उत्तर प्रदेश में ट्रांसफर पोस्टिंग में मनमानी एक फैशन बनता जा रहा है। लखनऊ के प्रतिष्ठित SGPGI के निदेशक आरके धीमान पर वहीं के फैकल्टी फोरम ने मनमानी का आरोप लगाया है। SGPGI में अपर निदेशक का पद आईएएस का होता है। इस पर प्रदेश सरकार किसी आईएएस अफसर की तैनाती करती है, लेकिन SGPGI निदेशक ने नियमों को दरकिनार करते हुए वरिष्ठता क्रम में बहुत ही नीचे डॉ. नारायण प्रसाद को अपर निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया, जोकि नियम विरुद्ध है। डॉ. नारायण प्रसाद के नए कार्यभार को लेकर डाक्टरों में काफी रोष है।
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान अधिनियम, 1983 की धारा 41 की उपधारा(2) में 2011 में संशोधन किए गए थे। विनियमावली 2011 के तहत अपर निदेशक की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार के पास है और अपर निदेशक की नियुक्ति भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में से प्रतिनियुक्ति के आधार पर की जाती रही है। अपर निदेशक संस्थान के सामान्य प्रशासन जैसे कि नियुक्ति और कार्मिक मामले, निर्माण, अनुरक्षण, उपापम आदि के लिए उत्तरदायी होता है।
इससे पहले 2009 बैच की आईएएस शुभ्रा सक्सेना इस पद पर रह चुकी हैं, वो भी कई जिलों की कलेक्टरी करने के बाद। फिलहाल 2014 बैच के आईएएस अशोक कुमार यहां अपर निदेशक के पद पर तैनात थे, जिनके यूपी लोक सेवा आयोग में सचिव बनने के बाद से अपर निदेशक SGPGI का पद खाली चल रहा था। निदेशक SGPGI के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने शासन से किसी अफसर की तैनाती का इंतजार नहीं किया और खुद ही अपर निदेशक के पद पर बहुत ही जूनियर डॉक्टर को बैठा दिया?
आपको बता दें कि राज्य के मुख्य सचिव SGPGI के पदेन अध्यक्ष होते हैं। अपर निदेशक SGPGI की तैनाती का आदेश अब तक नियुक्ति विभाग से जारी होता था, जिसके लिये मुख्यमंत्री का अनुमोदन लिया जाता था। जानकर बताते हैं कि अपर निदेशक पद पर सरकार द्वारा तैनाती किए जाने से तमाम वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में सरकार का नियंत्रण रहता है, लेकिन जब निदेशक द्वारा अपने से काफी जूनियर डॉक्टर को ही अपर निदेशक बना दिया जाए तो घालमेल की सम्भावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।
मामले को लेकर निदेशक SGPGI आरके धीमान से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे बातचीत नहीं हो पाई है। नाराज डाक्टरों का कहना है कि अगर राज्य सरकार ने इस मामले को गम्भीरता से नहीं लिया तो यहां के कामकाज पर असर पड़ना लाजमी है।