मध्य प्रदेश में पिछले दो हफ्ते से चल रही राजनीतिक रस्साकशी का अंत शुक्रवार को हो गया. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इस्तीफा देने की घोषणा कर दी.
उन्होंने कहा कि वो राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपने जा रहे हैं. अपने इस्तीफ़े की घोषणा से पहले उन्होंने पिछले 15 महीने में किए अपने कामों का ज़िक्र किया.
कमलनाथ ने कहा, “प्रदेश की जनता ने मुझे पांच साल सरकार चलाने का बहुमत दिया था लेकिन बीजेपी ने प्रदेश की जनता के साथ धोखा किया. बीजेपी शुरू से कहती आ रही है कि ये सरकार सिर्फ़ 15 दिन चलेगी.”
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कमलनाथ सरकार को फ़्लोर टेस्ट के ज़रिए बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. विधानसभा ने देर रात कार्यसूची जारी की जिसके अनुसार दोपहर दो बजे तक बहुमत साबित करना था.
हालांकि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने सुबह दावा किया था कि उनके पास 105 विधायकों का समर्थन है और सरकार वैसे ही चलती रहेगी.
उनके इस दावे के पीछे वजह पूछने पर उन्होंने कहा, “बीजेपी के नारायण त्रिपाठी की तरह उनके पास ऐसे ही कई नारायण हैं. मैहर से बीजेपी के विधायक नारायण त्रिपाठी एक बार कांग्रेस के पक्ष में मतदान कर चुके है. साथ ही वो समय-समय पर कभी बीजेपी तो कांग्रेस के साथ खड़े नज़र आते है. उनके क्षेत्र मैहर को ज़िला बनाने की उनकी मांग को भी कमलनाथ ने इस सप्ताह पूरा कर दिया है.”
लेकिन आख़िर इन सब दावों के बीच बीबीसी ने जानने की कोशिश की किस तरह सत्ता कांग्रेस के हाथ से बीजेपी के हाथ में जा रही है और इसका ज़िम्मेदार कौन है?
सिंधिया समर्थक विधायक
आकड़ों को देखे तो कांग्रेस के पास बहुमत नज़र नहीं आ रहा था. कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद पार्टी के पास अब 92 सदस्य थे. वहीं अन्य सात जिनमें समाजवादी पार्टी का एक, बहुजन समाज पार्टी के दो और निर्दलीय चार विधायक सरकार के साथ खड़े नज़र आ रहे है. नारायण त्रिपाठी के एक वोट के सहारे भी कांग्रेस का आकड़ा 100 पर पहुंच रहा है, जो बहुमत के आंकड़े 104 से कम है.
स्पीकर ने बीजेपी के शरद कोल का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया था. उन्होंने पहले इस्तीफ़ा दे दिया था लेकिन बाद में उन्होंने बाद में इसे स्वीकार नहीं करने की बात कही थी.
स्पीकर एनपी प्रजापति ने गुरुवार को देर रात कांग्रेस के 16 विधायकों के इस्तीफ़े भी स्वीकार कर लिए. कमलनाथ मंत्रिमंडल में छह सिंधिया समर्थक मंत्री रहे विधायकों के इस्तीफे पहले ही स्वीकार कर लिये गये थे.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर इसके लिये बीजेपी को ज़िम्मेदार नही मानते है. उनका कहना है, “कैच मिल रहा था तो बीजेपी ने कैच ले लिया.”
वो कहते हैं, “जितने भी विधायक और मंत्री कमलनाथ को छोड़कर बेंगलुरु गए थे, उनमें से किसी ने नहीं कहा कि बीजेपी ने उनका अपहरण किया या उन्हें किसी भी तरह का प्रलोभन दिया गया.”कमलनाथ का इस्तीफ़ा
चिट्ठी में छिपा था सरकार का हाल
वो कहते हैं कि अगर सरकार की सही स्थिति के बारे में पता करना है तो दिग्विजय सिंह के पत्र को देखना चाहिए जो उन्होंने आख़िर में अपने विधायकों को लिखा है. उन्होंने चिट्ठी में लिखा है कि जाने-अनजाने मेरी या किसी नेता की ग़लतियों से कोई कड़वाहट पैदा हुई उसको दूर करना चाहता हूं.”
गिरिजाशंकर कहते हैं कि ये शब्द पूरी स्थिति बयां कर देते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस सत्ता से हाथ धोने के करीब पहुंच गई है. बीजेपी ने सिर्फ़ मौके का फ़ायदा उठाया जो हर पार्टी उठाती है.
मध्य प्रदेश के इतिहास में यह दूसरी बार है जब सत्ताधारी सरकार में बहुमत का संकट आ गया. राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि 15 साल बात सत्ता में लौटी कांग्रेस कहीं न कहीं अपने ही नेताओं और कार्यक्रताओं की अपेक्षा पर खरी नही उतरी.
विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं, ” पार्टी में संवादहीनता थी. सत्ता और सगंठन में आपसी तालमेल नहीं बैठा पाए. यही संवादहीनता ने सरकार को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया.”
