जानिए ये शीतकालीन सत्र में सदन का कामकाज कैसा रहा

लखीमपुर खीरी कांड और विपक्षी सांसदों के निलंबन पर जारी सियासी गतिरोध के बीच संसद का शीत सत्र बुधवार को तय समय से एक दिन पहले ही खत्म हो गया। विपक्षी दलों ने आखिरी दिन भी इन दोनों मुद्दों पर सियासी गर्मी बढ़ाने की कोशिश की मगर उससे पहले ही दोनों सदन अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिए गए। सांसदों के निलंबन के गतिरोध में उलझी राज्यसभा की कार्यवाही हंगामे के चलते ज्यादा प्रभावित हुई और करीब 47 प्रतिशत ही कामकाज हुआ।
वहीं, शोर-शराबे के बावजूद लोकसभा के कामकाज की उत्पादकता 83 फीसद रही और इस दौरान संसद के दोनों सदनों में कुल 12 विधेयक पारित किए गए। इन विधेयकों में कुछ सियासी रूप से बेहद महत्वपूर्ण रहे तो कुछ विधेयक अहम प्रशासनिक मसलों से जुड़े हैं। शीत सत्र के पहले ही दिन 29 नवंबर को किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में तीन कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने का विधेयक पारित हुआ जो राजनीतिक लिहाज से बेहद अहम रहा। 2021 का शीत सत्र कृषि कानूनों को निरस्त करने के बड़े राजनीतिक फैसले के लिए याद किया जाएगा
वहीं, सीबीआई, ईडी और सीवीसी प्रमुखों के कार्यकाल को पांच साल का विस्तार देने संबंधी अध्यादेश को कानूनी शक्ल देने का विधेयक प्रशासनिक रुप से महत्वपूर्ण रहा। वहीं, चुनाव सुधारों से जुड़े अहम कानूनी बदलाव को अमलीजामा पहनाने के लिए विपक्ष के तमाम विरोधों के बावजूद आधार को वोटर लिस्ट से जोड़ने संबंधी विधेयक को दोनों सदनों ने बीते दो दिन के भीतर ही पारित कर दिया। लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने संबंधी विधेयक भी लोकसभा में मंगलवार को पेश हुआ मगर इस पर व्यापक चर्चा के लिए विधेयक को संसदीय स्थाई समिति को भेज दिया गया है।
लोकसभा में शीत सत्र के समापन के मौके पर सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत तमाम दूसरे वरिष्ठ नेता मौजूद थे। इस दौरान स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि सदन की 18 बैठकें 83 घंटे 12 मिनट तक चली। इसमें 18 घंटे 40 मिनट का समय व्यवधान में गया बावजूद लोकसभा में 83 फीसदी कामकाज हुआ और सत्र में कोविड-19 तथा जलवायु परिवर्तन जैसे दो अहम विषयों पर चर्चा हुई। जिन सदस्यों ने शून्यकाल में अपनी बात रखी उनमें 324 विपक्ष के थे और 239 सत्तापक्ष के। जाहिर तौर पर उन्होंने यह संदेश दे दिया कि विपक्ष जो आरोप लगा रहा है वह गलत है।
राज्यसभा की कार्यवाही सुबह शुरू होते ही नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक खबर का हवाला देते हुए अयोध्या से जुड़ा एक जमीन मामला उठाने की कोशिश की मगर सभापति वेंकैया नायडु ने नियमों का हवाला देते हुए इसकी मंजूरी नहीं दी और इसके बाद वंदे मातरम की धुन के साथ सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। सदन को स्थगित करने से पूर्व नायडु ने हंगामे और गतिरोध के कारण राज्यसभा के अपनी क्षमता से कम कामकाज करने पर अफसोस जाहिर किया। सभापति ने सांसदों से इसको लेकर आत्मावलोकन करने की नसीहत देते हुए कहा कि इस मसले पर उनका नजरिया आलोचनात्मक है।
संसदीय कार्यमंत्री प्रल्हाद जोशी ने सत्र को एक दिन पहले स्थगित किए जाने के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि विपक्षी पार्टियों ने जनता से जुड़े विषयों पर चर्चा करने की बजाय हंगामा किया जो दुर्भाग्यपूर्ण है। महंगाई पर चर्चा सूचीबद्ध थी और सरकार जवाब देने को भी तैयार थी मगर विपक्ष इसके लिए भी राजी नहीं हुआ। विपक्ष पर निशाना साधते हुए जोशी ने कहा कि संसद में उसके रुख से साफ है कि कांग्रेस और उसके साथी दल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को मिले जनादेश को अभी तक पचा नहीं पा रहे हैं और उनका मानना है कि सत्ता तो एक खानदान को मिलनी चाहिए जिसे नरेंद्र मोदी ने छीन लिया है।