3 अजीज लोगों को मौत हुई तो 33 साल तक मद्रास नहीं गए थे जाॅनी वाॅकर

हिंदी सिनेमा के बेस्ट कॉमेडियन में से एक जाॅनी वाॅकर की आज 20वीं पुण्यतिथि है। जॉनी वॉकर 50-60 के दशक में हर प्रोडक्शन हाउस की डिमांड होते थे। फिल्म में एक-दो गाने उन पर जरूर फिल्माए जाते थे।

गुरु दत्त की हर फिल्म में उनका एक रोल फिक्स होता था। उनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था। वो शराबी का रोल इतने परफेक्ट तरीके से करते थे कि गुरु दत्त ने अपनी फेवरिट व्हिस्की ब्रांड के नाम पर उनका नाम जाॅनी वाॅकर रख दिया।

फिल्मों में आने से पहले उन्होंने पिता की मदद के लिए आइसक्रीम भी बेची। कभी फेरी लगाई तो कभी लोगों को हंसा कर भी पैसे कमाए। शूटिंग के दौरान उन्हें एक्ट्रेस नूरजहां से प्यार हुआ फिर परिवार वालों के खिलाफ जाकर मस्जिद में शादी कर ली। जाॅनी वाॅकर की सलाह पर शम्मी कपूर ने भी गीता बाली से मंदिर में शादी की थी।

साउथ में जब फिल्में बनने लगी थीं, तब उन्होंने एक साउथ फिल्म को साइन किया। जब वो शूटिंग के लिए मद्रास गए, तब उनके तीन अजीज लोगों की मौत हो गई। इसके बाद मद्रास को उन्होंंने अपने लिए मनहूस मान लिया और वो फिल्म भी छोड़ दी। इसके 33 साल बाद वो कमल हासन की जिद पर शूटिंग के लिए मद्रास गए थे।
इंदौर में जन्मे जाॅनी वाॅकर का बचपन दूसरे बच्चों की तरह सामान्य ही बीता। हंसाने की कला उनके पास बचपन से ही थी। कम्र उम्र में ही वो लोगों को हंसाने के लिए ऐसे-ऐसे तकरीब खोजते थे कि लोग हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाया करते थे।
उनके पिता कपड़ा मिल में काम करते थे। एक दिन अचानक वो मिल बंद हो गई। परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। दूसरी नौकरी की तलाश में पिता कई दिनों तक भटके, जब कोई काम नहीं मिला, तो एक उम्मीद लिए वो नासिक की तरफ रवाना हो गए।
उस वक्त जाॅनी वाॅकर की उम्र 14 साल थी। पिता के साथ उन्होंने भी परिवार की जिम्मेदारियां खुद के कंधों पर ले लीं। उनकी पहली नौकरी थी, आइस्क्रीम बेचना। वो 14-15 किलोमीटर साइकिल से आइस्क्रीम बेचने जाते थे। इस काम के साथ उन्होंने सब्जी बेचने और अंडे बेचने का भी काम किया।

ये काम करते हुए जब वो दीवार पर लगी फिल्मों के पोस्टर देखते तो सोचते कि मुझ जैसी शक्ल वाला क्या एक्टर बनेगा? हालांकि इस दौरान वो जिन लोगों से मिलते, उनके हाव भाव को कॉपी कर लेते थे जो आगे चलकर उनकी कॉमेडी में साफ तौर से देखने को मिला।
1942 में जाॅनी वाॅकर पूरे परिवार साथ मुंबई शिफ्ट हो गए। यहां वो फेरियां लगाते थे। वो मुंबई के माहिम इलाके में रहते थे। जब वहां मेला लगता तो वो अपनी एक्ट से लोगों को हंसाने का काम करते थे। इसके बदले भी वो पैसे कमाते थे। साथ ही उन्होंने कुछ साइकिल स्टंट भी सीख लिए थे। उनका मानना था कि क्या पता कभी उन्हें फिल्मों में काम करने का मौका मिल जाए और शूटिंग के लिए स्टंट की जरुरत पड़े
