जावेद अख्तर, गीत-गजलों और शायरी की मशहूर शख्सियत। लिखे में जितना मखमलीपन है, समाज से जुड़े मुद्दों में उतनी ही बेबाकी। जावेद अख्तर की जिंदगी पर एक किताब आई है। नाम है- ‘जादूनामा’। दरअसल जादू, जावेद अख्तर के बचपन का नाम है। ये नाम उनके पिता जां निसार अख्तर ने अपनी ही एक कविता से लिया था
कॉमन सिविल कोड बिल पर जावेद अख्तर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को आड़े हाथों लिया। बोले- मुस्लिम पर्सनल लॉ में एक से ज्यादा बीवी रखने की इजाजत है, ये समानता के खिलाफ है। अगर पति कई पत्नियां रख सकता है तो फिर औरत को भी यही हक मिलना चाहिए। एक से ज्यादा शादी करना हमारे कानून के खिलाफ है। अगर कोई अपनी रिवायतें बरकरार रखना चाहे, तो रखे, लेकिन संविधान से कोई समझौता बर्दाश्त नहीं होगा।
उन्होंने कहा- ‘मैं पहले से ही कॉमन सिविल कोड का पालन करता हूं। मैं अपनी बेटी और बेटे को बराबर की प्रॉपर्टी दूंगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से अगर तलाक हो जाए तो 4 महीने बाद पति, पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं होता। ये गलत है।
जावेद अख्तर सवालिया अंदाज में कहते हैं- ‘मैं ये जानना चाहता हूं कि जो सियासतदान कॉमन सिविल कोड की बात कर रहे हैं, क्या वे अपनी बहन-बेटियों को संपत्ति में बराबरी का हिस्सा देते हैं? सबसे पहले कॉमन सिविल कोड का ड्राफ्ट आना चाहिए। भारत जैसे बड़े और विविधता वाले देश में, क्या एक कानून हो सकता है? ये भी बहस का मौजूं है। अगर किसी के पर्सनल लॉ हैं तो रहें, लेकिन पर्सनल लॉ और संविधान के बीच में अगर चुनना होगा, तो मैं संविधान को आगे रखूंगा।
हिंदुस्तान में नफरत का माहौल पैदा किए जाने के सवाल पर जावेद अख्तर बोले- ‘मुझे लगता है कि समाज में अजीब सा तनाव है, ये तनाव जमीन से नहीं उगा है। इसे तैयार किया गया है। इसे बनाए रखने में मीडिया भी साथ देती है।
अगर किसी भी हिंदुस्तानी का आप DNA टेस्ट करेंगे तो पता चलेगा कि 8-10 पुश्तों पहले हम सभी भारतीयों के पूर्वज किसान थे। किसान हमेशा मध्यमार्गी होता है। वह कभी एक्सट्रीम नहीं होता। चाहे बात इधर की हो या उधर की, वो बीच में ही रहता है।’
टुकड़े-टुकड़े गैंग, एंटी नेशनल, अर्बन नक्सल जैसी उपमाओं के बढ़ते इस्तेमाल पर अफसोस जताते हुए जावेद साहब बोले- ‘अगर आप सरकार के खिलाफ हैं, तो आप गद्दार हैं? ये बिल्कुल गलत है। 2014 के पहले भी तो सरकार थी। सरकारें आती हैं, सरकारें जाती हैं। विपक्ष हमेशा सरकार के खिलाफ बोलता है, यही उसका काम है।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में बॉलीवुड सेलेब्स के शामिल होने पर हो रही कॉन्ट्रोवर्सी से जावेद साहब नाराज नजर आते हैं। वे बोले- ‘जब एक राजनीतिक पार्टी यात्रा करेगी तो दूसरी पार्टी पार्टी उसका विरोध ही करेगी। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है, लेकिन कुछ भाषा की मर्यादा और संस्कार भी होते हैं, उनका ख्याल रखा जाना चाहिए।’छोटे से बच्चे जादू से 77 साल के जावेद साहब के सफर को जब वे पीछे मुड़कर देखते हैं तो भावुक होने की बजाय कहते हैं- ‘हकीकत यही है कि मैं 77 साल का बूढ़ा हूं।’ जोर से ठहाका लगाते हैं, फिर कहते हैं- यही सच्चाई है। मेरी जिंदगी से जिन भी लोगों का वास्ता रहा है, भाई, दोस्त, परिवार, प्रोड्यूसर, प्रोफेशनल, ‘जादूनामा’ किताब उन सब से मिलकर आई है
