जानिए चार भाषाओं के जानकार डविंग आर्टिस्ट अरविंद मेहरा के बारे में

आपने डिस्कवरी पर आने वाला शो मैन वर्सेज वाइल्ड तो जरूर देखा होगा। भारत में इस शो की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। हालांकि इस शो को लोकप्रिय बनाने वाले शख्स के बारे में आपको शायद ही पता हो। ये शख्स हैं अरविंद मेहरा। इन्होंने ही शुरुआती दौर में बेयर ग्रिल्स की आवाज को हिंदी में डब किया था।

अरविंद मेहरा तकरीबन 45 साल से वॉयस ओवर और डबिंग की दुनिया में एक्टिव हैं। इन्हें कुछ लोग डबिंग की दुनिया का अमिताभ बच्चन भी कहते हैं। इन्होंने फिल्मों और कई वेब सीरीज में अपनी आवाज दी है। इसमें मुख्य रूप से इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स शामिल हैं।
आज इन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस भी खोल दिया है। अब ये कई ऐड वीडियोज का भी प्रोडक्शन करते हैं। अरविंद मेहरा सिर्फ एक नहीं बल्कि चार भाषाओं के जानकार हैं। इन्हें हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और भोजपुरी की बहुत अच्छी नॉलेज है।
अरविंद मेहरा ने लाइव डबिंग करके भी दिखाया। उनके हाथ में स्क्रिप्ट थी, जिसमें हॉलीवुड फिल्म के डायलॉग्स लिखे थे। सामने टीवी थी, जिसमें ओरिजिनल सीन चल रहे थे।
अरविंद मेहरा ने कहा, ‘मैं कई सालों तक डिस्कवरी पर आने वाले शो मैन वर्सेज वाइल्ड में बेयर ग्रिल्स की आवाज बनता आया था। हालांकि अब मैंने यह शो छोड़ दिया है। बेयर ग्रिल्स की आवाज बनना और इसका फेमस होना मुझे वाकई खुशी देता है।
बेयर ग्रिल्स एक बार इंडिया आए थे। उन्होंने जब अपना हिंदी डबिंग सुना तो काफी प्रभावित हुए। उन्होंने वहां मौजूद लोगों से पूछा कि मेरी आवाज किसने डब की है? लोगों ने मेरी तरफ इशारा किया। इस तरह मेरी उनसे मुलाकात हुई।’
अपनी आवाज का ख्याल कैसे रखते हैं। वॉयस ओवर और डबिंग की फील्ड में करियर बनाने वालों के लिए क्या कहेंगे? अरविंद मेहरा ने कहा, ‘मेरे घर में सभी की आवाज काफी अच्छी है। शायद इसी वजह से मेरे अंदर भी यह कला आ गई। मैं अपनी आवाज का कुछ खास ख्याल नहीं रखता। इसे नेचुरल रखने का ही प्रयास करता हूं। इसी वजह से मैं रियाज वगैरह भी नहीं करता हूं।
जहां तक करियर बनाने की बात है, कुछ लोग सोचते हैं कि अगर उनकी आवाज में एक हैवीनेस या बेस होगा तभी आगे बढ़ पाएंगे। ऐसा बिल्कुल नहीं है। आपकी आवाज में वो भारीपन भले ही न रहे, लेकिन आप एक ही वाक्य को कई तरह से बोलना जानते होंगे तो जरूर सफल होंगे। डबिंग और वॉयस ओवर की दुनिया में सफल होने का एकमात्र पैमाना यही है कि जितना हो सके, अभ्यास करिए।’
आपने खुद का डबिंग स्टूडियो खोलने का फैसला क्यों किया। जवाब में अरविंद मेहरा ने कहा, ‘स्टूडियो खोलने का फैसला आसान नहीं था। दरअसल मैं दूसरी जगह जाता तो मुझे काफी सारी लिमिटेशन में बांध दिया जाता था। स्क्रिप्ट मेरे हिसाब से नहीं होती थी।