उनका ये सब काम जारी था कि पिता ने एक पुलिस वाले से सरकारी ट्रांसपोर्टेशन में उनकी नौकरी लगवाने की सिफारिश कर दी। पुलिस वाले ने पिता का ये काम कर दिया और जाॅनी वाॅकर को सरकारी बस में कंडक्टर की नौकरी ऑफर हुई, लेकिन एक मुसीबत थी।
यह नौकरी मिलने से पहले उनका मेडिकल टेस्ट होना था। जब उन्हें ये बात चली कि इस टेस्ट में उनकी आंखों का भी टेस्ट होगा तो वो घबरा गए। दरअसल, जब वो छोटे थे जब उनकी आंखों में कुछ दिक्कत हुई थी। उन्होंने नजदीकी डॉक्टर को दिखाया था। डॉक्टर ने आई ड्रॉप डालकर उन्हें अगले दिन दोबारा दवा डालने के लिए बुलाया था। अगले दिन जब वो गए तो डाॅक्टर मौजूद नहीं थे। कंपाउंडर ने उनकी आंखों में गलत दवा डाल दी, जिस कारण उनका रेटिना खराब हो गया। यही वजह थी कि उन्हें दूर की चीजें साफ नहीं दिखती थीं।

इस मुसीबत से निजात पाने के लिए उन्होंने एक तकरीब निकाली। जिस दिन उनका टेस्ट होना वो उस दिन सुबह ही मेडिकल कैंप पहुंच गए। वहां के कर्मचारी से उन्होंने दोस्ती कर ली और वो सारे अक्षर रट लिए जो जांच के दौरान उन्हें बोर्ड पर दिखाए जाने वाले थे। जब डॉक्टर ने उनकी जांच शुरू की, जब उन्होंने सारे अक्षर सही से बता दिए और इस तरह उनकी ये नौकरी पक्की हो गई। बस कंडक्टर के काम के लिए उन्हें प्रति महीना 16 रुपए मिलते थे।बस कंडक्टर की नौकरी के दौरान एक दिन जाॅनी वाॅकर की मुलाकात एक्टर निसार अहमद अंसारी से हुई। फिर उनकी वजह से जाॅनी वाॅकर का फिल्म स्टूडियो में आना-जाना शुरू हो गया। स्टूडियो आकर लोगों को हंसाने का काम जारी था। धीरे-धीरे उन्हें फिल्मों में क्राउड रोल ऑफर होने लगे।
इसी बीच उनकी मुलाकात एक्टर बलराज साहनी से हुई, जिन्होंने उनके हुनर को बहुत सराहा। साथ ही हिदायत भी दी कि वो लोगों को हंसाने में अपना टैलेंट जाया ना करें।
देव आनंद के प्रोडक्शन में बनी फिल्म बाजी की कहानी गुरु दत्त और बलराजी साहनी ने लिखी थी। कहानी लिखने के दौरान उन्होंने जाॅनी वाॅकर को ध्यान में रखते हुए एक किरदार लिखा लेकिन सबसे बड़ा मसला था कि प्रोडक्शन टीम को जाॅनी वाॅकर को कास्ट करने के लिए कैसे मनाएं।
बलराज साहनी ने एक कहानी प्लाॅट की। एक दिन फिल्म से जुड़े सभी लोग स्टूडियो में बैठकर शूटिंग की तैयारी कर रहे थे। तभी जाॅनी वाॅकर एक शराबी के वेश में आए। वो ऐसी हरकतें करने लगे कि सभी लोग ठहाके मार के हंसने लगे। करीब आधे घंटे बाद गुरु दत्त ने स्टूडियो के कर्मचारी से कहा कि इस शराबी को बाहर निकालो, बहुत हो गया। इस पर बलराज साहनी ने जाॅनी वाॅकर की तरफ इशारा करते हुए कहा- अब तुम ये नाटक खत्म कर दो।
फिर उन्होंने सभी लोगों को जाॅनी वाॅकर का परिचय देते हुए कि कहा- मैंने ऐसा करने के लिए कहा था ताकि आप लोगों को जाॅनी के टैलेंट के बारे में पता चल सके और आप जाॅनी को फिल्म में कास्ट कर लें। सभी लोग जाॅनी को कास्ट करने के लिए राजी हो गए। इस तरह जाॅनी वाॅकर फिल्म बाजी के लिए सिलेक्ट हो गए।1954 में फिल्म आर पार रिलीज हुई थी। इस फिल्म में एक गाना जाॅनी वाॅकर और नूरजहां पर फिल्माया गया था। इसी गाने की शूटिंग के दौरान दोनों नजदीक आ गए। पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार और फिर शादी। हालांकि, परिवार वाले इस शादी के खिलाफ थे। इसके बावजूद दोनों ने परिवार के गैर मौजूदगी में ही मस्जिद जाकर शादी कर ली।
