भारत की आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता का भले एक बड़ा योगदान रहा हो, लेकिन आजाद भारत में पत्रकारों की बड़ी दुर्दशा हैं | न सुबिधा न सुरक्षा, हर तरफ बस जोखिम ही जोखिम उस पर भी सरकार की अनदेखी | आखिर पत्रकार करें तो क्या ? स्थिति कुछ ऐसी हैं कि पत्रकार जहाँ सर्दी गर्मी बरसात जैसे मौसम में समाचार कबरेज करते हैं, वहीं दंगा फसाद और प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी अपनी जान जोखिम में डाल पत्रकारिता के दायत्वों का निर्वहन करते हैं | लेकिन इन सबके बाद भी पत्रकारों को देश प्रदेश की सरकारों द्वारा अनदेखा किया जा रहा हैं | हालांकि पग पग के जोखिम उत्पीडन अत्याचार और सरकारों की अनदेखी से आहत पत्रकारों द्वारा तमाम ज्ञापन आन्दोलन किये गये, राजनैतिक नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने भी पत्रकारों की पीड़ा समझ उनके हित में आबाज उठाना शुरू कर दिया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात समान ही हैं | बरहाल पूर्व ज्ञापन आंदोलन की भांति एटा के पत्रकारों ने फिर एक बार बबलू चक्रबर्ती के आवाहन पर सोती सरकार को जगानें के लिये शहर के शहीद पार्क स्थित सरदार भगत सिहं की प्रतिमा के समक्ष बैठक कर सर्वसम्मती से महामहिम राष्ट्रपति के नाम समस्याओं से सम्बन्धी ज्ञापन जनपद के जिलाधिकारी को सौपनें का निर्णय लिया और पत्रकारों की पीड़ा एवं हालातों को माँग पत्र में कुछ इस तरह प्रस्तुत किया | ज्ञापन में पत्रकारों ने लिखा कि आजादी के आंदोलन में पत्रकारों ने जो त्याग बलिदान किया उसे आजादी मिलनें के बाद बनने वाली सरकारें न जानें कैसे भूल गयी और पत्रकारों की दुर्दशा पर चुप्पी सादे हुये हैं | आगे लिखा कि आजादी से लेकर अब तक की सरकारों ने पत्रकारों की सुबिधा सुरक्षा पर न तो ध्यान दिया और न ही कोई सहयोग में सकारात्मक कदम उठाये, परिणाम स्वरूप देश में पत्रकारों पर तमाम तरह से अत्याचार होता रहा, अभद्रता, मारपीट, हमले, हत्या, फर्जी मुकदमे जैसे तमाम उत्पीडन का पत्रकार सदैब शिकार हुआ, बाबजूद पत्रकार इन तमाम जोखिमों से जूझते हुये पूर्व से लेकर वर्तमान में भी पत्रकारिता के दायत्वों का पूर्ण जिम्मेदारी के साथ निर्वहन कर रहा हैं | लेकिन इन तमाम तरह के जोखिम, उत्पीडन अत्याचार और सरकार की अनदेखी से पत्रकारों और उनके परिवारों को जहाँ शाररिक, मानसिक और आर्थिक परेशानी उठानी पड़ रही हैं, वहीं पत्रकार समाज में भय का माहौल बना हुआ हैं, जो न सिर्फ पारदर्शी पत्रकारिता के लिये घातक हैं, बल्कि लोकतंत्र के लिये भी बेहद हानिकारक हैं | हालांकि इन्हीं हालातों और परिस्थियों को समझते हुये हाल ही में समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने सदन की कार्यवाई के दौरान पत्रकारों के हित में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करनें, पत्रकारों को प्रतिमाह परिवार गुजारा भत्ता देनें और बीस लाख का कैशलैश उपचार करानें जैसी अन्य कई मांगें रखीं जिस पर गम्भीरता से संज्ञान लेकर सरकार को संदर्भित भी किया गया, इससे पूर्व गोंडा तरबगंज से भाजपा विधायक प्रेम नरायन पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बजट में पत्रकारों को स्वास्थ सुबिधा, बीमा, पेंशन, समाचार कबरेज भत्ता और विभिन्न शासकीय योजनाओं सहित अन्य समुचित सुबिधाओं का लाभ देनें की माँग भी की गयी, लेकिन न जानें क्या कारण रहे कि न तो अब तक भारत सरकार ने सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा की मांगों पर कोई निर्णय लिया और न ही भाजपा विधायक प्रेम नरायन पाण्डेय के माँग पत्र पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई सकारात्मक कदम उठाया | यही नहीं देश के पत्रकारों ने भी सुबिधा सुरक्षा की माँग को लेकर समय समय पर ज्ञापन आंदोलन भी किये बाबजूद आज तक पत्रकारों को कोई समुचित सुरक्षा सुबिधा सरकार द्वारा नहीं दी गयी, जो आजाद भारत में पत्रकारों के साथ सरकार द्वारा किये जानें वाले सौतेले व्यवहार समान प्रतीत होता हैं | जिससे आहत होकर पुन: एटा के पत्रकारों ने अपने तय कार्यक्रम के तहत महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन जिला प्रशासन को सौपा और सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा द्वारा सदन में रखी गयी मांगों को पूरा करनें हेतु देश के राष्ट्रपति से माँग की | ज्ञापन के दौरान मुख्य रूप से …