बॉलीवुड की सबसे बड़ी फैमिली है कपूर्स। इसी कपूर परिवार ने बॉलीवुड में 9 दशक से ज्यादा का समय गुजारा है और अभी भी सफर जारी है। 1928 से अब तक ऐसा कोई दौर नहीं रहा जब कपूर फैमिली से कोई फिल्म इंडस्ट्री में न रहा हो। साल दर साल इस परिवार ने सिनेमा जगत को बेहतरीन फिल्में दी हैं।
इस परिवार की पहली पीढ़ी के एक्टर थे पृथ्वीराज कपूर, जो पाकिस्तान के पंजाब से कभी मुंबई फिल्मों के किस्मत आजमाने आए थे। 1906 में जन्मे पृथ्वीराज कपूर की आज 117वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इसी मौके पर पृथ्वीराज कपूर से रणबीर तक हम जानेंगे कपूर फैमिली से कौन-कौन से स्टार रहे हैं….
पृथ्वीराज कपूर के सबसे बड़े बेटे राज कपूर थे, जिन्हें बॉलीवुड का सबसे पहला शो मैन कहा गया। वो फिल्म इंडस्ट्री में 1935 से 1988 तक एक्टिव रहे। वहीं दूसरे बेटे शम्मी कपूर 1953 से 2011 तक और तीसरे बेटे शशि कपूर 1945 से 1999 तक फिल्मी पर्दे पर दिखाई दिए।
राज कपूर के तीनों बेटे रणधीर, ऋषि और राजीव ने भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल कर फिल्मों में आए। तीनों भाइयों में ऋषि कपूर सबसे सफल एक्टर रहे। रणधीर ने भी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया और कुछ फिल्में डायरेक्ट भी कीं। इनमें पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर के साथ उनकी फिल्म कल, आज और कल भी शामिल है। हालांकि, राजीव अपने दोनों बड़े भाइयों ऋषि और रणधीर की तुलना में अधिक सफल नहीं रहे। वहीं राज कपूर की बेटी ऋतु ने बिजनेस वुमन के तौर पर अपनी पहचान बनाई।
पिता की एक्टिंग विरासत को शम्मी कपूर ने भी आगे बढ़ाया था। 6 दशक के करियर में वो 119 फिल्मों में नजर आए थे। शम्मी अपने जमाने के सबसे बेहतरीन डांसर और रोमांटिक हीरो रहे। इन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। शम्मी के बेटे आदित्य राय कपूर भी फिल्मों में आए, लेकिन उनका करियर काफी छोटा रहा। उन्होंने सिर्फ 6 फिल्मों में ही काम किया। 2 फिल्में भी डायरेक्टर कीं, लेकिन बतौर एक्टर और डायरेक्टर, दोनों में वो असफल रहे।
शशि कपूर पृथ्वीराज कपूर के सबसे छोटे बेटे थे। उन्होंने चाइल्ट आर्टिस्ट के तौर पर करियर की शुरुआत की थी और 170 फिल्मों में नजर आए थे। राज कपूर की आईकॉनिक आवारा में उन्होंने राज कपूर के बचपन का रोल निभाया था। शशि ने कुछ हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया। उनकी पत्नी जेनिफर कैंडल भी स्टेज की बड़ी आर्टिस्ट थीं। फिल्म शशि कपूर को देख बेटे करण, कुणाल और बेटी संजना ने भी फिल्मों में किस्मत आजमाई, लेकिन ये तीनों ज्यादा सफल नहीं रहे। शशि कपूर और उनकी पत्नी ने पृथ्वी थिएटर का काम काफी सालों तक संभाला, उनके बाद उनकी बेटी संजना ने भी थिएटर को जिंदा रखने की पूरी कोशिश की।
