुई थी, जो बीना की पहली फिल्म काली घटा रिलीज होने के पहले की बात थी। एक फिल्म रिलीज हो चुकी थी और कई फिल्में रिलीज होने वाली थीं, लेकिन इन सबसे ऊपर बीना ने शादी और प्यार को तवज्जो दी।
प्रेमनाथ और उस जमाने की सबसे मशहूर एक्ट्रेस मधुबाला एक-दूसरे से प्यार करते थे। दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन धर्म अलग होने के कारण दोनों के परिवार इसके खिलाफ रहे। एक-दूसरे से प्यार करने वाले और शादी के सपने देखने वाले प्रेम-मधुबाला समाज और परिवार के लिए बिछड़े जरूर, लेकिन कभी अपनी मोहब्बत दफन नहीं कर सके। जैसे ही मधुबाला को प्रेम और बीना की शादी की खबर मिली तो उनकी तबीयत बिगड़ गई। 2 सितंबर 1952 को दोनों की शादी के दिन मधुबाला की तबीयत इतनी बिगड़ गई थी कि प्रेमनाथ खुद परेशान थे। बीना इन सभी बातों से वाकिफ थीं और प्रेमनाथ की भावनाओं की कद्र करती थीं। ये बात खुद बीना ने 1996 में सिनेप्लॉट को दिए एक इंटरव्यू में कही थी।
1953 की फिल्म अनारकली में बीना राय ने अनारकली की भूमिका निभाकर खूब वाहवाही लूटी। प्रेमनाथ की जिंदगी में भले ही बीना ने मधुबाला की जगह ले ली, लेकिन जब 1960 में फिल्म मुगल-ए-आजम रिलीज हुई तो मधुबाला ने अनारकली का टैग हासिल किया। इसके बाद से ही असल अनारकली के रूप में बीना की जगह मधुबाला को पहचान मिली। जब मुगल-ए-आजम रिलीज हुई तो अनारकली बनीं मधुबाला को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिलना तय माना जा रहा था, लेकिन 1961 में ये अवॉर्ड बीना राय को फिल्म घूंघट के लिए मिला। ऐसे ही संयोग ने बीना और मधुबाला की कहानी को जोड़कर रखा।
करियर की शुरुआत में ही बीना राय को कई बड़े फिल्ममेकर अपनी फिल्मों का हिस्सा बनाना चाहते थे, लेकिन बीना मर्जी की मालकिन थीं। उन्हें 1955 में रिलीज हुई देवदास का ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने ये फिल्म करने से इनकार कर दिया। ये फिल्म उन्हें दिलीप कुमार के साथ मिली थी। वहीं इनकी ठुकराई हुई फिल्मों की लिस्ट में 1954 की नागिन भी शामिल है। ये दोनों ही फिल्में वैजयंतीमाला के पास गईं, जिनसे वो स्टार बनीं। मुगल-ए-आजम में भी इन्हें ही दिलीप कुमार के साथ अनारकली का रोल दिया जाना था, लेकिन इन्होंने इसका भी प्रस्ताव ठुकरा दिया। मुगल-ए-आजम हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है।
शादी के बाद जब प्रेमनाथ ने प्रोडक्शन कंपनी पीएन फिल्म्स शुरू की तो उन्होंने अपने बैनर की फिल्मों में पत्नी बीना को हीरोइन बनाया और खुद हीरो बने। दोनों की फिल्म औरत पहले ही फ्लॉप हो चुकी थी। इसके बाद शगूफा (1953), गोलकुंडा का कैदी (1954) और समुंदर जैसी फिल्में भी फ्लॉप हो गईं। ऐसा लगातार होने लगा तो बीना ने प्रेमनाथ के साथ काम करने से तौबा कर ली। वहीं अशोक कुमार के साथ शोले, सरदार, तलाश बंदी, दादी मां, भारत भूषण के साथ मेरा सलाम, एक्टर अजीत के साथ मरीन ड्राइव, देव आनंद और दिलीप कुमार के साथ इंसानियत जैसी हिट फिल्में दीं।
शादी के दो साल बाद 1953 में बीना राय ने फिल्मों से दूरी बना ली, लेकिन इसका कारण प्रेमनाथ नहीं थे। बीना राय की गिनती उस जमाने की टॉप और हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस में होती थी, जिन्हें हर फिल्म के लिए 1.5 लाख रुपए दिए जाते थे।
बीना राय ने सिनेप्लॉट को दिए इंटरव्यू में बताया कि प्रेमनाथ ने ना तो कभी उन पर फिल्में छोड़ने का दबाव बनाया, ना ही उन्हें किसी बात से रोका। फिल्में छोड़ना उनका अपना फैसला था। बच्चे होने के बाद घर की जिम्मेदारी, घर की देखभाल के साथ फिल्मों के बीच बैलेंस बनाना बीना को मुश्किल लग रहा था। उन्होंने प्रेमनाथ से कहा कि दोनों में से किसी एक को घर पर रहना होगा। उस समय प्रेमनाथ का करियर बुलंदियों पर था, लेकिन बीना के पास काम कम था। ऐसे में उन्होंने अपनी मर्जी से फिल्मों से दूरी बना ली। वल्लाह क्या बात है- इनकी करियर की आखिरी फिल्म रही। हालांकि फिल्में छोड़ने के बाद भी इनकी र ही। फिर अलगाव भी हुआ।