मुझे लगता था कि मैं इससे बेहतर कर सकता हूं। डबिंग करते वक्त लगता था कि यह लाइन किसी और तरीके से बोलनी चाहिए, लेकिन मैं दायरे में बंधा था, इसलिए खुद से उसे बेहतर नहीं बना पाता था।
यही सोचकर मैंने अपना स्टूडियो खोला। शुरुआत में डर था कि अगर मैंने स्टूडियो खोल दिया तो बाहर के लोग मुझे हायर करना छोड़ देंगे, लेकिन मेरा यह फैसला सही साबित हुआ। हमारा स्टूडियो चल गया, कारण यह था कि हम दूसरों की तुलना में कम पैसे लेते थे।’
अरविंद मेहरा ने आशिकी, परिंदा, राम लखन, फूल और कांटे, दिल है कि मानता नहीं और राजनीति जैसी फिल्मों में अपनी आवाज दी है। करियर की शुरुआत में अरविंद न्यूज एंकर हुआ करते थे। उनकी एंकरिंग स्किल से प्रभावित होकर फिल्म मेकर शेखर कपूर ने उन्हें फिल्म मिस्टर इंडिया में एक रोल दिया था।
फिल्म के एक सीन में न्यूज रीडिंग करता शख्स कोई और नहीं, बल्कि अरविंद मेहरा ही थे। इसके अलावा रिन और व्हील साबुन के फेमस ऐड्स में भी इनकी आवाज का यूज किया गया है।
आजकल AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) बहुत सारे वॉयस ओवर और डबिंग आर्टिस्ट की जॉब खा रहा है। क्या AI के बढ़ते स्कोप को आप खतरनाक मानते हैं? अरविंद ने कहा, ‘AI खतरनाक तो है। AI से निकलने वाले साउंड नेचुरल नहीं लगते हैं। हम लोग जब बात करते हैं तो कई बार रुकते-ठहरते हैं। AI में कोई शख्स सीधा एक फ्लो में बात करता है।
हमारा संघ इस समस्या से निपटने पर विचार कर रहा है। हम लोग एक नियम बना रहे हैं, जिसके तहत कोई भी कंपनी बिना परमिशन के हमारी आवाज को AI के जरिए यूज नहीं कर सकती।’
अरविंद मेहरा ने म्यूनिक, द एज ऑफ वॉर और एक्सट्रैक्शन 2 सहित कई बड़ी हॉलीवुड फिल्मों में अपनी आवाज दी है। नेटफ्लिक्स के कई शोज के लिए भी इन्होंने अपनी आवाज दी है। इन सब के अलावा कलर्स, जी और स्टार पर आने वाले सीरियल्स के प्रोमो में भी इनका वॉयस ओवर सुनने को मिलता है।
डबिंग और वॉयस ओवर की दुनिया में काम कैसे मिलता है? जवाब में अरविंद कहते हैं, ‘इस वक्त तो भर-भर के काम मिल रहा है। हमारे जैसे कई प्रोडक्शन हाउस को अच्छी आवाज वाले नए-नए लोगों की जरूरत है।
उदाहरण के लिए मेरे प्रोडक्शन हाउस में ही देखिए। हम दुनिया भर की फिल्मों और शोज को भारतीय भाषाओं में डब करते हैं। जाहिर सी बात है कि इतने सारे कैरेक्टर्स के लिए एक बंदा काफी नहीं है। हर दूसरे कैरेक्टर के लिए एक डबिंग आर्टिस्ट की जरूरत है। अगर आपके अंदर माइक फेस करने की ताकत है। अगर आपको भाषा पर पकड़ है तो इस फील्ड में मौकों की कमी नहीं है।’
डबिंग करते हुए भाषा का विशेष ध्यान दिया जाता है, अंग्रेजी डायलॉग्स को हिंदी में तब्दील करना आसान नहीं