रणधीर कपूर ने सिर्फ 2 दशक ही फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया और कुल 51 फिल्में ही कीं। फिर इस परंपरा को बेटियों ने आगे बढ़ाया। हालांकि, कपूर परिवार में बेटियों को फिल्मों में आने से रोका जाता था। इस परंपरा को सबसे पहले शशि कपूर की बेटी संजना ने तोड़ा था, लेकिन कपूर परिवार की पहली लेडी सुपरस्टार रहीं रणधीर की बेटी करिश्मा, फिर बहन और पापा के नक्शे-कदम पर चल करीना भी फिल्मों में आईं। 2000 से उन्होंने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी, जो अभी भी जारी है।
ऋषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर को भी शानदार एक्टिंग और डांस मूव्स के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की थी। फिर 2007 में उन्होंने अपना एक्टिंग डेब्यू फिल्म सांवरिया से किया था। 16 साल के करियर में वो अब तक 31 फिल्मों में नजर आ चुके हैं। 1 दिसंबर को उनकी फिल्म एनिमल रिलीज होने वाली है। रणबीर की पत्नी आलिया भी जानी-मानी एक्ट्रेस हैं।
रीमा कपूर फिल्मों से दूर रही हैं, लेकिन उनके बेटे फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। अरमान जैन बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर दीवाना दिल (2014), स्टूडेंट ऑफ द ईयर (2012) और एक मैं और एक तू (2012) जैसी फिल्मों में काम चुके हैं। वहीं आदर जैन हैलो चार्ली जैसी फिल्मों में बतौर एक्टर नजर आ चुके हैं।
रणधीर कपूर की बड़ी बेटी करिश्मा ने 1991 में फिल्म प्रेम कैदी से करियर शुरू किया। करीब डेढ़ दशक तक सिल्वर स्क्रीन पर राज किया। कई सुपरहिट फिल्मों की नायिका रहीं। उनकी शादी बिजनेसमैन संजय कपूर से हुई लेकिन कुछ सालों में उनका तलाक हो गया। करिश्मा के दो बच्चे बेटी समायरा और बेटा कियान है। दोनों ही अभी पढ़ाई कर रहे हैं। करिश्मा ने भी लंबे ब्रेक के बाद फिल्मों में फिर वापसी की, हालांकि दूसरी पारी में उन्हें सफलता नहीं मिली।
रणधीर कपूर की दूसरी बेटी करीना ने अभिषेक बच्चन की फिल्म रिफ्यूजी (2000) से अपनी पारी की शुरुआत की। करीना काफी सफल रहीं। उन्होंने एक्टर सैफ अली खान से शादी की। शादी के बाद भी करीना फिल्मों में लगातार सक्रिय और सफल है। करीना ने इस मिथ को भी तोड़ा है कि शादी के बाद एक्ट्रेसेस का करियर खत्म हो जाता है। करीना और सैफ के दो बेटे तैमूर और जहांगीर हैं।
ये बात 1906 की है, जब 3 नवंबर को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब के के समुद्री जिले में दीवान बशेश्वरनाथ कपूर के घर एक बेटे का जन्म हुआ। नाम रखा गया पृथ्वीनाथ कपूर, जिन्हें बाद में पृथ्वीराज कपूर के नाम से जाना गया। पृथ्वीराज का बचपन मां के प्यार के बिना बीता। जब वो 3 साल के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया था।
इसके बाद उनके दादा दीवान केशवमल कपूर को इस बात का डर सताने लगा कि बशेश्वरनाथ दूसरी शादी कर लेंगे। वो नहीं चाहते थे कि सौतेली मां पृथ्वीराज की परवरिश करे। इस कारण दादा उन्हें अपने साथ लायलपुर जिला ले आए, जहां पर वो पले-पढ़े। बाद में, दादा का डर सही साबित हुआ। पृथ्वीराज के पिता ने दूसरी शादी कर ली।
इधर, दादा उनकी सभी जरूरतों को पूरा करे रहे थे, लेकिन मां की कमी को नहीं भर पाए। इसी कारण उन्होंने पृथ्वीराज को उनकी बुआ कौशल्या के पास छोड़ दिया जो पेशावर में रहती थीं। बुआ को ही वो माता जी कहते थे जिन्होंने वास्तव में मां का फर्ज निभाया भी था।
