केजरीवाल बोले- कांग्रेस बताए लोकतंत्र के साथ या मोदी के:कहा- हमने उनसे मिलने का समय मांगा; अध्यादेश के खिलाफ झारखंड CM का साथ मिला

दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर कंट्रोल के लिए केंद्र के अध्यादेश लाई थी। इसके खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष से समर्थन मांग रहे हैं। उन्हें अब तक कई पार्टियों का समर्थन भी मिल चुका है। हालांकि, इस मुद्दे पर अभी कांग्रेस का रुख साफ नजर नहीं आ रहा है।

इसी बीच शुक्रवार को केजरीवाल ने कहा कि हमने कांग्रेस से समय मांगा है। उन्होंने कहा कि हमको उम्मीद है वह समय जरूर देंगे और संसद में इस अध्यादेश को गिराने में मदद भी करेंगे। मैं सोच नहीं सकता कि कोई भी पार्टी इस अध्यादेश के पक्ष में कैसे वोट कर सकती है?

जैसे कि मैंने कहा यह मेरी लड़ाई नहीं है, पूरा देश देख रहा है पूरा देश देखेगा। कांग्रेस को यह तय करना है कि वह जनतंत्र, संविधान और देश के 140 करोड़ों लोगों के साथ है या मोदी जी के साथ।

केजरीवाल ने यह बातें रांची में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनके आवास पर मुलाकात के बाद कहीं। वे हेमंत से केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन मांगने पहुंचे थे। वहीं, झारखंड सीएम का साथ मिलने के बाद दिल्ली सीएम ने कहा कि दिल्ली के लोगों को आज झारखंड के लोगों का समर्थन मिला है।

केंद्र सरकार 20 मई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अध्यादेश लाई थी। इसके बाद 21 मई को नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी। नीतीश ने केजरीवाल का समर्थन किया था। 22 मई को बिहार के सीएम नीतीश इसी मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले थे। इसके बाद खबरें सामने आई थीं कि कांग्रेस भी इस मुद्दे पर केजरीवाल सरकार का समर्थन करने पर सहमत है। हालांकि, बाद में पार्टी नेताओं ने इससे इनकार कर दिया।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने 29 मई को दिल्ली और पंजाब के नेताओं के साथ बैठक की थी। इस बैठक में चर्चा हुई थी कि कांग्रेस को केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन करना चाहिए या नहीं।

केजरीवाल को समर्थन देने को लेकर पार्टी के नेता दो गुट में बंटे हुए हैं। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पिछले हफ्ते कहा था कि अगर केंद्र सरकार अध्यादेश को लेकर राज्यसभा के मानसून सेशन में बिल लाती है तो हमारे सांसद इसका विरोध करेंगे।

वेणुगोपाल के इस बयान के बाद 23 मई को दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेताओं ने बैठक की थी। इसमें प्रताप सिंह बाजवा, अजय माकन, संदीप दीक्षित समेत अन्य कांग्रेसी नेता शामिल थे। इसमें दोनों राज्यों के नेताओं ने शराब नीति केस में केजरीवाल और उनके मंत्रियों के खिलाफ केस दर्ज होने का हवाला देकर उन्हें समर्थन देने से इनकार कर दिया था।

शुक्रवार को झारखंड के मुख्यंमत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात करने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से हमारा रिश्ता भाई जैसा है। दिल्ली के लोगों का अपमान किया जा रहा है, उनके साथ अन्याय किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने क्रांतिकारी फैसला लेते हुए दिल्ली सरकार को सारी शक्तियां दी। दिल्ली के लोग किसी भी सरकार को चुनें उन्हें काम करने के सारे अधिकार हों।

11 मई को फैसला आया और 19 मई को रात के दस बजे मोदी सरकार ने यह फैसला अध्यादेश लाकर पलट दिया। दिल्ली के लोगों के अधिकार छिन लिए गए हैं। यह अध्यादेश संसद के मानसून सत्र में आयेगा। भाजपा के पास लोकसभा में तो बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में इस बिल को रोका जा सकता है, अगर सभी पार्टियां एक हो जाएं।

दिल्ली सीएम ने कहा कि आज मोदी सरकार जो अध्यादेश दिल्ली के लिए लाई है, वो झारखंड के लिए भी ला सकती है। हम देशभर में घूम रहे हैं। हेमंत जी ने हमें पूरा सहयोग देने का वादा किया है। हम इस मंच से और भी दूसरी पार्टियों से अपील करते हैं कि हमारा साथ दें।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्र सरकार संघीय ढांचे की बात करती है, लेकिन काम इसके ठीक उलट करती है। केंद्र चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने दे रही है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक प्रहार है। यह देश की ताकत, अनेकता में एकता पर भी वार है। गैर भाजपा शासित राज्यों की स्थिति एक जैसी है। इस लोकतंत्र में जनता की अहम भूमिका है, विधायक, सासंद तो एक माध्यम हैं।

देश को आजादी दिलाने में जो योगदान, जो कुर्बानी हमारे लोगों ने दिया है, यह उसका भी मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली में झारखंड के भी लोग हैं, पूरे देश के लोग हैं। ऐसे फैसले से पूरे देश पर असर डालने की कोशिश है।