अरविंद मेहरा के सुभाष स्टूडियो में काम कैसे होता है। पूरे प्रोसेस पर कंपनी की CEO मंदिरा ने कहा, ‘हमारे स्टूडियो में कई डिपार्टमेंट हैं। इसमें से एक टेक्निकल डिपार्टमेंट है। टेक्निकल डिपार्टमेंट का काम नए-नए उपकरणों को खरीदना है। नए माइक वगैरह खरीदने का जिम्मा इनके ऊपर होता है।
हमारी एक ऑपरेशन टीम है। क्लाइंट के साथ पेपर वर्क और उनकी जरूरतों को समझकर आर्टिस्ट तक पहुंचाने का काम उनका होता है। फाइनेंस टीम का काम पैसों का लेन-देन और बजट बनाना है।
अंत में आती है क्रिएटिव टीम। इनका काम ओरिजिनल शोज और फिल्मों को देखकर उसे हिंदी या किसी भी भाषा में डब करना है। जैसे मान लीजिए कोई फिल्म अंग्रेजी में है, उसमें गुंडों की लड़ाई दिखाई जा रही है। हमारी क्रिएटिव टीम उसी हिसाब से एग्रेसिव डायलॉग तैयार करती है। फिर डबिंग आर्टिस्ट उसी लहजे में डायलॉग्स को दोहराता है। क्रिएटिव टीम का काम सीक्वेंस को समझकर उसी हिसाब से डायलॉग्स तैयार करना है।
इस दौरान हम भाषा पर बहुत ध्यान देते हैं। जैसे मान लीजिए कि हम LGBTQ वाले मुद्दे पर बनी किसी फिल्म की डबिंग कर रहे हैं। चूंकि यह थोड़ा सेंसिटिव टॉपिक है इसलिए डबिंग करते वक्त हम भाषा का विशेष ध्यान देते हैं। किसी को डायलॉग्स बुरे न लगें, इसका खास ख्याल रखा जाता है।
अंग्रेजी फिल्मों को हिंदी भाषा में डब करना आसान नहीं है। कई बार अंग्रेजी शब्दों के अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। उन्हें हिंदी में डब करते वक्त ध्यान देना पड़ता है कि कहीं उसका रेफरेंस तो नहीं बदल गया है।’
सुभाष स्टूडियो में मिक्सिंग करने वाले इंजीनियर बताते हैं, ‘लाइव शूटिंग के वक्त जो ऑडियो आता है, वो क्लियर नहीं होता। हम पहले उस ऑडियो को एडिट करते हैं। जैसा सीन है, उस हिसाब से साउंड डालते हैं।
जैसे कोई कैरेक्टर दूर से बात कर रहा है तो हम ऐसा साउंड डालते हैं जिससे कि लगे कि वो कैरेक्टर कहीं दूर से बात कर रहा है। ठीक वैसे ही अगर कोई कैरेक्टर वॉशरूम या किसी बड़े हॉल में खड़े होकर बात करता है तो उसकी आवाज गूंजती हैं। हम उसी हिसाब से गूंजने वाला साउंड यूज करते हैं। हमारे ऑफिस में डॉल्बी साउंड लगाए गए हैं। इससे हमें मिक्सिंग करने में फायदा मिलता है। ऐसा लगता है कि हम थिएटर में फिल्म देख रहे हैं।’
अरविंद मेहरा चार भाषाओं के जानकार हैं। इन्हें हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और भोजपुरी आती हैं। अरविंद मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं, इसलिए इनकी उर्दू काफी अच्छी है। अरविंद फिल्मों और वेब शोज के लिए डबिंग और वॉयस ओवर करते हैं। इसके अलावा कई सारे ऐड वीडियोज का प्रोडक्शन भी करते हैं। अरविंद को हाल ही में वॉयस फेस्ट 2023 में ‘बेस्ड डॉक्यूमेंट्री वॉयस डबिंग’ का अवॉर्ड मिला है।