पृथ्वीराज ने पहले पेशावर के किंग एडवर्ड्स कॉलेज से आर्ट में ग्रेजुएशन किया। फिर वो लाहौर के लॉ कॉलेज में पढ़ाई करने लगे। दादा के कहने पर वो लाॅ की पढ़ाई तो कर रहे थे, लेकिन उनका मन एक्टिंग में ही रमा रहता था। बचपन से ही वो अकेले में रामायण और महाभारत के कुछ किरदारों की एक्टिंग किया करते थे। उन्हें बस एक्टर बनना था, लेकिन इस फील्ड में वो आगे कैसे बढ़ते, इसकी समझ उन्हें नहीं थी।
इसी उथल-पुथल में कॉलेज में उनकी मुलाकात प्रोफेसर जय दलाल से हुई जिन्होंने उनका परिचर रंगमंच से करवाया। पेशावर में कुछ महीनों तक चंद नाटकों का हिस्सा रहने के बाद पृथ्वीराज ने मुंबई का रुख करने का फैसला किया।
1927 में पृथ्वीराज ने मुंबई आने का फैसला किया था, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे। तब बुआ ने कुछ रुपए उधार दिए थे, जिनसे वो यहां तक आ पहुंचे। उनका शुरुआत से ही प्लान था कि अगर वो हिंदी सिनेमा में पहचान बनाने में असफल रहे तो सीधे हाॅलीवुड चले जाएंगे, मगर फिल्मों से खुद को दूर नहीं करेंगे
यहां पहुंचने के बाद उन्होंने एक रात कश्मीर नाम के एक होटल में गुजारी। अगली सुबह कर उन्होंने होटल के मैनेजर से पास के फिल्म स्टूडियो के बारे में पता किया। पैदल ही इंपीरियल फिल्म स्टूडियो चले गए।
स्टूडियो के गार्ड की मदद से वो कंपनी का हिस्सा बन गए। शुरुआत में उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए। ये साइलेंट फिल्मों का दौर था, जिसमें एक्स्ट्रा पर किसी की नजर तक नहीं पड़ती थी।
एक दिन यहूदी एक्ट्रेस एर्मेलिन एक्स्ट्रा के कमरे से गुजर रही थीं, तभी वो पृथ्वीराज को देखते ही रुक गईं। वो उनके ग्रीक गाॅड वाले लुक को देख बहुत इंप्रेस हुईं। फिर वक्त गवाएं बिना एर्मेलिन ने उन्हें फिल्म सिनेमा गर्ल में कास्ट कर लिया। इस तरह पृथ्वीराज का फिल्मी सफर शुरू हुआ जो 1972 तक जारी रहा।
कुछ फिल्मों में काम करने के बाद 1930 के आसपास पृथ्वीराज ने पत्नी और बेटे को मुंबई बुला लिया। पूरा परिवार 8×12 फीट के कमरे में रहता था। मगर गुजारा करना अभी भी मुश्किल ही था। कंपनी उन्हें 70 रुपए महीने की तनख्वाह देती थी, जो परिवार के खर्चे के हिसाब से बेहद कम थी। कुछ महीने के बाद उनके काम को देखते हुए उनकी सैलरी 200 रुपए हो गई
इधर, फिल्मों में उन्हें बतौर एक्शन हीरो कास्ट किया जा रहा था। लंबी-चौड़ी कद काठी की वजह से उस दौर की एक्ट्रसेस उन्हें बहुत पसंद करती थीं। साइलेंट फिल्मों के दौर में सिर्फ एक्शन फिल्मों का बोलबाला था। सिर्फ शरीर की बनावट ही मायने रखती थी, आवाज का कोई रोल नहीं था। इन्हीं सब चीजों का पृथ्वीराज को बहुत फायदा मिला।
1931 में पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनी तो डायरेक्टर आर्देशिर ईरानी ने उन्हें फिल्म में खलनायक की भूमिका दी। इसके बाद उन्होंने विद्यापति (1937) और सिकंदर (1941) में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। 1940 तक वो इंडस्ट्री के सबसे मंझे और पॉपुलर कलाकार बन चुके थे।