उनकी शादी के कुछ ही हफ्ते बाद गीता बाली ने शम्मी कपूर से शादी करने के लिए हां कर दी। इससे पहले भी कई बार शम्मी कपूर ने उनके पास शादी का प्रस्ताव रखा था लेकिन उन्होंने हर मना कर दिया। उन्होंने शम्मी कपूर से जल्द ही शादी करने को कहा। इस पर शम्मी कपूर ने कहा कि वो जल्दी शादी कैसे कर सकते हैं।गीता बाली ने उन्हें जाॅनी वाॅकर का उदाहरण देते हुए कहा- जैसे उन्होंने शादी की है और हम भला शादी जल्दी क्यों नहीं कर सकते। इसके बाद वो दोनों जाॅनी वाॅकर के पास गए और शादी कैसे करें, इसके बारे में सलाह मांगी
जाॅनी वाॅकर ने कहा- हमने तो शादी मस्जिद में की थी, आप दोनों मंदिर में कर लीजिए। जाॅनी वाॅकर की सलाह पर दोनों ने मंदिर जाकर शादी कर ली।जाॅनी वाॅकर ने ताउम्र शराब नहीं पी थी। इसके बावजूद उन्होंने पहली फिल्म बाजी में शराबी का रोल बहुत ही परफेक्ट तरीके से किया। उनकी एक्टिंग से प्रभावित गुरु दत्त ने अपनी फेवरिट व्हिस्की ब्रांड के नाम पर उनका नाम जाॅनी वाॅकर रख दिया। जाॅनी वाॅकर को भी ये नाम बहुत पसंद आया और उन्होंने खुशी-खुशी इस नाम को अपना लिया।
जाॅनी वाॅकर मेहमान नवाजी के भी बड़े शौकीन थे। घर पर हर वक्त लोगों को आना-जाना लगा रहता था। फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी उनके घर दावत पर आते थे। जाॅनी वाॅकर घर पर पार्टियां भी होस्ट करते थे, लेकिन उनकी पार्टी की एक खासियत होती थी।
पार्टी में तरह-तरह के पकवान होते थे, शायरी और कव्वाली का भी इंतजाम होता था लेकिन शराब की व्यवस्था नहीं होती थी। जब वो सेट पर जाते थे, तब लगभग 50 लोगों का खाना अपने साथ ले जाते और मिल बांटकर सबके साथ खाते थे।
एक बार किसी ने उनसे पूछा था कि वो शराब नहीं पीते, इसके बावजूद वो इतने बढ़िया तरीके से शराबी की एक्टिंग कैसे कर लेते हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि देव आनंद और राजेश खन्ना भी फिल्मों में मरने की एक्टिंग शानदार करते हैं, तो क्या वो कई बार मर चुके हैं।
जब जाॅनी वाॅकर करियर के टाॅप पर थे, तब उन्हें एक दिन एहसास हुआ कि वो इतनी मेहनत अपने परिवार के लिए ही कर रहे हैं, लेकिन परिवार को ही समय नहीं दे पा रहे। इस दिन के बाद उन्होंने फैसला किया कि वो फिक्सड शिफ्ट में ही फिल्म की शूटिंग करेंगे और संडे को काम नहीं करेंगे। पूरा वक्त परिवार के साथ बिताएंगे। वो कहते थे कि फ्री समय में उन्हें कोई शूटिंग के लिए 10 लाख रुपए भी दे दे, तब भी वो काम करने के लिए राजी नहीं होंगे।
एक बार जाॅनी वाॅकर ट्रेन से कहीं जा रहे थे। उसी ट्रेन में मशहूर शायर शकील बदायुनी और मुकरी भी सफर कर रहे थे। ट्रेन में शकील और जाॅनी वाॅकर ने एक दूसरे को देख नजर अंदाज कर दिया लेकिन दोनों के मन में खुराफात चल ही रही थी। तभी एक स्टेशन आया, ट्रेन रुकी। शकील ट्रेन से बाहर गए और लोगों की भीड़ इकट्ठा कर ली और उनसे कहा कि ट्रेन में फेमस कॉमेडियन जाॅनी वाॅकर हैं।
