कर्नाटक में एक बार फिर JDS के किंगमेकर बनने की उम्मीद है। 10 में से 5 एग्जिट पोल हंग असैंबली की भविष्यवाणी कर रहे हैं यानी बिना JDS की मदद के सरकार नहीं बन सकती। पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक भाजपा 91, कांग्रेस 108, JDS 22 और अन्य को 3 सीट मिलने का अनुमान है। 13 मई को नतीजे आएंगे और सब कुछ साफ हो जाएगा
एचडी देवगौड़ा की चुनावी राजनीति साल 1962 से शुरू हो गई थी। जब वे पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस (ओ), जनता पार्टी, जनता पार्टी (जेपी) से होते हुए उनकी राजनीति जनता दल तक आ गई। देवगौड़ा आपातकाल में जेल में भी रहे।
1994 में देवगौड़ा कर्नाटक में जनता दल को पहली बार सत्ता में लाने में कामयाब रहे। 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज 140 सीटों पर सिमट गई। जनता दल की 46 सीटें आईं। जनता दल, समाजवादी पार्टी और DMK जैसी 13 पार्टियों ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट का गठन किया और देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बना दिया गया।
इसी जनता दल का 1997 के बाद कई छोटे-छोटे दलों में विभाजन हो गया और 1999 में देवगौड़ा ने जनता दल (सेक्युलर) की स्थापना की। उनकी पार्टी का मुख्य आधार दक्षिणी कर्नाटक में है।
1999 में JDS ने अपना पहला चुनाव लड़ा, जिसमें पार्टी महज 10 सीटें ही ला पाई, लेकिन 2004 में यह आंकड़ा बढ़कर 58 पहुंच गया। BJP ने इस चुनाव में 79 और कांग्रेस ने 65 सीटें जीतीं। कांग्रेस और JDS ने यहां मिलकर सरकार बनाई। इस तरह पहली बार JDS किंग मेकर बनी।
इसी पंचवर्षीय में दो साल बाद एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और BJP के साथ आ गए। कुमारस्वामी पहली बार मुख्यमंत्री बने। दोनों पार्टियों में बचे हुए कार्यकाल में मुख्यमंत्री पद शेयर करने पर सहमति बनी, लेकिन बाद में कुमारस्वामी मुकर गए और BJP को समर्थन देने से इंकार कर दिया। इस स्थिति में 2008 में चुनाव हुए और BJP सत्ता में आई।
2003 से 2008 के बीच JDS के लिए दो बड़ी घटनाएं हुईं। 2004 में सिद्धारमैया JDS के बड़े नेता थे। उनके CM बनने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें आखिर में डिप्टी सीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा।
अगले दो साल में उन्हें समझ आने लगा कि कुमारस्वामी के आगे आने के चलते अब वे JDS में आगे नहीं बढ़ सकेंगे। सिद्धारमैया ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलितों पर फोकस बढ़ाना शुरू किया, जिसके बाद देवगौड़ा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। 2013 में यही सिद्धारमैया कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने।
दूसरी घटना लिंगायत समुदाय के JDS से नाराज होने की है। 2006 में JDS ने BJP से सत्ता साझेदारी के तौर पर 20-20 महीने का फार्मूला तय किया था। लेकिन बाद में मंत्री पदों को लेकर मतभेद होने के बाद कुमारस्वामी ने BJP का समर्थन करने से इंकार कर दिया।
BJP की तरफ से उस वक्त बीएस येदियुरप्पा प्रमुख नेता थे, जो लिंगायत समुदाय से आते हैं। JDS के मुकरने से ये संदेश गया कि वोक्कालिगा सत्ता ने लिंगायतों को सत्ता में साझीदारी से दूर कर दिया। यह दोनों ही कर्नाटक के सबसे बड़े जातिगत समूह हैं। यहीं से लिंगायत वोट बैंक JDS से नाराज होना शुरू हो गया। खुद कुमारस्वामी ने बाद में इसे अपनी गलती माना।
इसके बाद से ही लिंगायतों में BJP का जनाधार बढ़ना शुरू हुआ और पार्टी अगले ही चुनावों में सरकार बनाने में कामयाब रही। दक्षिण में पहली बार BJP ने जीत का स्वाद चखा।
इस चुनाव में BJP ने 104, कांग्रेस ने 80 और JDS ने 37 सीटें जीतीं। एक बार फिर यहां JDS से एचडी कुमारस्वामी दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। JDS ऐसी पार्टी है, जो दो बार मुख्यमंत्री बनवा चुकी है, लेकिन आज तक किसी भी चुनाव में राज्य की सभी सीटों पर नहीं लड़ी। 2018 में भी पार्टी 200 सीटों पर लड़ी और 37 पर जीती।
यह साझेदारी लंबी नहीं चल पाई। लंबी खींचतान के बाद 2019 में कांग्रेस के 15 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए फ्लोर टेस्ट में पार्टी 99-105 से हार गई और सरकार गिर गई। इसके बाद गवर्नर ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया और BJP ने सरकार बना ली।
दरअसल JDS दक्षिण कर्नाटक में सीमित पार्टी है। यह इलाका ओल्ड मैसूर के नाम से जाना जाता है। इस इलाके में हासन, मांड्या, रामनगर, तुमकुरू, मैसूर और दक्षिण के अन्य जिले आते हैं। कुल मिलाकर वोक्कालिगा समुदाय की बड़ी संख्या वाले इस क्षेत्र में 64 विधानसभा सीट आती हैं। देवगौड़ा परिवार की ताकत का आधार उनका यही समुदाय माना जाता है।
हासन देवगौड़ा परिवार का गृह जिला है। यहीं की होलेनर्सीपुर सीट से देवगौड़ा ने चुनाव लड़ना शुरू किया और 6 बार इसी सीट से विधायक रहे। कुल मिलाकर ओल्ड मैसूर इलाके की अधिकतर सीटें JDS जीतने में कामयाब रही। यहीं दूसरी पार्टियां मात खा जाती हैं और JDS को सीमित क्षेत्र होने के बावजूद बढ़त का मौका मिल जाता है।
कर्नाटक के तमाम एग्जिट पोल दिखा रहे हैं कि हंग असेंबली हो सकती है। मतलब ऐसी स्थिति में कांग्रेस या BJP, जो भी सत्ता में आना चाहती है, उसे JDS से मदद लेनी होगी। ऐसी ही स्थितियों में JDS, कांग्रेस-BJP के बीच सत्ता की लड़ाई में खुद का CM बनवाने में कामयाब रही है।
ओल्ड मैसूर क्षेत्र में इस बार BJP ने काफी दम लगाया है। वहां प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर बड़े-बड़े नेताओं की रैलियां हुईं हैं। वोक्कालिगा समुदाय को चुनावों के ठीक पहले लिंगायतों के साथ आरक्षण भी दिया गया है। कुल मिलाकर BJP ने JDS के प्रभाव को कम करने की भरसक कोशिश की है। ऐसे में चुनाव बाद दोनों के समझौते में थोड़ी-बहुत अड़चने भी आती नजर आती हैं।
समाजवादी विचारों पर आधारित JDS कांग्रेस और BJP दोनों से ही समझौते कर चुकी है और दोनों से ही बीच में समझौते तोड़ भी चुकी है। ऐसे में विश्वास या विचारधारा से इतर यहां राजनीतिक जरूरत और सौदेबाजी को प्राथमिकता मिल सकती है।
बहरहाल एग्जिट पोल से यह संभावना तो बन रही है कि JDS एक बार फिर किंगमेकर की भूमिका में आ रही है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि यह ताजपोशी किसी होती है।