1944 में पृथ्वीराज कपूर ने पहला कॉमर्शियल थिएटर पृथ्वी शुरू किया। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने पूरी जमा पूंजी लगा दी। थिएटर में शो दिखाने के बाद पृथ्वी खुद झोली लेकर दरवाजे पर खड़े होते थे। थिएटर से निकलते हुए लोग जो चंद रुपए उनकी झोली में डालते थे। वो उन जमा पैसों को वर्कर फंड बनाने में इस्तेमाल करते थे। थिएटर में काम करने वाले लोगों को वो इस फंड से मदद दिया करते थे। ये पहला इंडस्ट्री वर्कर फंड था।
पृथ्वीराज कपूर का थिएटर करीब 16 सालों तक चला, जिसमें 2,662 परफॉर्मेंस हुईं। इस थिएटर का एक प्ले पठान मुंबई में करीब 600 बार किया गया। ये ग्रुप देशभर में ट्रैवल कर प्ले करता था, लेकिन सिर्फ टिकट के पैसों से खर्च निकाल पाना मुश्किल था। 1950 तक फाइनेंशियल दिक्कतों और फिल्मों के बढ़ते चलन के कारण पृथ्वी थिएटर को बंद कर दिया गया।
पृथ्वी थिएटर बंद हो जाने के बाद पृथ्वीराज ने फिर से फिल्मों की तरफ रुख किया। 1950 से 1960 के बीच वो आवारा, भूत पुलिस, श्री 420 और परदेशी जैसी फिल्मों में नजर आए। इसके बाद डायरेक्टर के.आसिफ ने उन्हें फिल्म मुगले-ए-आजम में अकबर के रोल में कास्ट किया।
के. आसिफ इस फिल्म में किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज कपूर को कास्ट करना चाहते थे। उन्होंने मीटिंग के दौरान पृथ्वीराज को एक ब्लैंक चेक दिया था। उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज जितनी चाहे उतनी फीस ले सकते हैं। वो मान भी गए और उन्होंने इस फिल्म के लिए पूरा 1 रुपया लिया और कहा, मैं आदमियों के साथ काम करता हूं, व्यापारियों के साथ नहीं।
इसी दौरान का किस्सा ये है कि मुगल-ए-आजम की शूटिंग शुरू होने से पहले पृथ्वीराज डाइट करने लगे थे। वो पतला होना चाहते थे, इस कारण वो अपने खान-पान पर बहुत ध्यान दे रहे थे। जब वो कास्टिंग के बाद शूटिंग के पहले दिन सेट पर डायरेक्टर के.आसिफ से मिले, तो डायरेक्टर हैरान रह गए। उन्होंने कहा- ये कौन है? अगर आप सलीम का रोल करते, तो वजन कम करते। आपको अकबर के रोल के लिए कास्ट किया गया है, तो आप जाइए और वजन बढ़ाइए
इसी फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज को गर्म रेत पर चलकर अजमेर में मन्नत मांगने जाना था। पर्दे पर ये सीन रियल लगे इसलिए वो सच में गर्म रेत पर नंगे पांव चले थे। इस सीन को पूरा करने में पृथ्वीराज के पांव पर छाले पड़ गए थे। जब ये बात के.आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पैर रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे। उनके इस डेडिकेशन पर वहां मौजूद सब लोग हैरान थे।
फिल्म में दिलीप कुमार सलीम और मधुबाला अनारकली के रोल में नजर आई थीं। दोनों का कहना था कि फिल्म के क्रेडिट में पहले उनका नाम आए। पृथ्वीराज को भी इस बात से आपत्ति नहीं थी। मगर के.आसिफ इस बात के फेवर में नहीं थे। उनके मुताबिक फिल्म के असल हीरो पृथ्वीराज हैं, दिलीप कुमार और मधुबाला फिल्म के सेकेंड लीड स्टार्स हैं। आखिरकार के.आसिफ ने पहले उनका नाम दर्ज कराया। उनका कहना था कि ये फिल्म सलीम-अनारकली की नहीं बल्कि मुगल-ए-आजम (अकबर) की है।