क्या आपको लगता है कि कुछ लिखा जाना बाकी है या अब अरमान नहीं रहा? इस सवाल पर जावेद साहब संजीदा हो जाते हैं। एक पल सोचकर बोलते हैं ‘कई बार मुझे महसूस होता कि काफी कुछ लिख सकता था, लेकिन बहुत सारा अभी अंदर है, जिसे कागज पर उतारने की जुस्तजू (तलाश) में हूं।’नई पीढ़ी की शायरी, जिंदगी और सोच के बारे में बात करते हुए जावेद साहब काफी प्रगतिशील नजर आते हैं। कहते हैं- ‘50 साल पहले भी लोग कहते थे कि पहले जो होता था, अब वो बात नहीं रही। आज भी बूढ़े लोग यही बात करते हैं। सच ये है कि भाषा बहती हुई नदी है, ये रुकती नहीं है। इसमें नई धाराएं जुड़ती चली जाती है।’
हाल के दौर में फिल्मों से न तो स्टार तैयार हो रहे हैं, न ही बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन की धूम है। ये सुस्ती क्यों हैं? इसका जवाब मिला- ‘प्रोड्यूसर के एक्टर तक इस नए दौर से हैरान-परेशान हैं। मैं इसकी वजह मानता हूं कि बॉलीवुड में नई कहानियां नहीं आ रही हैं। ज्यादा हिट फिल्में या तो रीमेक हैं या साउथ की फिल्में हैं। बॉलीवुड को नई कहानियां खोजनी होंगी।’
OTT कंटेंट पर बात चली तो जावेद साहब उत्साहित हो गए और कहा कि मैं खुद OTT कंटेट पसंद करता हूं। ‘पाताललोक, सेक्रेड गेम, मिर्जापुर’ मुझे बहुत पसंद हैं, लेकिन हो ये रहा है कि घराना, गृहस्थी जैसी घरेलू फिल्में बनती थीं, उस कहानी को घर-घर में परोसा जा रहा है। अब OTT ने भी एक बड़ा दर्शक वर्ग खींच लिया है। OTT पर बहुत स्ट्रॉन्ग, रियलिस्टिक कंटेंट बना रहे हैं।
आप नास्तिक रहते हुए धार्मिक लोगों से निजी रिश्तों को कैसे डील करते हैं? इस पर जावेद साहब बोले- ‘ये बिल्कुल आसान काम है। दो अलग-अलग धार्मिक व्यक्ति कैसे एक दूसरे के साथ रहते हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है। हम एक दूसरे से बहुत बातों पर मतभेद रखते हैं। आपस में असहमति होने पर भी हमें एक दूसरे की इज्जत करनी चाहिए। कभी ये टॉपिक निकले तो इस पर बात करना चाहिए, लेकिन अपनी तरफ से जहां तक हो सके, जिक्र न करें।’
इस सवाल पर जावेद साहब कहते हैं- ‘भोपाल जाता हूं तो देखकर खुशी होती, अब कितना अच्छा बना दिया गया है। हालांकि, भोपाल पहले से ही खूबरसूरत था। मलाल ये है कि मेरे कॉलेज के दोस्त सभी खत्म हो गए हैं। मेरा कोई दोस्त वहां नहीं रहा है। एक दो बचे हैं, जो बाहर रहते हैं।’
दिल्ली में उर्दू के सबसे बड़े मेले ‘जश्न-ए-रेख्ता’ में गुरुवार को जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी किताब ‘जादूनामा’ लॉन्च हुई। इसके पन्ने पलटते हुए जावेद अख्तर ने राइटर से कहा- ‘आपने तो कमाल कर दिया, ये फोटो तो मेरे खुद के पास नहीं हैं, आपने कहां से जुटा लिए। मुझ जैसे व्यक्ति पर आपने इतनी मेहनत कर दी, किसी दूसरे पर करते तो PHD मिल जाती।’ किताब में बताया गया है कि सूरमा भोपाली का किरदार एक दादा से और एंग्री यंग मैन मदर इंडिया के बिरजू से प्रेरित है।