अमेरिका में पुलिस अफसर की हत्या के दोषी केविन जॉनसन को 29 नवंबर को डेथ इंजेक्शन से सजा-ए-मौत दी जाएगी। केविन की 19 साल की बेटी ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि वो पिता को मरते हुए देखना चाहती है, लिहाजा उसे डेथ इंजेक्शन दिए जाने के वक्त मौजूद रहने की मंजूरी दी जाए।
केविन को मौत का इंजेक्शन मिसौरी की जेल में दिया जाएगा। यहां के कानून के मुताबिक, 21 साल से कम उम्र के लोग इस तरह की सजा दिए जाने के वक्त मौजूद नहीं रह सकते। केविन ने 2005 में अपने घर रेड के लिए आए पुलिस अफसर विलियम मैकेन्टी का कत्ल किया था। उस वक्त केविन की बेटी खोरे रैमी महज 2 साल की थी।
खोरे की तरफ से अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने कंसास सिटी कोर्ट में पिटीशन दायर की है। इसमें कहा गया है- खोरे को पिता की मौत के वक्त वहां मौजूद रहने की मंजूरी दी जाए। मिसौरी राज्य का कानून 21 साल से कम उम्र के लोगों को इसकी इजाजत नहीं देता, लेकिन अगर खोरे को भी रोका जाता है तो यह उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। पिटीशन के मुताबिक- केविन भी यही चाहते हैं कि उनकी बेटी सजा के वक्त मौजूद रहे। इससे सिक्योरिटी पर कोई असर नहीं होगा।
खोरे ने पिता के बारे में कहा- वो मेरी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा हैं और मैं उनसे बेइंतहां प्यार करती हूं। मैं चाहती हूं कि जब मौत उन्हें अपनी आगोश में ले रही तो मैं उनका हाथ थामकर रखूं और उनके लिए दुआ करती रहूं। मैं उनकी डेथ पेनल्टी (मौत की सजा) की गवाह बनना चाहती हूं।
केविन की उम्र इस वक्त 37 साल है। उन्होंने जब पुलिस अफसर का कत्ल किया था तब बेटी खोरे महज 2 साल की थी। केविन जेल में रहते हुए भी बेटी से मेल, फोन और खतों के जरिए संपर्क में रहे। अब खोरे भी एक बेटे की मां हैं। पिछले महीने वो बेटे को लेकर जेल में केविन से मिलने गईं थीं।
केविन के वकील ने भी कोर्ट में एक अपील दायर की। इसमें कहा- हम ये दावा नहीं करते कि केविन दोषी नहीं है। लेकिन उसको जो सजा दी गई है उसके पीछे नस्लवाद एक बड़ी वजह है। हमारा मुवक्किल अश्वेत है और उसने जिस पुलिस अफसर मैकेंटी का कत्ल किया वो श्वेत था।
पिटीशन में आगे कहा गया- केविन ने जिस वक्त कत्ल किया तब उसकी उम्र महज 19 साल थी। इसके अलावा वो मेंटली भी फिट नहीं था। सुप्रीम कोर्ट 2005 में ही आदेश दे चुका है कि वारदात के वक्त अगर कोई दोषी टीनएजर था तो उसे सजा-ए-मौत नहीं दी जानी चाहिए।
इसके जवाब में मिसौरी के अटॉर्नी जनरल ने कहा- मारे गए पुलिस अफसर के परिवार ने इंसाफ के लिए बहुत लंबा इंतजार किया। अब सजा नहीं टालनी चाहिए।
केविन को अगर सजा-ए-मौत दी जाती है तो मिसौरी राज्य में इस साल यह तीसरी डेथ पेनल्टी होगी। अमेरिका में इस साल अब तक 16 लोगों को डेथ इंजेक्शन से सजा-ए-मौत दी जा चुकी है।
16 जनवरी 2014 को ओहियो जेल में डेनिस मैक्ग्वायर (53) को जानलेवा इंजेक्शन से मौत की सजा सुनाई गई। डेथ चेंबर में डेनिस को लाया गया। बिस्तर पर लिटाकर हाथ पैर और शरीर बांधा गया। दूसरी तरफ मौजूद कमरे में परिजन बैठकर यह नजारा शीशे की दीवार से देख रहे थे। डेनिस को 1989 में 22 वर्षीय गर्भवती महिला से अपहरण कर दुष्कर्म करने और उसे मारने के लिए मौत की सजा मिली थी। करीब 10.27 बजे सुबह उसे लीथल इंजेक्शन लगाया गया। डेनिस का बेटा अपने पिता की घड़ी में समय देख रहा था। वह नोट कर रहा था कि कब उन्हें इंजेक्शन दिया गया।
10.30 बजे डेनिस का शरीर तेजी से उछलने लगा, उनके मुंह से ऐसी आवाजें निकल रही थीं जैसे कोई डूब रहा हो, वे तेजी से बिस्तर पर शरीर को पटक रहे थे। करीब 10.53 बजे डेनिस की मौत हुई। डेनिस की मौत में 26 मिनट लग गए।
इसके बाद अमेरिका में चर्चा हुई कि लीथल इंजेक्शन से क्या इतना समय लगना चाहिए। दो दवाइयों को मिलाकर लीथल इंजेक्शन दिया गया था। हालांकि कुछ राज्यों में तीन दवाइयों का उपयोग किया जाता है। डेनिस के परिजन ने तो उस दवा कंपनी पर मुकदमा भी कर दिया था, जिसने इंजेक्शन की दवा बनाई थी।
7 दिसंबर को 1982 को चार्ल्स ब्रूक्स जूनियर जहरीले इंजेक्शन से मौत की सजा पाने वाला पहला दोषी बना था। अमेरिका के टेक्सॉस में दवाओं के कॉकटेल को ब्रूक्स के शरीर में डाला गया था, जिससे उसका दिमाग और शरीर सुन्न पड़ गया, वो पैरालाइज हो गया और दिल की धड़कनें रुकने से उसकी मौत हो गई। जहरीले इंजेक्शन के जरिए हुई इस पहली मौत ने इस बात को लेकर आम लोगों और डॉक्टरों के बीच बहस छेड़ दी थी कि मौत की सजा देने का यह तरीका सही और मानवीय है या नहीं? हालांकि, जहरीले इंजेक्शन से मौत की सजा देने का सिलसिला आज भी जारी है।
जहरीले इंजेक्शन को सजा-ए-मौत देने के दूसरे तरीकों जैसे गैस, बिजली के झटके या लटकाने की तुलना में अधिक मानवीय माना जाता था। इसके पीछे तर्क ये था कि इस इंजेक्शन में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में से एक से गहरी बेहोशी आ जाती है, इससे मरने वाले को दर्द नहीं होता। हालांकि नैतिकता का उल्लंघन मानते हुए कई डॉक्टर जहरीले इंजेक्शन के विरोध में थे, लेकिन इसके बावजूद इसके इस्तेमाल को मंजूरी मिली।