बेताब भीड़ उन्हें देखने के लिए ट्रेन में चढ़ने लगी। लोगों ने खिड़की के शीशे तोड़ दिए। भीड़ से बचने के लिए जाॅनी वाॅकर बाथरुम में छिप गए और तब निकले जब ट्रेन चल दी।
वो जानते थे कि ये सब शकील ने किया है। वो बिना कुछ बोले ही अगला स्टेशन आने का इंतजार करने लगे। अगल स्टेशन आया, ट्रेन रुकी। वो उतर कर नीचे गए और लोगों को इकट्ठा किया। फिर उनसे कहा- आप लोग मुझसे तो मिल लिए लेकिन ट्रेन में मशहूर शायर शकील बदायुनी हैं, आप लोग जाकर उनसे भी मिल लीजिए। लोगों की भीड़ शकील से मिलने ट्रेन में चली गई। शकील को भी बाथरूम में छिपना पड़ा। वो भी बाथरुम से तभी बाहर निकले, जब भीड़ चली गई।
जाॅनी वाॅकर के लिए परिवार वाले और दोस्त बहुत मायने रखते थे। जब साउथ में फिल्में बनने का दौर शुरू हुआ था, तब उन्होंने भी साउथ की एक फिल्म साइन की थी। फिल्म की शूटिंग के लिए मद्रास जाना पड़ा।
वो पहली बार मद्रास गए, होटल में कमरा लिया और कुछ देर आराम किया। तभी उन्हें खबर मिली कि उनकी पत्नी के भाई का निधन हो गया। वो मुंबई वापस आ गए। फिर वो दोबारा मद्रास गए। वहां पर पहुंचे उन्हें कुछ ही वक्त हुआ था कि खबर आई कि उनकी मां इस दुनिया में नहीं रहीं। इस खबर से वो पूरी तरह से टूट गए।
मुंबई वापस आकर कुछ महीनों बाद वो दाेबारा शूटिंग के लिए मद्रास गए। पहुंचने के बाद जैसे ही होटल पहुंचकर उन्होंने वहां की लाइट ऑन की तभी खबर आई कि उनके अजीज दोस्त गुरु दत्त का इंतकाल हो गया। खबर सुनते ही वो मुंबई चले गए और वापस कभी मद्रास नहीं आने का फैसला किया। उन्हें लगा कि मद्रास ने उनकी जिंदगी के तीन जरूरी शख्स उनसे छीन लिए।
80 के दशक में फिल्मों में कॉमेडी जाॅनर में बदलाव होने लगा। कॉमेडी का बदलता स्वरूप उन्हें खटकने लगा था। इस वजह से उन्होंने 1988 के बाद फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया था। उन्हें लगता था कि काॅमेडी का स्तर गिरता जा रहा है। लोग उनसे अश्लील किरदार करवाना चाहते हैं। उन्हें ये सब पसंद नहीं था तो उन्होंने बॉलीवुड छोड़ने का फैसला कर लिया। 9 साल तक फिल्मों से दूरी बनाकर रखने के बाद उन्होंने साल 1997 में आई कमल हासन की फिल्म चाची 420 से कमबैक किया। इस फिल्म में भी जॉनी ने अपनी छाप छोड़ दी। ये उनकी जिंदगी की आखिरी फिल्म थी।
जॉनी वॉकर को उनकी शानदार अदाकारी के लिए पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड 1959 में आई फिल्म मधुमती में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए मिला था। इसके बाद फिल्म शिकार के लिए उन्हें बेस्ट कॉमिक एक्टर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया था। ताउम्र दर्शकों को अपनी एक्टिंग और अलग-अलग रोल से हंसाने वाले जॉनी वॉकर ने 29 जुलाई 2003 को दुनिया से अलविदा कह दिया।
उनकी बेटी ने बताया था कि उन्हें डायबिटीज थी, जिस कारण उनकी किडनी खराब हो गई थी। कई दिनों तक वो हाॅस्पिटल में रहे। उनकी आखिरी इच्छा कि वो बचा हुआ अपना सारा वक्त घर पर परिवार के साथ बिताएं।