दिनेश गुप्ता कहते हैं, “सिंधिया क्या चाहते थे? वो सिर्फ़ पार्टी के अंदर सम्मान चाहते थे लेकिन पार्टी ने उन्हें नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया.”
“अगर वो किसी मुद्दे को उठा रहे हैं तो उस पर गंभीरता से विचार तो होना ही चाहिये था लेकिन सरकार ने उसे कुछ समझा ही नहीं और विधायक और आम कार्यकर्ताओं में यह संदेश जाने लगा कि सरकार को उनकी कोई परवाह ही नहीं है.”
कांग्रेस सरकार की अंदरूनी राजनीति
दिनेश गुप्ता के मुताबिक़ सरकार के पास ऐसा कोई कार्यक्रम भी नहीं था जिससे लोगों को जोड़ा जा सके या बताया जा सके कि आख़िर सरकार क्या कर रही है.
वो कहते हैं, “कांग्रेस सरकार की अंदरूनी राजनीति का बीजेपी ने फ़ायदा उठा लिया. पार्टी के अंदर ऐसे लोगों की ज़रूरत थी जो सबको साथ मलेकर चल सकें. ज़रूरी नहीं है कि हर किसी को पद दिया जाए लेकिन उनकी बातों को सुना जाना ज़रूरी है.”
मध्य प्रदेश में चल रहे इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तीन मार्च को ही हो गई थी जब दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर शिवराज सिंह चौहान से पूछा था कि आपके बीजेपी नेता बसपा विधायक रामबाई को चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली ले गए हैं या नहीं. इसके बाद पता चला कि कई विधायक गायब हैं और बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं.
इसके बाद कांग्रेस नेता कुछ विधायकों को वापस लाने में सफल हो गए. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उस वक़्त दावा किया कि सरकार पर कोई संकट नहीं है. सभी विधायक पार्टी के साथ हैं. लेकिन फिर पांच मार्च को विधायक हरदीप सिंह डंग के कांग्रेस से इस्तीफ़े की ख़बर सामने आई लेकिन कांग्रेस कहती रही कि यह उनका पार्टी उन्हें मना लेगी.
इसके बाद कांग्रेस ने भी बीजेपी के विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश की. मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल कमलनाथ से मिलने पहुंचे और उसी समय मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया जो कि सिंधिया समर्थक थे कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा होगी तो उस दिन मध्य प्रदेश सरकार पर संकट आ जाएगा.
छह मार्च को कमलनाथ से सभी मंत्रियों ने अपने इस्तीफ़े की पेशकश की और कहा कि हालात को संभालने के लिए इस्तीफा लेकर मंत्रिमंडल का गठन फिर से किया जा सकता है. इस बीच सात मार्च को निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा बेंगलुरु से वापस आ गए और कमलनाथ से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेस सरकार के साथ था और रहूंगा.
इसके बाद अगले दिन आठ मार्च को कांग्रेस के एक अन्य विधायक बिसाहूलाल सिंह भी बेंगलुरु से वापस लौट आए लेकिन अगले ही दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 19 मंत्री और विधायक बेंगलुरु पहुंच गए.
कांग्रेस ने कोशिश की पर नहीं माने सिंधिया
सिंधिया को मनाने के लिए कांग्रेस ने पूरी कोशिश कर डाली लेकिन वह नही मानें. भोपाल में 20 मंत्रियों ने नए सिरे से मंत्रिमंडल गठन के लिए अपना इस्तीफा सौप दिया.
10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और अपना इस्तीफ़ा पार्टी से दे दिया. इसके बाद बेंगलुरु में मौजूद सिंधिया समर्थक छह मंत्री और 13 विधायकों ने भी अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेजा. उधर इस दौरान दो और विधायकों बिसाहूलाल सिंह और ऐंदल सिंह कंसाना ने भी अपना इस्तीफ़ा दे दिया.
इसके बाद राज्यपाल ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने को कहा. 16 मार्च से शुरु हुए सत्र में स्पीकर ने राज्यपाल के अभिभाषण के बाद कार्यवाही को 26 मार्च तक के लिये स्थगित कर दिया और उन्होंने इसकी वजह करोना वायरस को बताई.
इसके बाद बीजेपी ने अपने विधायकों की परेड राजभवन में कराई और रुख सुप्रीम कोर्ट का कर लिया. जहां पर आख़िर में सरकार को बहुमत साबित करने के लिये कहा गया.
कांग्रेस पार्टी 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत कर 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी. उस वक़्त कांग्रेस के 114 विधायक जीते थे और बीजेपी के 109 लेकिन शुक्रवार की स्थिति में बीजेपी के पास 106 विधायक थे तो कांग्रेस की संख्या 92 तक पहुंच गई है.
230 सदस्यों वाली विधान सभा में सरकार बनाने के लिए 116 विधायकों का समर्थन ज़रूरी होता है. बसपा के दो, सपा के एक और निर्दलीय चार विधायक हैं जिन्होंने कांग्रेस को अब तक समर्थन दिया हुआ था. दो सीटें विधायकों के देहांत हो जाने की वजह से अभी तक खाली थी.