1968 की फिल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने दीनानाथ नाम के शख्स का रोल निभाया था। इस फिल्म में उनकी आवाज किसी दूसरे ने डब की थी। दरअसल, जब वो थिएटर में प्ले करते थे, तो माइक का इस्तेमाल नहीं करते थे। स्टेज से दूर बैठे दर्शक को भी उनकी आवाज सुनाई दे, इस कारण पंखे को बंद कर दिया जाता था। दर्शक को हाथ का पंखा दिया जाता था। यही वजह रही कि 60 के दशक तक आते-आते उनकी आवाज पूरी तरह से खराब हो गई।
पंडित नेहरू ने पृथ्वीराज कपूर को पहली बार 1952 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। ये पहली बार था, जब किसी एक्टर को राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। इसके बाद 1954 में एक बार फिर से उनको राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। वो 8 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे थे।
पंडित नेहरू और पृथ्वीराज बहुत अच्छे दोस्त थे। रशीद किदवई की किताब नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स के मुताबिक, कई बार ऐसा भी होता था कि पृथ्वीराज कपूर नेहरू जी को इनकार करने में संकोच नहीं करते थे। एक बार पंडितजी उनसे मिलना चाहते थे। उन्होंने एक अधिकारी को पृथ्वीराज कपूर को डिनर पर लाने के लिए भेजा, लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने यह कहकर आने से इनकार कर दिया कि वो अपनी थिएटर टीम के साथ हैं
नेहरू जी खुद भी स्टेज और फिल्मों के शौकीन थे, इसलिए उन्होंने उनकी थिएटर टीम को अगले दिन के लिए आमंत्रित कर लिया। 60 लोगों का पूरा ग्रुप, (जिसमें एक्टर्स, संगीतकार और स्टेज बनाने वाले कारपेंटर्स भी शामिल थे) नई दिल्ली के तीन मूर्ति भवन स्थित प्रधानमंत्री आवास पहुंचा और नेहरू जी के प्राइवेट डाइनिंग रूम में डिनर किया। नेहरू जी ने खुद उन्हें पूरा आवास घुमाया और म्यूजियम के साथ-साथ वो गिफ्ट्स भी दिखाए, जो उन्हें दुनियाभर से मिले थे
उम्र के साथ पृथ्वीराज फिल्मों से दूरी बनाने लगे। ये जुहू बीच के पास बसे पृथ्वी झोपड़ी में पत्नी के साथ रहने लगे। ये प्रॉपर्टी पृथ्वी ने लीज पर ली थी, लेकिन बाद में उनके बेटे शशि कपूर ने इसे माता-पिता के लिए खरीद लिया। पृथ्वीराज कपूर और उनकी पत्नी को एक साथ कैंसर हो गया। लंबे समय तक बीमारी से लड़ने के बाद पृथ्वीराज कपूर का 29 मई 1972 को निधन हो गया। इनकी मौत के ठीक दो हफ्ते बाद पत्नी भी 14 जून को दुनिया छोड़ गईं।
उन्होंने मरने से पहले अपने सभी अस्पताल के बिलों को जमा कर दिया था, इनकम टैक्स भी चुका दिया था। वो इतने खुद्दार थे कि उन्होंने पूरी जिंदगी अपने बेटों से एक भी रुपया नहीं लिया। उन्होंने करियर के शुरुआती दिनों में ओपल कार खरीदी थी। बेटे राज कपूर को वो कार बहुत पसंद थी। स्टार बनने के बाद उन्होंने पिता से वो खरीदने के लिए ब्लैंक चेक दे दिया और कहा- आप इस पर रकम खुद से लिख दीजिए।